आदिवासियों की दवा जो बन गई नशा, कोकीन मतलब मौत का सफर।।

 
आदिवासियों की दवा जो बन गई नशा, कोकीन मतलब मौत का सफर।।

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

हटके, 15 सितंबर:- भारत मे जब से सुशांत सिंह राजपूत का मामला सामने आया उसके बाद की जांच में एनसीबी दाखिल हुई है तब से पूरे बॉलीवुड की नींद उड़ी हुई है। हर रोज़ नए-नए सेलेब्रिटीज़ के नाम के खुलासे हो रहे हैं। रोज़ नए ख़ुलासे कर रहे न्यूज़ चैनल्स के मुताबिक, इनमें से कुछ ड्रग्स की लत का शिकार हैं या फिर कभी ना कभी ड्रग्स की ख़रीद-फ़रोख्त की है। सवाल ये है कि आखिर भारत में इतनी मात्रा में ड्रग्स आ कहां से रहा है? और जब यह नशा इतना ख़राब है तो इसका ईजाद हुआ ही क्यों? कोकीन अमीरों का नशा है और पश्चिमी देशों में इसकी डिमांड ज्यादा है। कोकीन का नशा काफी महंगा और सामान्य ड्रग्स एब्यूज इससे दूर रहते हैं, लेकिन पीजीआई के डी-एडिक्शन सेंटर ने इस तथ्य को ही पूरी तरह से पलटकर रख दिया है। कोकीन की लत पड़ने के बाद इन युवाओं के कैरियर खत्म हो गए। जो नौकरी कर रहे थे उनकी नौकरी छूट गई, जो पढ़ाई कर रहे थे, उनकी पढ़ाई छूट गई।

क्या है कोकीन की डार्क वेब दुनिया:- ड्रग्स भले ही मादक नशीला पदार्थ है पर हर देश में इसका अच्छा-खासा कारोबार है, एलएसडी, मेथाफ़ेटामीन, कोकीन, हेरोइन, एमडीएमए, डीएमटी या प्रिस्क्रिप्शन ड्रग ये सब नाम हाल ही में ज्यादा सुनने को मिले पर अगर आप डिमांड की बात करेंगे, तो भारत में कोकीन की मांग सबसे ज्यादा है, और फिर अपना ही देश क्यों, ​दुनियाभर में कोकीन की मांग इतनी ज्यादा है कि उसके लिए पूरी का पूरी डार्क वेब दुनिया ही बसा ली गई। असल में हजारों साल से दक्षिण अमेरिका के मूल निवासी खुद को तरोताजा और ऊर्जावान रखने के लिए कोका पौधे की पत्तियों को चबाते थे। ठीक वैसे ही जैसे आजकल लोग पान चबाते हैं, कोका पौधे की पत्तियां उबालकर इनका पेय पदार्थ भी बनता था जो बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को दिया जाता था।

शुरू में यह ताकत देने का साधारण पौधा था:- हालांकि, यह उस वक्त तक किसी नशे के रूप में इस्तेमाल नहीं हो रहा था। बस ताकत देने वाला साधारण सा पौधा था, पर कुछ समय बाद स्पेनिश कोलोनाइजर्स दक्षिण अमेरिका पहुंचे, जहां उन्हें आदिवासियों के कोका पौधे की पत्तियां चबाने के बारे में पता चला। आदिवासियों का तर्क उनके समझ से बाहर था इसलिए पत्तों से ऊर्जा मिलने वाली बात को बकवास करार देते हुए शैतानी काम बता दिया, इतना ही नहीं, पत्तियों को चबाना गुनाह करार दे दिया गया। कोका की खेती पर रोक भी लगा दी गई। किन्तु बात में जब स्पेशिन वैज्ञानिकों ने आदिवासियों के तर्क को ध्यान में रखते हुए कोका के पौधे पर रिसर्च की, तो उन्हें बात सही लगी। इन पत्तियों में ऐसा कुछ जरूर था तो दिमाग की सोई हुई नसों में ऊर्जा भर देता था, बस इसके बाद कोलोनाइजर्स ने कोका पौधे की खेती दोबारा शुरू करवा दी और तो और इस पर 10 प्रतिशत का टैक्स भी लगा दिया गया।

