आइये चले राजस्थान की सैर, क्या खास है माउंट आबू में।।

 
आइये चले राजस्थान की सैर, क्या खास है माउंट आबू में।।

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

यात्रा, 06 फरवरी:- भारत देश की प्राचीन संस्कृति और यहां के बने हुए प्राचीन स्थल पूरे दुनिया के पर्यटकों का आकर्षण का कारण है। जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है। वही इसके साथ साथ राजस्थान भी यात्रा के लिए बहुत से राज को संजोए रखा है, यहाँ पर समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आबू पर्वत (माउण्ट आबू) राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है, इस शहर का प्राचीन नाम अर्बुदांचल था, इस स्थान पर साक्षात भगवान शिव ने भील दंपत्ति आहुक और आहूजा को दर्शन दिए थे।

आइये चले राजस्थान की सैर, क्या खास है माउंट आबू में।।

यह अरावली पर्वत का सर्वोच्च शिखर, जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थान तथा राज्य का ग्रीष्मकालीन शैलावास है। अरावली श्रेणियों के अत्यंत दक्षिण-पश्चिम छोर पर ग्रेनाइट शिलाओं के एकल पिंड के रूप में स्थित आबू पर्वत पश्चिमी बनास नदी की लगभग 10 किमी संकरी घाटी द्वारा अन्य श्रेणियों से पृथक् हो जाता है। पर्वत के ऊपर तथा पार्श्व में अवस्थित ऐतिहासिक स्मारकों, धार्मिक तीर्थमंदिरों एवं कलाभवनों में शिल्प-चित्र-स्थापत्य कलाओं की स्थायी निधियाँ हैं। यहाँ की गुफा में एक पदचिहृ अंकित है जिसे लोग भृगु का पदचिह् मानते हैं। पर्वत के मध्य में संगमरमर के दो विशाल जैनमंदिर हैं।

राजस्थान के सिरोही जिले में है स्थित:- राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित अरावली की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सों की तरह गर्म नहीं है। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां का ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक खूबसूरती सैलानियों को अपनी ओर खींचती है। 1190ई के दौरान आबू का शासन राजा जेतसी परमार भील के हाथो में था, बाद में आबू भीम देव द्वितीय के शासन का क्षेत्र बना माउंट आबू चौहान साम्राज्य का हिस्सा बना। बाद में सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों का पसंदीदा स्थान था।

प्राचीन काल से है साधु संतों का निवास:- माउंट आबू प्राचीन काल से ही साधु संतों का निवास स्थान रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं। कहा जाता है कि महान संत वशिष्ठ ने पृथ्वी से असुरों के विनाश के लिए यहां यज्ञ का आयोजन किया था। जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूजनीय तीर्थस्थल बना हुआ है। एक कहावत के अनुसार आबू नाम हिमालय के पुत्र आरबुआदा के नाम पर पड़ा था। आरबुआदा एक शक्तिशाली सर्प था, जिसने एक गहरी खाई में भगवान शिव के पवित्र वाहन नंदी बैल की जान बचाई थी।

ग्रीष्मकालीन पर्वतीय आवास स्थल और पश्चिमी भारत का प्रमुख पर्यटन केंद्र:- प्राकृतिक सुषमा और विभोर करनेवाली वनस्थली का पर्वतीय स्थल ‘आबू पर्वत’ ग्रीष्मकालीन पर्वतीय आवास स्थल और पश्चिमी भारत का प्रमुख पर्यटन केंद्र रहा है। यह स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के साथ एक परिपूर्ण पौराणिक परिवेश भी है। यहाँ वास्तुकला का हस्ताक्षरित कलात्मकता भी दृष्टव्य है। आबू का आकर्षण है कि आए दिन मेला, हर समय सैलानियों की हलचल चाहे शरद हो या ग्रीष्म। दिलवाड़ा मंदिर यहाँ का प्रमुख आकर्षण है। माउंट आबू से 15 किलोमीटर दूर गुरु शिखर पर स्थित इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथंकरों को समर्पित हैं। दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियाँ भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। दिलवाड़ा के मंदिरों से 8 किलोमीटर उत्तर पूर्व में अचलगढ़ किला व मंदिर तथा 15 किलोमीटरदूर अरावली पर्वत शृंखला की सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर स्थित हैं। इसके अतिरिक्त माउंट आबू में नक्की झील, गोमुख मंदिर, माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य आदि भी दर्शनीय हैं।

