युवती को देह व्यापार के धंधे से बचा कर युवक ने किया प्रेम विवाह, कौन है बांछडा समुदाय के लोग जो करते है अपनी बेटियों का सौदा।।

बेड़िया-बाछड़ा बेटियों की देह पर जीता एक समाज, जिनकी जिंदगी नाचते-नाचते देह व्यापार तक पहुंची।।
 
युवती को देह व्यापार के धंधे से बचा कर युवक ने किया प्रेम विवाह, कौन है बांछडा समुदाय के लोग जो करते है अपनी बेटियों का सौदा।।

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

हटके, 15 अक्टूबर:- प्यार, केवल ढाई अक्षर का छोटा-सा शब्द अपने आपमें कितने सारे अर्थ समेटे हुए है। प्रेम के विराट स्वरूप और उसके अनंत छोर तक फैले असीमित विस्तार सहित मानव जीवन के लिए उसकी अनिवार्यता का अंदाजा महज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस छोटे से शब्द की विस्तृत सत्ता तथा महिमा के संबंध में न जाने कितने ही कवियों, गीतकारों, शायरों, संत-महात्माओं द्वारा इतना कुछ कहा एवं लिखा जा चुका है कि अब कुछ और कहे या लिखे जाने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती। फिर भी इसके महत्व एवं अस्तित्व के विषय में अनुभवी व्यक्तियों द्वारा अपने मत लिखे जाने का सिलसिला अनवरत जारी है। अभी भी ऐसी कमी महसूस की जा रही है कि प्रेम के संबंध में बहुत कुछ लिखा जाना शेष है, जो अनकहा रह गया है। दोस्तों प्यार कभी भी किसी से भी हो सकता है और जब ये होता है तो उंच नीच, रंग, जात पात कुछ नही देखता है। लोग अपने प्यार को पाने के लिए हर मुश्किल को पार कर देते है। कुछ लोग तो अपनी जान तक देने से पीछे नही हटते है। प्यार करने के बाद इन्सान में एक अलग ही जनून देखने को मिलता है।

दोनों में बस एक ही समानता है, जब ये चलती है तो जान लेती है, आख़िर बंदूक़ की गोली में ऐसा क्या होता है कि जिस्म में घुसते ही इंसान की मौत हो जाती है?

प्रेमिका को पाने के लिए अपनी जान तक खतरे में डाल दी:- ऐसी ही एक घटना मध्यप्रदेश में देखने को मिली है, जहाँ आकाश नाम के लडके ने अपनी प्रेमिका को पाने के लिए अपनी जान तक खतरे में डाल दी, आकाश ने अपनी प्रेमिका से शादी कर पूरे समाज को एक सकारात्मक संदेश भी दिया है। आकाश ने भारती नाम की लडकी से कोर्ट में पहुंचकर शादी की है जहाँ उसके द्वारा उठाये गये कदम को देखकर सभी लोगो ने तालियाँ बजाकर उनका स्वागत किया है। दरअसल भारती और आकाश उस समुदाय में रहते है जहाँ माँ बाप अपनी लडकियों को वेश्यावृत्ति के दंगल में धकेल देते है। छोटी-छोटी बच्चियों को गंदे काम करने पर मजबूर किया जाता है।

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यहाँ होता है युवतियों के सौदा:- मालवा के नीमच, मंदसौर और रतलाम जिलो के आसपास इस तरह के समुदाय के 250 डेरे है जहाँ लडकियों को बेचना आम बात है। बांछडा समुदाय में बच्चियों के साथ होने वाले अन्याय को देखकर आकाश ने आवाज उठाई और उसने तय कर लिया कि अगर पुलिस प्रशासन इस गंदगी को नही मिटाता तो वह इसे खत्म करेगा। जिसके बाद आकाश ने फ्रीडम फर्म नाम के एक NGO के साथ मिलकर 60 लडकियों को गलत काम करने के दलदल से बाहर निकाला। 3 साल पहले रेस्क्यू के दौरान आकाश पहली बार भारती से मिला था। तब वह काफी छोटी थी और आगे पढना चाहती थी जबकि उसकी माँ उसे बेचना चाहती थी, आकाश ने भारती को जैसे तैसे उस नर्क से बाहर निकाला और उसे हॉस्टल पढाई करने भेज दिया था। आज दोनों ने शादी कर प्यार की एक नई मिसाल पेश की है। भारती को पाना आकाश के लिए आसान नही था लेकिन उसने अपनी जान की परवाह किये बिना उसे आज़ाद किया। इसके बाद आकाश ने भारती को पढने के लिए हॉस्टल में भर्ती करवाया जहाँ वह सुरक्षित रह सके, भारती की जिन्दगी तो आकाश ने बर्बाद होने से बचा ली लेकिन 250 समुदाय में न जाने और कितनी बच्चियां होगी जिन्हें चंद पैसो के लिए उनके माँ बाप नर्क में धकेल रहे है।

