एकादशी व्रत का महत्व,आइये जानते है क्यों मनाया जाता है उत्पन्ना एकादशी।

 
एकादशी व्रत का महत्व,आइये जानते है क्यों मनाया जाता है उत्पन्ना एकादशी।
ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क
आइए जानते है उत्त्पन्ना एकादशी का महत्त्व, क्यों मनाया जाता है उत्त्पन्ना एकादशी –
रिपोर्ट–भानु पांडेय(संवाददाता)
24 नवम्बर नोएडा। दिवाली के ठीक इग्यारह दिन बाद होने वााले एकादशी व्रत ,हमारे जीवन में अत्यंत महत्ववपूर्ण है।  इस दिन स्‍वयं भगवान विष्‍णु ने माता एकादशी को आशीर्वाद देते हुए इस व्रत को पूज्‍यनीय बताया था। इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से सभी पापों का नाश हो जाता है। हिन्‍दू धर्म को मानने वालों में उत्‍पन्ना एकादशी का खास महत्‍व है। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सभी पाप नष्‍ट हो जाते हैं।
आज के दिन ही हम गन्ने की फसल को तैयार मानकर उसमें कटान लगाकर उसे देवी देवताओं और विष्णु भगवान को समर्पित कर शुभ कार्य की शुरूवात करते हैं। आज के दिन देव उत्थानी एकादशी के व्रत पूजा पाठ का विशेष महत्व माना गया है और आज ही शाम को पूजा पाठ करने के बाद बड़ी बड़ी मशालें बनाकर, गांव के बाहर उसमें आग लगाकर, (हड़ा हड़ाई) हवा हवाई खेलकर वातावरण को शुद्ध एवं कीटमुक्त करते हैं। इतना ही नहीं, अनाज साफ करने वाले सूप को गन्ने के डंडे से पीट- पीट घर के अंदर बाहर हर जगह की दरिद्रता को दूर भगाकर भगवान लक्ष्मी के आने की कामना कर के प्रसन्नता का अनुभव करते हैं ! यह भी माना जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन चार महीनों की नींद से जागते हैं। और भगवान विष्णु देवशयानी एकादशी पर सोने का आरम्भ करते है। प्रबोधिनी एकदशी का दिन चतुर्मास के अंत का प्रतीक है और सारे शुभकार्यों की शुरुआत हो भी जाती है !
कहा जाता है कि पद्मपुराणमें धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से पुण्यमयीएकादशी तिथि की उत्पत्ति के विषय पर पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि सत्ययुग में मुर नामक भयंकर दानव ने देवराज इन्द्र को पराजित करके जब स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया, तब सब देवता महादेव जी के पास पहुंचे।
महादेवजीदेवगणोंको साथ लेकर क्षीरसागरगए। वहां शेषनाग की शय्यापर योग-निद्रालीन भगवान विष्णु को देखकर देवराज इन्द्र ने उनकी स्तुति की। देवताओं के अनुरोध पर श्रीहरिने उस अत्याचारीदैत्य पर आक्रमण कर दिया। सैकडों असुरों का संहार करके नारायण बदरिकाश्रमचले गए। वहां वे बारह योजन लम्बी सिंहावतीगुफामें निद्रालीन हो गए, दानव मुर ने भगवान विष्णु को मारने के उद्देश्य से जैसे ही उस गुफामें प्रवेश किया, वैसे ही श्रीहरिके शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने अपने हुंकार से दानव मुर को भस्म कर दिया। नारायण ने जगने पर पूछा तो कन्या ने उन्हें सूचित किया कि आतातायी दैत्य का वध उसी ने किया है। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एकादशी नामक उस कन्या को मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया। श्रीहरिके द्वारा अभीष्ट वरदान पाकर परम पुण्यप्रदाएकादशी बहुत खुश हुई।
उत्त्पन्ना एकादशी का मंत्र –
सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।