निकटतम हवाई अड्डा:- माउंट आबू से निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर यहाँ से 185 किलोमीटर दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुँचने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएँ ली जा सकती हैं। समीपस्थ रेलवे स्टेशन आबू रोड 28 किलोमीटर की दूरी पर है जो अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर और जोधपुर से जुड़ा है। माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़ा है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिए अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं।

प्रसिद्ध यात्रा स्थल जहाँ की सैर आपको हमेशा याद रहेगी।

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पाली में बुलेट बाबा का मंदिर, हैरतअंगेज है चमत्कार की कहानी:- यहां पर मूर्ति नहीं, बाइक से लिया जाता है आशीर्वाद, राजस्थान के पाली में स्थित ओम बन्ना सा का मंदिर अन्य सभी मंदिरों से बिल्कुल अलग है। इस मंदिर की विशेषता यहां भगवान की मूर्ति नही, बल्कि एक मोटरसाइकिल और उसके साथ रखी ओम सिंह राठौर की फोटो है, जिसकी लोग पूजा करते हैं।

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भक्त के रूप में ये वानर करता है हनुमान जी की सेवा:- जिस तरह भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान थे, ठीक उसी तरह अजमेर के बजरंगगढ़ में भी हनुमान जी का एक भक्त वानर रूप में सामने आया है जिसका नाम रामू है। रामू वर्षों से हनुमान जी के इस मंदिर की पहरेदारी कर रहा है। रामू पूरा दिन बजरंगगढ़ की पहरेदारी करने के साथ-साथ तिलक लगवाना, मंदिर की घंटी बजाना, गिलास से उठाकर पानी पीना, बालाजी के भजन पर नृत्य करना जैसे कई अद्भूत क्रियाकलाप करता है। रामू पूरा समय मंदिर में ही रहता है, यहीं खाता-पीता है, सोता है।

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सूर्यास्त के बाद राजस्थान के इस शहर में रूकने पर बन जाते हैं पत्थर:- मंदिरों की शिल्प कला के लिए विख्यात किराडू राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित है। यहां के मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। किराडू को राजस्थान का खजुराहों भी कहा जाता है। खजुराहो जैसा दर्जा पाने के बाद भी यह जगह पिछले 900 सालों से वीरान है। दिन में जरूर यहां कुछ चहल-पहल देखी जा सकती है लेकिन सूर्यास्त होते ही यह जगह वीरान हो जाती है। माना जाता है कि यहां सूर्यास्त के बाद जो भी रूकता है वह पत्थर में बदल जाता है।

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जयबाण तोप:- जयबाण तोप विश्व की सबसे बड़ी तोप है, जो राजस्थान के जयपुर की शान है। यह तोप जयगढ़ किले में स्थित है और राजस्थान के इतिहास की अमूल्य धरोहर है। जयबाण तोप की मारक क्षमता लगभग 35.2 कि.मी. है।

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ब्लू सिटी:- जोधपुर थार के रेगिस्तान के बीच अपने ढेरों शानदार महलों, दुर्गों और मन्दिरों वाला प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है। वर्ष पर्यन्त चमकते सूर्य वाले मौसम के कारण इसे ‘सूर्य नगरी’ भी कहा जाता रहा है। यहां स्थित मेहरानगड़ दुर्ग को घेरे हुए हजारों नीले मकानों के कारण इसे ‘नीली नगरी’ के नाम से भी जाना जाता था।

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राजस्थान का एक ऐसा गांव जहां है भूतों का डेरा कुलधरा (भूतों का गांव):- जैसलमेर से केवल 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है एक ऐसा गांव जहां रात के अंधेरे में कोई भी जाना पसंद नहीं करता है क्योंकि यहां हरपल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है। इस गांव में अंधेरा होते ही महिलाओं के बात करने, उनकी चूडियों और पायलों की आवाज हमेशा ही वहां के माहौल को भयावह बनाते हैं।

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इस दरगाह में हिंदू-मुस्लिम साथ मनाते हैं जन्माष्टमी:- राजस्थान के शेखावाटी में शक्कर बार बाबा की दरगाह कौमी एकता की जीवंत मिसाल है। यहां सभी धर्मों के लोगों को अपनी पद्धति से पूजा अर्चना करने का अधिकार है। कौमी एकता के प्रतीक के रूप में यहां प्राचीन काल से कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से हिंदुओं के साथ मुसलमान भी पूरी श्रद्धा से शामिल होते हैं।

