सुल्ताना डाकू खूंखार अपराधी था या रॉबिनहुड, जिसकी हर एक चाल से ख़ौफ़ खाते थे अंग्रेज़।।

 
सुल्ताना डाकू खूंखार अपराधी था या रॉबिनहुड, जिसकी हर एक चाल से ख़ौफ़ खाते थे अंग्रेज़।।

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

हटके, 17 अक्टूबर:- आज से लगभग 120 साल पहले गुलाम भारत के मुरादाबाद में हरथला गांव में एक लड़के का जन्म हुआ। ये वो समय था, जब महात्मा गांधी शायद बैरिस्टर की पढ़ाई कर रहे थे। आगे चलकर ये लड़का उत्तर प्रदेश का खुंखार दस्यु बना, नाम था सुल्ताना, जिसने लूट मचाकर अंग्रेजों की नाम में दम कर दिया। सुल्ताना एक डाकू था, उसने डकैती की, उसने अंग्रेजों के माल पर हाथ साफ किया, एक नहीं कई बार। सुल्ताना को समेटे कई लोकगीत और ऐसे कई किस्से, कहानियां आपको सुनने को मिल जाएंगे। जिनसे लगता है कि ये मात्र किस्से कहानियों तक ही सीमित था। हालांकि, सुल्ताना डाकू कोई मिथक या मिथ्या नहीं, बल्कि सच था। इतिहास के पन्नों में दर्ज सुल्ताना वो डाकू था, जो उसी गर्त में छिपा हुआ है। ब्रिटिश काल में हिन्दुस्तानियों पर होने वाले जुल्म से इतिहास की किताबें भरी पड़ी हैं, हमारे ही देश में रहकर अंग्रेज़ हम भारतीयों को अपने जूतों की नोंक पर रखा करते थे। हालांकि, कुछ क्रांतिकारियों को अंग्रेज़ों का ये ज़ुल्म ज़रा भी पसंद नहीं था। यही कारण था कि उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आज़ादी का बिगुल फूंक दिया था।

अंग्रेजों से लड़ने के क्रांतिकारियों अलग-अलग तरीके थे:- अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए उस दौर में क्रांतिकारियों अलग-अलग तरीके अपनाए। इन्हीं क्रांतिकारियों में से एक ‘सुल्ताना डाकू’ भी था, देश की आज़ादी के लिए इनका मिशन सबसे अलग था। भले ही सुल्ताना डाकू के नाम से आपको लग रहा होगा कि वो ज़रूर कोई ग़लत काम करते होंगे, लेकिन उनके इस ग़लत काम के पीछे भी एक नेक मक़सद था।

डाकू पर गोरी महिला थी फिदा:- सुल्ताना डाकू की कहानी इतिहास की गर्त में कहीं छिपी हुई है। बहुत कम जानकारी सुल्ताना के बारे में मिलती है, माना जाता है कि 20वीं सदी के दूसरे दशक का सबसे दुर्दांत और खतरनाक डाकू माना जाता था। इसे गांव के लोगों के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता भी हासिल थी। इसने महाराणा प्रताप के घोड़े के नाम पर ही अपने घोड़े का नाम चेतक रख लिया था। माना जाता है कि सन 1920 के दशक में संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) को आतंकित करने वाले इस डाकू का जन्म अपराधियों के मुस्लिम भाटू कबीले में हुआ था। माना ये भी जाता है कि इस बदसूरत से दिखने वाले आदमी के ऊपर एक गोरी महिला फिदा हो गई थी, वह इसे पागलों की तरह प्यार करने लगी थी। सुल्ताना ने एक डांस करने वाली फुलकनवार्न नाम की एक लड़की का अपहरण किया था, शायद इसके बाद से इस लड़की का नाम पुतली बाई पड़ गया।

