ईसाई धर्म अपनाने के बाद भी अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र लगाकर ली गई नौकरी को निरस्त करने की मांग।

ईसाई धर्म अपनाने के बाद अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र पर लगाकर लखनऊ के एसजीपीजीआई में नौकरी लेने का मामला प्रकाश में आया है।
ईसाई धर्म अपनाने के बाद भी अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र लगाकर ली गई नौकरी को निरस्त करने की मांग।

डा. एस. के. पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क

लखनऊ, 7 फरवरी।
ईसाई धर्म अपनाने के बाद भी अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र लगाकर ली गई नौकरी को निरस्त करने की मांग उठाई जा रही है।

लखनऊ के एसजीपीजीआई में अनुसूचित जाति के फर्जी प्रमाण पत्र पर सिस्टर ग्रेड टू में नौकरी पाने का मामला सामने आया है।

डीएम के प्रमाण पत्र निरस्त करने के बाद एसजीपीजीआई ने भी जांच कमेटी बना दी है।

मामला सामने आने के बाद एसजीपीजीआई, केजीएमयू, लोहिया संस्थान सहित अन्य चिकित्सा संस्थानों में वर्ष 2012 के बाद हुईं नर्सिंग की सभी भर्तियों की नए सिरे से जांच की मांग करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया है।

वर्ष 2013-14 में एसजीपीजीई में सिस्टर ग्रेड टू पर भर्ती हुई थी। आरोप है कि मऊ जिले के मधुबन तहसील की निशा ने अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र पर नौकरी हासिल की।

वर्ष 2019 में हुई जांच में पता चला कि निशा का परिवार ईसाई धर्म अपना चुका है। ऐसे में गलत तरीके से अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र बनवाया गया।

निशा ने अपील की तो कोर्ट के आदेश पर उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाई गई। इसमें अपर आयुक्त (प्रशासन), संयुक्त विकास आयुक्त, श्रमायुक्त आजमगढ़ ने जांच की।

स्थलीय सत्यापन में लोगों के बयान, चर्च के दस्तावेज आदि के आधार पर प्रमाण पत्र को फर्जी करार दिया गया। 16 जनवरी 2020 को इसे निरस्त भी कर दिया गया।

प्रमाण पत्र जारी करने वाले लेखपाल सहित अन्य पर भी रिपोर्ट कराई गई। इसके बाद 10 अक्तूबर 2020 को अपीलीय फोरम की फिर बैठक हुई। इसमें आजमगढ़ मंडल के उपनिदेशक समाज कल्याण, मुख्य राजस्व अधिकारी, उप निदेशक पंचायत, आयुक्त शामिल हुए।

कमेटी ने त्रिस्तरीय जांच आख्या के आधार पर प्रमाण पत्र फर्जी करार देते हुए अग्रिम सुनवाई की अपील खारिज कर दी। मामले में प्रमाण पत्र तैयार करने वाले अफसरों पर भी कार्रवाई को लिखा गया।

मामला एसजीपीजीआई पहुंचा तो हलचल मच गई। आठ जनवरी 2020 को तत्कालीन सीएमएस ने इंडोक्राइनोलॉजी विभाग की प्रो. वीएल भाटिया को जांच अधिकारी बनाकर जांच आख्या सौंपते हुए रिपोर्ट देने के लिए कहा।

उल्लेखनीय है कि संविधान आदेश (अनुसूचित जाति) 1950 के तहत कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति से धर्म परिवर्तन कर सिख या बौद्ध धर्म स्वीकार करता है तो उसे आरक्षण का लाभ मिलेगा, लेकिन वह इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाता है तो अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं रह जाता है।

ऐसे मामलों में बर्खास्तगी के साथ रिकवरी और कूटरचित दस्तावेज तैयार करने की रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है।

वर्ष 2012 के बाद नर्सिंग की सभी भर्तियों की जांच की मांग की गई है। तर्क दिया गया कि आरोपी की बहनें व रिश्तेदार अस्पतालों में गलत प्रमाण पत्रों पर नौकरी हासिल कर चुके हैं। पत्र में आरोप लगाया है कि कई लोगों ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र लगाकर केजीएमयू, लोहिया संस्थान मेें नर्सिंग ग्रेड पर नौकरी हासिल की है।

एसजीपीजीआई के निदेशक प्रो. आरके धीमान ने बताया कि जाति प्रमाण पत्र गलत होने की जानकारी मिली है। विधिक कार्रवाई की प्रक्रिया चल रही है। सेवा नियमावली के तहत गलत जाति प्रमाण पत्र लगाकर नौकरी हासिल करना जुर्म है। जल्द प्रकरण का निस्तारण कर दिया जाएगा।

केजीएमयू के मीडिया प्रभारी डॉ. सुधीर सिंह का कहना है कि पत्रावलियों की जांच कराने संबंधित आदेश आएगा तो कुलपति कार्यालय उस पर विधिक कार्रवाई करेगा।

लोहिया संस्थान के मीडिया प्रभारी डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि संस्थान में अभी तक नियुक्ति में गड़बड़ी संबंधी मामला सामने नहीं आया है। मुख्यमंत्री कार्यालय का आदेश होगा तो जांच कराई जाएगी।