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यहां खाते हैं प्रेमी प्यार की कसमें, मांगते हैं साथ रहने की मन्नतें:- प्रेम तथा धार्मिक आस्था की प्रतिक ‘लैला मजनूं की मज़ार’ राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले की अनूपगढ तहसील में भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बिन्जौर गाँव में स्तिथ है। लैला-मजनू का ये अंतिम स्मारक पाकिस्तान से महज़ 2 किलोमीटर दूर है। माना जाता है कि लैला-मजनू ने अपने प्यार में विफल होने पर यही जान दी थी। ख़ास बात यह रही कि जीते-जी वे नही मिल पाये लेकिन मरने के बाद उन दोनो की मज़ारे पास-पास है। इस जगह पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही श्रद्धालु सर झुकाते है।

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ब्रह्मा मंदिर:- संसार भर में जगत पिता ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित है। मान्यता है कि मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल के दौरान अनेकों हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। ब्रह्मा जी का यही एकमात्र मंदिर है जिसे औरंगजेब छू तक नहीं पाया। इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था। यहां मंदिर के साथ ही सुंदर और पवित्र झील भी है। जिसे पुष्कर झील कहा जाता है।

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भूतों का गांव भानगढ़:- देश-विदेश में भूतों के बसेरे के नाम से चर्चित भानगढ़ का प्रेतग्रस्त किला राजस्थान के जयपुर से 80 किलोमीटर दूर स्थित है। 1573 में आमेर के राजा भगवंतदास द्वारा बनवाए गए भानगढ़ किले के रातों रात खण्डहर में तब्दील हो जाने के बारे में कई कहानियाँ मशहूर हैं। यहां सूर्यास्त के बाद किसी को भी रूकने नहीं दिया जाता है। कहते है यहां रात में भूतों का बाजार लगता है।

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थार की वैष्णों देवी हैं तनोट माता:- जैसलमेर से लगभग 120 किमी दूर स्थित है तनोट देवी का मंदिर, जो जैसलमेर के भूतपूर्व भाटी शासकों की कुल देवी मानी जाती हैं। वर्तमान में इस मंदिर में सेना तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान पूजा करते हैं, यह जैसलमेर के सेना के जवानों की देवी के रूप में विख्यात हैं। इन माता को थार की वैष्णों देवी भी कहा जाता है। सन् 1965 ई. में तनोट में देवी मंदिर के सामने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में भारत की विजय का प्रतीक विजय स्तम्भ भी स्थापित हैं।

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मां करणी देवी मंदिर:- मां करणी देवी का विख्यात मंदिर राजस्थान के बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर गांव देशनोक की सीमा में स्थित है। इसे चूहे वाले मंदिर के नाम से भी देश और दुनिया के लोग जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है।

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अरावली क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी, नाम है गुरू शिखर:- माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। माउंट आबू में अनेक पर्यटन स्थल हैं। जिनमें से एक है गुरू शिखर। अरावली क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी है गुरू शिखर। जो माउंट आबू से 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह 1722 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस पर्वत की चोटी पर गुरू दत्तात्रय का एक प्राचीन मंदिर है। जोकि भगवान दत्तात्रय को समर्पित है।

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श्री वीर तेजाजी के नाम की ताँती बाँधने पर सर्पदंश जहर का कोई असर नहीं होता:- तेजाजी राजा बाक्साजी के पुत्र थे। बचपन में ही उनके साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। एक बार अपने हाली (साथी) के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उसकी ससुराल गए। बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए गए। रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक सांप घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डँसना चाहता है।

तब तेजा उसे वचन देते हैं कि अपनी बहन की गाएं छुड़ाने के बाद मैं वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डँस लेना। अपने वचन का पालन करने के लिए डाकू से अपनी बहन की गाएं छुड़ाने के बाद लहुलुहान अवस्था में तेजा नाग के पास आते हैं। तेजा को घायल अवस्था में देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है, मैं दंश कहां मारुं। तब वीर तेजा उसे अपनी जीभ पर काटने के लिए कहते हैं।

वीर तेजा की वचनबद्धता को देखकर नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है कि आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीड़ित होगा, उसे तुम्हारे नाम की ताँती बाँधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा। उसके बाद नाग तेजाजी की जीभ पर दंश मारता है। तभी से भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी के मंदिरों में श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति वहां जाकर तांती खोलते हैं।।