कोका की पत्तियों में एल्कोलाइड कोकीन नाम का पदार्थ होता है:- इस पूरे माजरे के पीछे की असल कहानी ये थी कि वैज्ञानिक इन पत्तियों से उस खास पदार्थ को अलग करने की कोशिश करने लगे जो ऊर्जा का कारक था। वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया था कि कोका की पत्तियों में एल्कोलाइड कोकीन नाम का पदार्थ होता है, बहुत कोशिशों के बाद भी वैज्ञानिक एल्कोलाइड कोकीन को पत्तियों से अलग नहीं कर पा रहे थे, इसलिए बहुत लंबे समय तक ये पत्तियां यूं ही अमेरिका, स्पेन, जर्मनी और ब्रिटेन के बाजारों में बेची जाती रहीं। पत्तियों को पानी में उबालकर काढा बनाया जाता था, जिसे वे लोग इस्तेमाल करते थे जिन्हें नींद ना आने की दिक्कत है। काढा पीते ही हल्का सा नशा छाता और गहरी नींद आती, अच्छी नींद पूरी करने के बाद व्यक्ति पहले से ज्यादा बेहतर तरीके से काम करता। कुल मिलाकर यह एक तरह की ऊर्जा देने वाली दवा बन गई। 1855 तक लोग कोका की पत्तियों का ही इस्तेमाल करते रहे और वैज्ञानिक एल्कोलाइड कोकीन को पत्तियों से अलग करने की कोशिश, 1855 में ही जर्मन केमिस्ट फैड्रिक गेटडेक ने कोकीन को पत्तियों से अलग करने का करिश्मा कर दिखाया। लेकिन बाद में जर्मन केमिस्ट एल्बर्ट नीमेन ने इसे और ज्यादा शुद्ध तरीके से पत्तियों से अलगकर पाउडर के तौर पर तैयार किया।

डॉक्टर्स कोकीन का इस्तेमाल मरीज को बेहोश करने के लिए करने लगे:- इसके बाद तो कोकीन पूरे दवा बाजार के लिए एक चमत्कारिक पाउडर बन गया, डॉक्टर्स कोकीन का इस्तेमाल मरीज को बेहोश करने के लिए करने लगे। दांत के दर्द और नेत्र विशेषज्ञों के लिए तो यह सबसे कारकर दवा बन गई। बालों के डैंड्रफ को दूर करने के लिए भी कोकीन पाउडर मिला शैम्पू बाजार में उतार दिया गया। चाय के बहाने हल्का नशा देने के लिए कंपनियों ने चाय के पैकेट में कोकीन पाउडर की मिलावट शुरू की और इसकी डिमांड बढ गई। इतना ही नहीं 1885 में अमेरिकी कंपनी पार्क डेविस ने कोकीन को सिगरेट बनाकर बेचना शुरू कर दिया। इसके बाद कंपनी के दूसरे उत्पादों के तौर पर कोकीन पैकेटों में ​बेचा जाने लगा जिसे इंजेक्शन के जरिए लिया जा सकता था, कंपनी ने अपने उत्पादों के प्रचार के तौर पर कहा कि यह आपकी भूख मिटा देगा, कायर को बहादुर बना देगा, दर्द से छुटकारा दिला देगा।

कोकीन का प्रयोग गुलामो पर किया गया:- इसका जो सबसे दुखद पहलू था वो ये कि कोकीन का प्रयोग गुलामों पर किया गया ताकि उनसे ज्यादा से ज्यादा काम करवाया जा सके। जैसे अमेरिका में अफ्रीकी मूल के लोगों के बीच कोकीन बांटा जाता था। इससे वे दिमागी तौर पर चार्ज रहते थे, शरीर में स्फूर्ति रहती थी और नशे को दोबारा पाने की चाह में वे घंटों तक बिना रूके काम करते रहते, दूसरे विश्व युद्ध के समय जर्मन सैनिकों को भी खाने के बाद कोकीन की निश्चित मात्रा दी जाती थी ताकि उन्हें थकान होते हुए भी उसका अनुभव ना हो। कोकीन के नशे का एक बहुत विस्तृत बाजार बन गया था, खासकर हॉलीवुड की मशहूर हस्तियां इस नशे का प्रचार करने लगी। जब कोकीन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हुआ, तो मौत होनी भी शुरू हुई, साल 1912 में संयुक्त राष्ट्र में एक साल के भीतर 5 हजार मौतें केवल कोकीन के सेवन के कारण हुईं। हर साल यह संख्या बढ़ने लगी, तब जाकर विश्व स्तर पर 1922 में कोकीन पर प्रतिबंध लगाया गया।

