उत्तराखंड में सात साल बाद फिर से जल प्रलय, क्या पर्यावरण से लगातार हो रहा खिलवाड़ तो नही बन रही वजह।।

 
उत्तराखंड में सात साल बाद फिर से जल प्रलय, क्या पर्यावरण से लगातार हो रहा खिलवाड़ तो नही बन रही वजह।।

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

चमोली, 08 फरवरी:- उत्तराखंड ने 7 साल बाद एक बार फिर प्राकृतिक आपदा देखी है, चमोली जिले में अचानक पानी का सैलाब उमड़ पड़ा और रास्ते में आने वाली हर चीज को तबाह कर दिया। ग्लेशियर टूटने को इसका कारण बताया गया, इससे पहले 2013 में केदारनाथ में ऐसी भयानक आपदा देखने को मिली थी। जिसमें हजारों लोगों ने सैलाब की चपेट में आकर अपनी जान गंवाई, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि आखिर हिमालयी क्षेत्रों में ऐसी आपदा का कारण क्या है?

उत्तराखंड में सात साल बाद फिर से जल प्रलय, क्या पर्यावरण से लगातार हो रहा खिलवाड़ तो नही बन रही वजह।।

क्या स्टोर वाटर के निकलने से आई आपदा:- इस मौषम में किसी ग्लेशियर का टूटना काफी अजीब बात है, या तो वहां पर कोई लेक रही होगी, या फिर ये किसी एवलॉन्च की वजह से हुआ है, इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि अगर हिमस्खलन हुआ है, तो उसके साथ पत्थर भी आते हैं, उसने नदी को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया होगा। जिसके बाद वहां पानी भरता चला गया और जब ये टूटा तो नीचे एक साथ सैलाब आया, ऐसा इसलिए क्योंकि पानी एक ही फ्लो में आया। एक बार पानी आया और फिर बंद हो गया, कुछ ही देर बाद नदी का जलस्तर सामान्य हो गया, ये स्टोर वाटर के निकलने से ही हुआ है।

उत्तराखंड में सात साल बाद फिर से जल प्रलय, क्या पर्यावरण से लगातार हो रहा खिलवाड़ तो नही बन रही वजह।।

ग्लोबल वार्मिग के कारण पेड़-पौधों का जीवनचक्र प्रभावित:- प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का असर व्यापक रूप से दिखाई देने लगा है। मानसून आने में देरी, भूगर्भ जल स्तर में कमी के बाद अब पेड़-पौधों ने भी असमय ही सूखना शुरू कर दिया है। वातावरण में आ रहे बदलाव के कारण इमारती लकड़ी का महत्वपूर्ण स्रोत शीशम के पेड़ कई वर्षो से अचानक सूखने लगे हैं। उम्रदराज पेड़ों के अलाव नई उम्र के पेड़ भी जल्दी ही धरती का साथ छोड़कर सूख गए। ग्लोबल वार्मिग के कारण पेड़-पौधों का जीवनचक्र भी बुरी तरह गड़बड़ा गया है।

उत्तराखंड में सात साल बाद फिर से जल प्रलय, क्या पर्यावरण से लगातार हो रहा खिलवाड़ तो नही बन रही वजह।।

17 जून 2013 केदारनाथ का प्रलय:- हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्य अपेक्षाकृत दूरस्थ और वन, पर्वत श्रेणियों तथा बर्फ से ढके चोटियों से भरे हुए हैं। यहाँ कई तीर्थ स्थलों के साथ-साथ देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण हेतु प्राकृतिक दृश्य विद्यमान है। 17 जून 2013 को उत्तराखंड राज्य में हुयी अचानक मूसलधार वर्षा 340 मिलीमीटर दर्ज की गयी जो सामान्य बेंचमार्क 65.9 मिमी से 375 प्रतिशत ज्यादा थी जिसके कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुयी। इसी दौरान अचानक उत्तरकाशी में बादल फटने के बाद असिगंगा और भागीरथी में जल स्तर बढ़ गया। वहीं लगातार होती रही बारिश की वजह से गंगा और यमुना का जल स्तर भी तेजी से बढ़ा। कुमाऊं हो या गढ़वाल मंडल, बारिश हर जगह बेतरह होती रही। हरिद्वार में भी गंगा खतरे के निशान के करीब पहुंच गई जिसके चलते गंगा तट पर बसे सैकड़ों गांवों में बाढ़ का पानी घुस गया। नतीजा जनजीवन ठहर सा गया। हिमाचल प्रदेश यद्यपि उत्तराखंड का पड़ोसी राज्य है इसलिए इसका व्यापक प्रभाव वहाँ देखा गया। गर्मियों के दौरान बर्फ पिघलने से जून के महीने में अमूमन यहाँ का मौसम नम होता है, किन्तु व्यापक आपदा की स्थिति से मौसम विभाग का पूर्वानुमान ही सुरक्षा कवच बन सकता था। भारी बारिश के बारे में सरकारी एजेंसियों और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा पहले से व्यापक प्रचार नहीं दिया गया। इस वजह से हजारों लोगों के जीवन और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ।।