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कौन है बांछड़ा समुदाय के लोग:- बेटियों से दुराचार की खबरें अखबार के फ्रंट पेज की सुर्खियां बनते-बनते अब अंदर के किसी कोने के एक कॉलम में सिमटने लगी हैं। इन खबरों पर 50 शब्द भी खर्च करना भारी लगता है, न्याय दिलाने की आवाजे दिन में उठती हैं और शाम को कैंडिल मार्च की रौशनी के साथ खत्म हो जाती है। अगली सुबह नई होती है, नई खबर और पुरानी वारदात पुरानी हो जाती है। किन्तु, मध्य प्रदेश के कुछ गांव ऐसे हैं, जहां बेटियों के लिए हर सुबह और हर रात एक जैसी है। जहां एक ओर देश का पढ़ा-लिखा वर्ग भी बेटी को गर्भ में ही मारने पर उतारू है, वहीं दूसरी ओर ये गांव मिसाल हैं, क्योंकि यहां बेटी पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है। एक बेटी यानी कम से कम दो पुश्तों की आमदनी। हम बात कर रहे हैं मप्र के मालवा में बसे बेड़िया-बाछड़ा समाज की, वह समाज जो बेटियों की देह पर जिंदा है। देह व्यापार इन परिवारों के लिए बुरा नहीं है, बल्कि वह लघु उद्योग है, जिसे उनके पुरखे करते आए हैं और युवा वर्ग आगे ले जा रहा है।

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नाचते-नाचते देह व्यापार तक पहुंची जिंदगी:- बेड़िया-बाछड़ा समुदाय भारतीय व्यवस्था का वह हिस्सा है, जो सबसे निचले दर्जे का नाम जाता है। यह हमेशा बड़े-बड़े लोगों के सानिध्य में फलता-फूलता रहा, समाज के जानकार बताते हैं कि भारत में अंग्रेजों के शासन से पहले जब मुगल सत्ता का अधिपत्य था, तब से यह समाज मनोरंजन करके पेट पालता रहा है। निचले दर्जे का होने के कारण खेतों में काम करने नहीं मिला, तो पेट पालने के लिए इन्हें नट-नाटक-नौटंकी शुरू करनी पड़ी। यह साफ सुधरा तरीका था, जिससे रोजी-रोटी चल रही थी, नौटंकी में पहले पुरूष ही महिला का भेषधर कर खेल-तमाशे दिखाते थे। जब समाज में ही प्रतियोगिता ने जगह ले ली तो कुछ परिवारों ने अपनी बेटियों को इसमें शामिल किया। मप्र का राई लोकनृत्य इसी समाज की देन माना जाता है, जिसमें ताल देने वाला एक पुरूष होता है और उसके साथ कई नृत्कियां घूंघट ओढ़कर नाचती दिखती हैं। मालवा में यह कला आज भी ​जीवित है और कलाकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पा चुके हैं। बहरहाल नृत्य करना समाज की महिलाओं का काम बना और इसे देखकर मनोरंजन करना जमींदारों का, मुगल शासन आते तक इस शौक में इजाफा होने लगा। कोई लागत नहीं और केवल मुनाफे ही मुनाफे को देखकर यह काम चलन में आ गया। नृत्य-संगीत की कला के साधक बने बेड़िया-बाछड़ा समाज को उन्हें बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखा गया। वे शादी-ब्याह, बच्चे जन्म और शुभ कामों में नाचने का काम करते और पेट पालते रहे। फिर संगीत कार्यक्रम के लिए जहां ग्राहक तलाशना मुश्किल था वहीं देह व्यापार में ग्राहकों का तांता लग गया। देखते ही देखते समाज के पुरूषों ने वाद्य यंत्रों से किनारा किया और दलाली के काम में उतर गए। आज मलवा के मंदसौर में इस समाज की मुख्य देहमंडी है।

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प्रयासों को मुंह चिढ़ाती जिद:- मंदसौर और आसपास के जिलों में करीब 200 सालों से भी ज्यादा वक्त का इतिहास लिए देह व्यापार बदस्तूर जारी है, ऐसा नहीं है कि समाज के उन्मूलन के लिए काम नहीं हुए। सरकार ने अपनी ओर से पहला प्रयास निर्मल अभियान के तौर पर 11 अगस्त 1998 में किया था। लेकिन यह प्रयास इनके काम को बंद करने से ज्यादा सुरक्षित करने के रूप में सामने आया। हुआ यूं कि कार्यक्रम के तहत सरकार ने यहां एड्स के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास किया और समुदाय की महिलाओं की स्वास्थ्य जांच शुरू की, जो नियमित की जाती रही।।