हिंदी का राष्ट्रीय भाषा न बन पाना चिंता का विषय

लब्धप्रतिष्ठ कवि सुरेश नारायण दुबे 'व्योम' के संयोजकत्व में आयोजित संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों ने भारत एवं प्रदेश सरकारों से हिंदी को राष्ट्रीय भाषा घोषित करने की मांग दोहराई।
 
हिंदी का राष्ट्रीय भाषा न बन पाना चिंता का विषय

हिंदी का राष्ट्रीय भाषा न बन पाना चिंता का विषय

‘भारत चेतना अभियान’ द्वारा आयोजित हिंदी पखवारा की गोष्ठी में हिंदीप्रेमियों ने व्यक्त किए विचार।

 

डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क

प्रतापगढ़, 25 सितम्बर।

‘भारत चेतना अभियान’ के तत्वावधान में शहर के पलटन बाजार मोहल्ले में स्थित राष्ट्रीय पूर्व गौरवशाली सैनिक कल्याण संगठन के कार्यालय पर राम आसरे सिंह की अध्यक्षता में हिंदी पखवारा गोष्ठी संपन्न हुई।

लब्धप्रतिष्ठ कवि सुरेश नारायण दुबे ‘व्योम’ के संयोजन में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित हिंदीप्रेमियों ने भारत में हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा न मिल पाने को चिंता का विषय बताते हुए कहा कि साहित्यकारों द्वारा हिंदी को स्थायित्व प्रदान करने का अनवरत प्रयास करना होगा। इस प्रयास से अपने मिशन में एक दिन सफलता अवश्य प्राप्त होगी।

गोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों ने भारत एवं प्रदेश सरकारों से हिंदी को राष्ट्रीय भाषा घोषित करने की मांग दोहराई।

गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि लोकतंत्र रक्षक सेनानी एवं वरिष्ठ अधिवक्ता पंडित राम सेवक त्रिपाठी ‘प्रशांत’ ने सुनाया –

“सच पूछो यदि रत्ना न होती,
तो हिंदी कहीं पड़ी होती।
माथे पर उसके रामायण की,
बिंदी नहीं जड़ी होती।”

उन्होंने हिंदी को सशक्त भाषा करार दिया।

वहीं, वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश संभव ने अपने काव्य पाठ में सुनाया –

“मौन को तोड़ो,
तुम्हारी जीत मेरी हार कविते,
बुझ रहे हैं हृदय के अंगार कविते”

उन्होंने इन पंक्तियों का गीत पढ़कर गोष्ठी को ऊंचाइयों प्रदान की।

गोष्ठी में कविकुल अध्यक्ष परशुराम उपाध्याय सुमन, समाजसेवी व शिक्षक राजेश कुमार मिश्र, कार्यक्रम के संयोजक सुरेश नारायण द्विवेदी “ब्योम”, अवधेश नारायण पांडेय एवं अध्यक्षता कर रहे राम आसरे सिंह ने भी विविध रचनाएं तथा सारगर्भित विचार प्रस्तुत कर कार्यक्रम को सफल बनाया।