आग जलाने की कला सबसे पहले इंसानों की किस नस्ल ने सीखा था।।
ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क
शिक्षा, 09 मार्च:- आग इंसान के वजूद के लिए उतनी ही अहम है जितना कि हवा और पानी, आग ख़तरनाक ज़रूर है लेकिन आग ही इंसान की ज़िंदगी में क्रांति लाई। आग की वजह से ही उसने खाना पका कर खाना सीखा और खुद को कड़ाके की ठंड से बचाया, ख़तरों से महफ़ूज़ रहने के लिए भी उसने आग का इस्तेमाल किया। आज भी आग के बिना ज़िंदगी की कल्पना मुश्किल है। लेकिन सवाल ये है कि आख़िर इंसान ने अपनी ज़रूरत के हिसाब से आग जलाना, बुझाना और उसे क़ाबू करना कब सीखा?
भारतीय ज्योतिष काल गणना के अनुसार:- एक अरब छियानवे करोड़ आठ लाख तिरपन हजार एक सौ बीस वर्ष पूर्व मनुष्य उत्पत्ति को हो चुकी थी। यह आकलन सृष्टि सम्वत् के आधार पर है। हालांकि आधुनिक विज्ञान इस मान्यता को अपनी स्वीकृति नहीं देता है। आग की खोज आदिमानव काल में ही हो गई थी, क्योकि जंगलों में रहनें वाले आदिमानव जंगली जानवरों से बचने के लिए आग का उपयोग करते थे और कहा जाता है की आदिमानव ने आग की खोज पत्थर को रगड़ के की थी जब वो पत्थर को एक स्थान से दुसरे स्थान तक ले जा रहे थे तो गलती से पत्थर एक दूसरे के ऊपर गिरे और आदिमानव ने पत्थरों के टकराने से उत्पन्न चिनगारियों को देखा होगा।
पुरातत्वविदों के तर्क:- पुरातत्वविद् तर्क देते हैं कि बहुत पहले हमारे पूर्वजों ने रगड़ से आग पैदा करने का हुनर सीख लिया था। ये भी मुमकिन है कि उन्होंने जंगलों में लगी आग से जलती हुई शाखाएं लाकर दूसरे स्थान पर मन मुताबिक़ उसका इस्तेमाल कर लिया हो। कुछ परिंदों को भी इस तरकीब का इस्तेमाल करते देखा गया है। ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया है कि कई शिकारी पक्षी अपने शिकार को मैदान से बाहर निकालने के लिए जलती हुई टहनियां अपनी चोंच में दबाकर लाते हैं और उन्हें दूसरे खेतों और मैदानों में डाल देते हैं। पूर्व आदिमानव ने भी ज़रूर इस तरकीब का इस्तेमाल किया होगा और वो इस तरीके को और आगे तक लेकर गए।
आग को जलाए रखने के लिए भट्टियो के भी अवशेष मिले:- उन्होंने इस आग के लिए भट्टियां तैयार की होंगी जिसमें वो ईंधन डालकर उसे जलाए रखते होंगे। पूर्व आदिमानव होमो हैबिलिस और ऑस्ट्रेलोपिथेकस ने बीस लाख साल पहले इसी तरह आग को जलाए रखना और उसका ज़रूरत के मुताबिक़ इस्तेमाल सीखा होगा।
इंसान की किस नस्ल ने आग जलाना पहले सीखा:- मैंगनीज़ का इस्तेमाल आज पटाखों में किया जाता है, ये लकड़ी जलाने के तापमान को 350 डिग्री सेल्सियस से 250 डिग्री सेल्सियस कर देता है। इसका मतलब है कि इससे आसानी से लकड़ी में आग लगाई जा सकती है। अगर विल रायब्रॉक्स की बात को सही माना जाए तो कहा जा सकता है कि आग जलाने का हुनर निएंडरथल के दौर में सीख लिया गया था। इस हिसाब से आग जलाने का हुनर इंसान को दो लाख साल पहले आ चुका था। दो पत्थरों को रगड़कर आग आसानी से पैदा की जा सकती है, इसलिए कहना मुश्किल है कि निएंडरथल लकड़ी से आग पैदा कर लेते थे। अगर निएंडरथल आग पैदा कर सकते थे तो ग्लेशियर युग के समय में भी आग के निशान मिलने चाहिए थे। लेकिन इस दौर में आग के निशान वही हैं जहां क़ुदरती तौर पर आग लगी थी।
अभी भी जारी है कुछ सवालों के जवाब:- इस सवाल का जवाब तलाशने का काम अभी भी जारी है, फिर अभी तक की रिसर्च के आधार पर कहा जा सकता है कि हम ने लाखों साल पहले आग पर क़ाबू पाना सीख लिया था। इसी के बाद आदिमानव की ज़िंदगी में क्रांति आई, उसने पका खाना शुरू किया तो उसके दिमाग़ का विकास भी तेज़ी हुआ और वो आदि मानव से आधुनिक इंसान बनने लगा।।