राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा डिग्री कालेजों में प्रोफेसर पद देने की घोषणा को छलावा बताया।

डा० सिद्धार्थ सिंह, संयोजक, लखनऊ विश्वविद्यालय-महाविद्यालय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, का कहना है कि भाजपा शासित उत्तराखंड की सरकार ने अपने ११ जून २०१९ के शासनादेश में २०१० तक के सभी अर्ह एसोसिएट प्रोफेसरों को उनकी अर्हता तिथि से प्रोफेसर पदनाम व वेतनमान दे दिया, और अवशेष का भी भुगतान किया।
 
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा डिग्री कालेजों में प्रोफेसर पद देने की घोषणा को छलावा बताया।

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा डिग्री कालेजों में प्रोफेसर पद देने की घोषणा को छलावा बताया।

डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क

लखनऊ, 29 अक्टूबर।

डा० सिद्धार्थ सिंह, संयोजक, लखनऊ विश्वविद्यालय-महाविद्यालय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, का कहना है कि भाजपा शासित उत्तराखंड की सरकार ने अपने ११ जून २०१९ के शासनादेश में २०१० तक के सभी अर्ह एसोसिएट प्रोफेसरों को उनकी अर्हता तिथि से प्रोफेसर पदनाम व वेतनमान दे दिया, और अवशेष का भी भुगतान किया।

डा सिद्धार्थ सिंह ने आज लखनऊ में जारी एक बयान में कहा कि प्रदेश सरकार अपने ही 15 अक्टूबर 2019 के शासनादेश से कैसे मुकर रही है? पुराने teachers के लिए ugc regulation 2018 ने 2010 में विहित प्रावधानों के अंतर्गत प्रमोशन कराने की छूट 30 जून 2021 तक दी थी।

बस अब ये सब 2018 मे विहित प्रावधानों के अनुरूप होगा, पर मिलना प्रमोशन due date से ही था और है। UP govt के 15 October 2019 GO में भी यही है। बल्कि इसमें तो 2010 के प्रावधानों को अभी भी पेंडिंग cases के लिये बरकरार रखा है।

उन्होंने कहा कि आश्चर्य है कि उत्तराखंड भी BJP शासित राज्य है, वहाँ पर प्रोफेसर पदनाम देय तिथि (due date) से ही दिया जा रहा है, साथ ही वहां 2010 से प्रोन्नत होने वाले शिक्षकों का अवशेष भुगतान भी किया गया, तो हमारे यहां ये छलावा क्यूं?

अभी तक तो उत्तर प्रदेश सरकार भी 3 दिसम्बर 2013 तक की ऑटोमैटिक प्रमोशन की cut off date दे रही थी और उससे पुराने लोग कवर हो रहे थे। बाद वालों को CAS के माध्यम से कवर किया गया। ये बीच में बात बिगड़ कैसे गयी? अब पुराने लोगों को GO date से देने की बात कहां से आ गयी।

डाक्टर सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि दूसरी बात ये है कि जो कमेटी ने संस्तुतियां दीं थीं उसे क्यों बदल दिया गया? ये बहुत बड़ा छलावा है हमारे आश्वासन मंत्री का।

वास्तविकता यह है कि मुख्यमंत्री योगी के हस्तक्षेप से काम शुरू हुआ था, कमेटी बनी और अच्छा प्रपोजल बना, किंतु बिचौलियों ने जाकर कैसे समझौता कर लिया?

फुपुक्टा, जिसने अपना प्रस्तावित धरना सरकार के समुचित आश्वासन के आधार पर स्थगित कर दिया था, अब ठगा महसूस कर रहा है।

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के पूर्व अध्यक्ष डा० दीनानाथ सिंह ने भी प्रोफेसर पदनाम को GO की निर्गत तिथि से लागू किए जाने पर घोर निराशा जाहिर की है। शिक्षकों में भी रोष है। “ये अत्यंत निराशाजनक है कि शिक्षक संगठनों से भी कोई व्यापक चर्चा नहीं हुई और खुद शिक्षक होते हुए भी कितनी आसानी से छल कर गए हमारे मंत्री दिनेश शर्मा हम सबके साथ।” शिक्षक नेता ने कहा।

डाक्टर सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि सरकारी पक्ष ने राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिन लोगों से चर्चा की वो न तो शिक्षक हैं, न हीं कहीं शिक्षा से जुड़े हैं, न ही उन्हें नियमों का कोई ज्ञान है, वो तो बस श्रेय लेने के चक्कर में, आईएएस लॉबी के मायाजाल में फंसकर सरेंडर कर बैठे।

शिक्षकों का कहना है कि शिक्षा मंत्री ने एक अपने मंत्रित्व पद हेतु तो अवकाश नियमों को भी परिवर्तित कर दिया, और शासनादेश की तिथि से प्रोफेसर पदनाम व प्रोन्नति देने की घोषणा करके, प्रदेश के डिग्री शिक्षकों के साथ एक क्रूर मजाक किया है। उनका कहना है कि इस आशय का शासनादेश आ जाता है तो ये कतई स्वागत योग्य नहीं है।

डाक्टर सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि सरकार ने अपने ही बनाए नियमों को ताक पर रखकर तथा सरकार के ही द्वारा गठित कमेटी की संस्तुतियों को दरकिनार करके अपने शिक्षक विरोधी मंतव्य को स्पष्ट कर दिया है। सरकार ने न तो शिक्षक संगठनों से विस्तृत वार्ता की और न ही उन्हें विश्वास में लिया और कल राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिस पदाधिकारी से वार्ता के उपरांत घोषणा की, न वह कहीं शिक्षक नहीं है, न तो उन्हें शिक्षकों की समस्यायों की कोई समझ है।

उन्होंने कहा कि जहांं तक शासनदेशों का सवाल है, या तो उनका सामान्य ज्ञान नगण्य है, या उन्होंने सरकार की हां में हां मिला के प्रदेश के शिक्षकों को धोखा देने का कार्य किया है जिसकी जितनी भर्त्सना की जाय कम है।

उन्होंने कहा कि सरकार के पास अभी भी समय है कि अपनी मंशा को परिवर्तित करते हुए प्रोफेसर पदनाम और वेतनमान उत्तराखंड सरकार के अनुरूप २०१० की कट ऑफ डेट बनाकर, अवशेष भुगतान के साथ शासनादेश निर्गत करे अन्यथा सभी शिक्षक इसका डटकर विरोध करेंगे।