फिर ड्रग्स माफिया सक्रिय हुए:- 1922 में भले ही कोकीन की बुराईयों को देखते हुए इसे बैन किया जाने लगा पर असल में इसी के बाद ड्रग्स माफ़िया ज्यादा सक्रिय हो गए, जो चीज़ पहले खुले में कम दाम में बिक रही थी, वो अब काला बाज़ार में महंगे दामों में बिकने लगी। यानि प्रतिबंध से ना तो कोकीन की मांग में फ़र्क आया, ना बाजार में। 1970 के दशक में कोकीन ने मनोरंजन जगत के लोगों का अपनी गिरफ़्त में लेना शुरू किया, यह फ़ैशन और स्टेटस सिंबल के तौर पर उभरा। कुछ अमेरिकी विश्वविद्यालयों में कोकीन की मांग 1970 से 1980 के बीच करीब 10 गुना बढ़ गई। 1970 के दशक के अंत तक कोलम्बियाई ड्रग तस्करों ने अमेरिका में कोकीन की तस्करी का अच्छा-ख़ासा नेटवर्क बना लिया। 1980 तक तस्करी अमेरिका से होते हुए रशिया, जर्मनी, ब्रिटेन और अफ्रीकी देशों में फैल गई। एशिया में भी 80 के दशक तक कोकीन का प्रवेश हो चुका था, वैसे तो इतिहास में भारत में कोकीन के पहले प्रयोग की कोई ख़ास तारीख दर्ज नहीं है। फिर भी कहा जाता है कि 90 के दशक में ये नेपाल-बांग्लादेश के रास्ते भारत पहुंचने लगी। 90 के दशक की शुरुआत में, कोलम्बियाई ड्रग कार्टेल ने एक साल में 500 से 800 टन कोकीन का उत्पादन किया और न केवल अमेरिका बल्कि यूरोप और एशिया में भी शिपिंग की, इसी का एक हिस्सा भारत पहुंचा। भारत में कोकीन बाजार का सबसे मुख्य ठिकाना बना मुंबई, इसके बाद देश के कई ऐसे शहर जो समुद्री मार्ग से सीधे जुड़े थे या फिर बॉर्डर किनारे स्थित थे।

सबसे ज्यादा ड्रग्स माफिया इस वक्त सक्रिय है इस व्यापार में:- माना जाता है कि आज कोलम्बिया में 300 से ज्यादा अज्ञात सक्रिय ड्रग तस्करी संगठन हैं जो छोटे-छोटे संगठन बनाकर अलग-अलग देशों में कोकीन सप्लाई करते हैं। 2008 में कोकीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ा अवैध मादक पदार्थ बन गया, ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2017’ के आंकड़ों से पता चलता है कि 2017 में अवैध ड्रग्स ने दुनिया भर में करीब 7.5 लाख लोगों की जान ली। इनमें से 22,000 मौतें भारत में हुईं, भारत में 2018 में दर्ज किया गया कि ओपीडी/ओपियोड का इस्तेमाल करने वालों की संख्या करीब 2.3 करोड़ है। यह संख्या 14 साल में 5 गुना बढ़ी है, इस दौरान हेरोइन की खपत में अधिकतम वृद्धि दर्ज की गई। 2004 में अफ़ीम का इस्तेमाल करने वालों की संख्या (20,000) हेरोइन लेने वालों (9,000) की तुलना में दोगुनी थी। करीब 12 साल बाद ये रुझान उलट गया और हेरोइन यूज़र्स की संख्या 2.5 लाख हो गई, ये संख्या अफ़ीम यूज़र्स की तुलना में करीब दोगुनी है। इंटेलीजेंस यूनिट ने नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर, एम्स की मादक पदार्थों के सेवन पर एक रिपोर्ट का विश्लेषण किया और पाया कि भारत अवैध ड्रग्स के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हो गया है। इस रिपोर्ट में 10 से 75 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों पर गौर किया गया है, जो नशीली दवाओं की लत के शिकार हैं। इस समय हमारे देश में कैनबिस, कोकीन और हेरोइन से लेकर ट्रामाडोल जैसी सिंथेटिक दवाओं की मांग सबसे ज्यादा है, भारत की आबादी में करीब 2.8 फीसदी (3.1 करोड़) लोग भांग का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से 1.3 करोड़ (1.2 प्रतिशत) लोग भांग के अवैध प्रोडक्ट जैसे गांजा और चरस का और बाकी भांग का इस्तेमाल करते हैं, गांजा के सबसे ज्यादा यूज़र्स उत्तर प्रदेश, पंजाब, सिक्किम, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में हैं। कोकीन पसंद करने वालों में मुंबई का नाम सबसे पहले आता है। इसके अलावा मिजोरम की करीब 7 फीसदी आबादी ओपियोड का इस्तेमाल करती है। उसके बाद नगालैंड (6.5 फीसदी), अरुणाचल प्रदेश (5.7 फीसदी) और सिक्किम (5.1 फीसदी) हैं। एनबीसी के अनुसार कोकीन के भारत में करीब 10.7 लाख यूजर्स हैं, अवैध ड्रग बहुत महंगी होती है इसलिए एक खास वर्ग के लोग ही इसे खरीद पाते हैं। कोकीन के सबसे ज्यादा यूज़र महाराष्ट्र (90,000), पंजाब (27,000), राजस्थान (10,000) और कर्नाटक (8,000) में हैं।।