17 साल की उम्र में बना डाकू:- माना जाता है कि सुल्ताना 17 साल की छोटी सी उम्र में डाकू बन गया था। गुलाम भारत के दौरान अंग्रेज सरकार की नृंशक नीतियों और भारत के लोगों खासकर गरीबों से उनका हक छीनने की नीति ने ही सुल्ताना को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया था। ऐसे में सुल्ताना शोषित और पिछड़े समाज में एक उम्मीद की किरण बनकर उभरा। धीरे-धीरे उसे गरीब लोगों का समर्थन भी मिलना शुरू हो गया था। कहा जाता है कि इसी समर्थन के बल पर उसने अगले एक साल में ही 100 डकैतों का एक गैंग बना लिया था।

अंग्रेजों के लिए काल गरीबो का मसीहा:- वो अंग्रेज़ों व अमीरों के यहां डाका डालता था, परंतु उस पैसे को ग़रीबों में बांट दिया करता था। ब्रिटिश काल के दौरान सुल्ताना डाकू ने अंग्रेज़ों की नाक में दम कर रखा था, अंग्रेज़ उसकी हर एक चाल से ख़ौफ़ खाते थे। देश को आज़ाद कराने वाले शहीदों में सुल्ताना डाकू का नाम भी लिया जाता है। अंग्रेज़ों की पीड़ा देने वाली नीति और ग़रीबों पर हो रहे अत्याचार और शोषण को देखते हुए उन्होंने ये रास्ता चुना। उसका असल मक़सद ग़रीबों को अंग्रेज़ों के चंगुल से मुक्त कराना था। यही कारण था कि ग़रीबों ने भी उनका साथ देना शुरू कर दिया था, सुल्ताना डाकू ने लगभग 100 डकैतों को लेकर एक गैंग बना रखा था। सुल्ताना डाकू लूटमार के दौरान अंग्रेज़ों का क़त्ल करने से भी नहीं घबराता था। यही कारण था कि वो अंग्रेज़ों के लिए ख़तरा बन चुका था, इस दौरान रणनीति के तहत सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए एक चतुर अंग्रेज़ अधिकारी को भेजा गया। इसके बाद उसने आधुनिक हथियारों से सुसज्जित 300 लोगों की एक टीम बनाई, जिसमें 50 घुड़सवारों का एक दस्ता भी था। बावजूद इसके उसे इसमें कामयाबी नहीं मिल पायी, इसके बाद ये ज़िम्मेदारी फ़्रेडी यंग नाम के अधिकारी को सौंप दी गयी।

तुलाराम नाम के एक ख़बरी की वजह से सुल्ताना डाकू को गिरफ़्तार कर लिया गया था:- इस दौरान सुल्ताना डाकू खड़ग सिंह नाम के एक जमींदार को लूटकर फ़रार हो गया, खड़ग सिंह मदद के बहाने अंग्रेज़ों से जा मिला। इसके बाद फ़्रेडी यंग, जिम कॉर्बेट और खड़ग सिंह ने मिलकर सुल्ताना को ढूंढना शुरू कर दिया। बताया जाता है कि तुलाराम नाम के एक ख़बरी की वजह से सुल्ताना डाकू को गिरफ़्तार कर लिया गया था। सुल्ताना डाकू अब अंग्रेज़ कप्तान फ़्रेडी यंग की गिरफ़्त में था। फ़्रेडी सुल्ताना की दयालुता और ग़रीबों की मदद करने के गुण को भलीभांति जानता था, इसलिए उसने सुल्ताना की सजा को माफ़ करने की मांग भी की, लेकिन वो इसमें सफ़ल नही हो पाया। सुल्ताना नहीं चाहता था कि उसका बेटा भी उसी की तरह डाकू बने, इसलिए फ़्रेडी यंग ने सुल्ताना के बेटे को इंग्लैंड में पढ़ने के लिए भेज दिया। आख़िरकार 7 जुलाई 1924 को सुल्ताना डाकू व उनके 15 अन्य साथियों आगरा की जेल में फांसी पर लटका दिया गया। जबकि उसे पनाह देने वाले 40 परिवारों को ‘काला पानी की सजा’ दी गई। इस तरह से अंग्रेज़ों ने ग़रीबों के इस मशीहा को भी नहीं बख़्शा।।