कभी चपरासी की नौकरी करते थे फेविकोल के मालिक, ऐसे बना फेविकोल का मजबूत जोड़।।

 
कभी चपरासी की नौकरी करते थे फेविकोल के मालिक, ऐसे बना फेविकोल का मजबूत जोड़।।

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

हटके, 29 सितंबर:- परिस्थितियों का रोना वही लोग रोते हैं जिन्हें खुद पर विश्वास और कुछ बेहतर करने की उम्मीद नहीं होती, अगर आप सीखना चाहते हैं कि कैसे परेशानियों से लड़ कर सफलता के शिखर को छुआ जाता है तो आपको बलवंत पारेख के बारे में जरूर जानना चाहिए। बलवंत पारेख उन चंद उद्योगपतियों में से थे जिन्होंने आजाद हिंदुस्तान की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में अपना सहयोग दिया, आज उनका परिवार और उनकी कंपनी भले ही अरबों में हो लेकिन बलवंत पारेख के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था।

अपनी सफलता से दुनियाभर में अपने नाम का परचम लहराया:- बलवंत पारेख ने अपनी सफलता से दुनियाभर में अपने नाम का परचम लहराया है। वे फेविकोल कंपनी के संस्थापक हैं। साथ ही इनका नाम भारत के बड़े उद्योपतियों में के लिस्ट में भी शामिल है। बलवंत पारेख का जन्म साल 1925 में गुजरात के एक छोटे से गांव महुआ में एक मिडिल क्लास फैमिली में हुआ था। बचपन से ही उनका सपना था कि वे एक व्यापारी बनें, परंतु घर वाले नहीं चाहते थे कि वे एक व्यापारी बने। उनके पिता चाहते थे कि वे एक वकील बने। वकालत की पढ़ाई के लिए उन्हें मुम्बई भी जाना पड़ा था। वहां जाने के बाद उनका नामांकन सरकारी लॉ कॉलेज में करा दिया गया था।

भारत छोड़ो आन्दोलन’ का हिस्सा बने:- बलवंत पारेख ने अपनी इच्छा को दबाकर घरवालों के सपने पूरे करने के लिए वकालत की पढ़ाई करने लगे, मगर उनका मन कहीं और ही लगा था। उस वक्त पूरे देश में क्रांति की आग फैली हुई थी और देश के ज्यादातर युवा गांधी के विचारों से प्रभावित थे। गांधी के समर्थन में बाकी युवाओं के साथ बलवंत पारेख भी शामिल थे। उस समय बलवंत पारेख गांधी के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का हिस्सा बने थे। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल होने से उनकी एक साल की पढ़ाई छूट गई थी, लेकिन उन्होंने फिर से अपनी पढ़ाई आरंभ की और डिग्री हासिल को हासिल किया। वकालत की डिग्री हासिल करने के बावजूद भी उन्होंने कभी वकालत नहीं किया क्योंकि यह उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था। बलवंत पारेख एक सत्यवादी थे और हमेशा सत्य की राहों पर चलते थे। उन्होंने अपनी रोजी-रोटी के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी की। बलवंत हमेशा से ही अपना खुद का व्यवसाय शूरू करना चाहते थे। एक दिन उन्होंने अपनी जॉब छोड़ने का फैसला लिया और एक लकड़ी के व्यापारी के यहां चपरासी का काम करने लगे।

लकड़ी व्यापारी की दुकान पर करने लगे चपरासी की नौकरी:- चपरासी की नौकरी करते समय बलवंत पारेख को अचानक जर्मनी जाने का अवसर मिला। उन्होंने अपने मन में अपना खुद का व्यापार करने का योजना बनाई और पश्चिमी देशों से कुछ जरुरी चीजे मंगवाने लगे। जिससे उन्हें अपने बिजनेस को शुरू करने में मदद मिली। उस समय हमारा देश भी आजाद हो चुका था। देश में देशी चीजें बनाने और बेचने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा था। बलवंत पारेख ने भी इसी बीच साल 1959 में पिडिलाइट ब्रांड की स्थापना की। बात उस वक्त की है जब बलवंत पारेख लकड़ी के व्यापारी के यहां चपरासी के काम कर रहे थे। वहां उन्होंने देखा कि कारपेंटर को लकड़ियों को जोड़ने में बहुत मुश्किलें होती थी। उन्होंने देखा कि कारपेंटर लकड़ियों को जोड़ने के लिए चर्बी का इस्तेमाल कर रहे थे, जो उनके लिए एक चुनौती से कम नहीं था। उनकी तकलीफें बलवंत पारेख से देखी नहीं गई। यही से उन्होंने कुछ ऐसा करने का सोचा, जिससे इन सभी मुश्किलों को कम किया जा सके। बलवंत पारेख ने अपनी लगन और मेहनत से फेविकोल बनाने में कामयाब हुए। बलवंत पारेख की इस सफलता ने यह साबित कर दिखाया कि किसी भी व्यक्ति को किसी दूसरे के दिखाए गए रास्ते पर नहीं बल्कि अपने मन की सुनकर आगे बढ़ना चाहिए। ऐसे में एक दिन आप जरूर कामयाब होंगे।

देश की आजादी के बाद बलवंत को मिल गया उनका आसमान:- बलवंत के लिए अब समय आ चुका था अपनी किस्मत बदलने का, इसकी शुरुआत उन्होंने अपने बिजनेस करने के सपने को पूरा करने के साथ की, उन्हें अपने आइडिया के लिए निवेशक मिल गया तथा उन्होंने पश्चिमी देशों से साइकिल, एक्स्ट्रा नट्स, पेपर डाई इत्यादि आयात करने का बिजनेस शुरू किया। इस बिजनेस की शुरुआत के साथ ही उनका बुरा वक्त भी दूर होने लगा। इसके बाद वह किराये के घर से निकल कर अपने परिवार के साथ एक फ्लैट में रहने लगे, उनका व्यापार अच्छा चल रहा था लेकिन उन्हें अच्छा नहीं बल्कि बेहतरीन काम करना था, सफलता की ऊंचाइयों को छूना था, फेविकोल में कोल शब्द का मतलब है दो चीजों को जोड़ना। बलवंत पारेख ने यह शब्द जर्मन भाषा से लिया, इसके अलावा जर्मनी में पहले से ही एक मोविकोल नामक कंपनी थी, वहां भी ऐसा ही गोंद बनता था। पारेख ने इस कंपनी के नाम से प्रेरित होकर अपने प्रोडक्ट का नाम फेविकोल रख दिया। फेविकोल ने लोगों की बहुत सी समस्याओं का हाल निकाल दिया था। यही वजह रही कि देखते ही देखते ये प्रोडक्ट पूरे देश भर में प्रचलित हो गया। फेविकोल ने पिडिलाइट कंपनी को वो पंख दिए जिसके दम पर इस कंपनी ने सफलता का पूरा आसमान नाप दिया। बढ़ती मांग के बाद कंपनी ने फेवि क्विक, एम-सील आदि जैसे नए प्रोडक्ट लॉन्च किए, एक चपरासी का काम करने वाले बलवंत पारेख द्वारा स्थापित की गई इस कंपनी का रेवेन्यू आज हजारों करोड़ में है। इसके साथ ही इस कंपनी ने हजारों लोगों को रोजगार भी दिया है।।