कवि और वरिष्ठ अधिवक्ता पंडित भानु प्रताप त्रिपाठी मराल के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का तांता लगा।

"देश हमारा धरती अपनी" के रचनाकार साहित्य महारथी महाकवि 'मराल' के निधन से अधिवक्ताओं, साहित्यकारों, शिक्षकों व संभ्रांत नागरिकों में शोक की लहर व्याप्त हो गई।
 
कवि और वरिष्ठ अधिवक्ता पंडित भानु प्रताप त्रिपाठी मराल के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का तांता लगा।

डाo शक्ति कुमार पाण्डेय
विशेष संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क

प्रतापगढ़, 18 जुलाई।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे वरिष्ठ अधिवक्ता पंडित भानु प्रताप त्रिपाठी मराल।

“देश हमारा धरती अपनी” के रचनाकार साहित्य महारथी महाकवि ‘मराल’ के निधन से अधिवक्ताओं,साहित्यकारों,शिक्षकों व संभ्रांत नागरिकों में शोक की लहर व्याप्त हो गई।

प्रतापगढ़ जनपद की साहित्यिक गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभाने वाले, साहित्यिक संस्था कविकुल एवं स्वतंत्र कवि मंडल सांगीपुर के संरक्षक साहित्य महारथी महाकवि पंडित भानु प्रताप त्रिपाठी ‘मराल’ जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

वकालत पेशे में भी महारत हासिल करते हुए उन्होंने अपने दायित्व को बड़ी ईमानदारी व कठिन परिश्रम के साथ आजीवन निर्वहन करते हुए गरीबों को न्याय दिलाने में महती भूमिका निभाई।

वकील परिषद प्रतापगढ़ के अध्यक्ष पद के अतिरिक्त साहित्यकार परिषद के महामंत्री पद के अलावा जनपद हिंदी साहित्य सम्मेलन में भी सम्मानजनक पद को उन्होंने सुशोभित किया। उनके निधन से साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति हुई है।

‘मराल’ जी का राजनैतिक जीवन भी उल्लेखनीय रहा। वे आजीवन कांग्रेस पार्टी में रहकर अपना अभूतपूर्व योगदान देते रहे।

श्रद्धेय मराल जी का जन्म जनपद की लालगंज तहसील के ब्लॉक सांगीपुर स्थित बाबा घुश्मेश्वरनाथ धाम की छत्रछाया में पुष्पित एवं पल्लवित ग्राम पूरे सेवकराम (निकट रामगंज बाजार) में 10 नवंबर, सन 1940 को पंडित देवी प्रसाद त्रिपाठी के सुपुत्र के रूप में हुआ था।

उन्होंने शिक्षा दीक्षा के बाद सन् 1964 से प्रतापगढ़ मुख्यालय पर वकालत की प्रैक्टिस शुरू किया । जिले में प्रथम बार संचालित चकबंदी प्रक्रिया के अंतर्गत वे एक बहुत ही चर्चित अधिवक्ता के रूप में स्थापित हुए।

साथ ही दीवानी के कर्मठ व मेहनतकश अधिवक्ता के रूप में वे कचहरी में सदैव प्रतिष्ठित रहे हैं। वे प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकारियों पर भी अपनी भाषा शैली एवं सक्रियता से अमिट छाप डालने में कामयाब रहे हैं।

सामाजिक एवं साहित्यिक संस्था स्वतंत्र कवि मंडल सांगीपुर एवं कविकुल के संरक्षक के रूप में साहित्यिक क्षेत्र में उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। जानकारी पा जाने के बाद कवि गोष्ठियों, कवि-सम्मेलनों एवं साहित्यिक कार्यक्रमों में पहुंचने के लिए वे सदैव आतुर हो जाते थे।

घुश्मेश्वर नाथ धाम में आयोजित राष्ट्रीय एकता महोत्सव सहित विविध हिंदी साहित्यिक कार्यक्रमों में उनका अभिनंदन एवं सम्मान होता रहा है।

‘देश हमारा, धरती अपनी’, ‘अगुआ बियाह कै भये भाय’, ‘संजय खंडकाव्य’, ‘दहेज’, ‘इंदिरा गांधी’, ‘संत तुलसीदास’, ‘सपनों का भारत’, ‘रूपवती खंडकाव्य’, ‘भारत का जवाहर’, ‘नेहरू महान’ आदि दर्जनों पुस्तकों के अलावा अंतिम कृतियों के रूप में ‘बनदेवी’ एवं ‘मेरी जिंदगी’ लिखकर उन्होंने हिंदी साहित्य को गौरवान्वित किया।

17 जुलाई 2021 को उनके निधन का समाचार मिलने पर जनपद के अधिवक्ताओं, साहित्यकारों, शिक्षकों, पत्रकारों, व संभ्रांत नागरिकों में शोक की लहर है।

उनके अंतिम दर्शन को बस अड्डे के पास सिविल लाइंस स्थित निवास पर अंतिम दर्शन करने वालों की भीड़ जमा हो गई जिन्होंने उनके पार्थिव शरीर पर फूल माला चढ़ाया। प्रयागराज स्थित रसूलाबाद घाट पर बड़ी संख्या में शुभेक्षुओं की उपस्थित में उनकी अंत्येष्टि संपन्न हुई। मां गंगा के पावन तट पर उनके बड़े सुपुत्र विनोद कुमार त्रिपाठी ने चिता को मुखाग्नि दी।

शोक संवेदना प्रकट वालों में अखिल भारतीय श्रीचंद्रदत्त सेनानी स्मारक न्यास के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव प्रकाश मिश्र सेनानी एडवोकेट सहित वकील परिषद के अध्यक्ष रामनिवास उपाध्याय, महामंत्री अवधेश ओझा, पूर्व अध्यक्ष देवानंद त्रिपाठी, नंदलाल मिश्र, राधे कृष्ण त्रिपाठी, रमेश चंद्र पांडेय, राजेश्वर प्रसाद त्रिपाठी, रामप्रसाद तिवारी, राम कुमार पांडेय, वरिष्ठ अधिवक्ता पंडित राम सेवक त्रिपाठी प्रशांत, स्वामीनाथ शुक्ला, डा सिद्धिनाथ शुक्ला, सूर्यकांत मिश्र निराला, आचार्य ओम प्रकाश मिश्र, राधेश्याम सिंह, राम सिंहासन मिश्र, योगेश शुक्ला किसान, रामपाल सिंह, राधेश्याम शुक्ला, रामेंद्र बहादुर सिंह, गंगा प्रसाद तिवारी, रघुवीर प्रसाद उपाध्याय, लालता प्रसाद तिवारी, सत्येंद्र नाथ मिश्र मृदुल, चंद्रभूषण दीक्षित, राज किशोर त्रिपाठी, आनंद प्रचंड, चंद्रशेखर उपाध्याय, चिंतामणि पांडेय, विवेक उपाध्याय, जगत बहादुर सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी, रामनिरंजन शुक्ला पत्रकार, डॉ अनूप पांडे पत्रकार, विनय मिश्र, संतोष त्रिपाठी, अशोक कुमार एडवोकेट आदि अधिवक्ताओं के अलावा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ दयाराम मौर्य रत्न, दयाशंकर शुक्ल हेम, डॉ दुर्गा प्रसाद ओझा, डॉक्टर शक्तिधर नाथ पांडेय, धर्माचार्य ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास, कविकुल अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता परशुराम उपाध्याय सुमन, डॉक्टर शक्ति कुमार पांडेय, सुरेश संभव, प्रमोद प्रियदर्शी, डॉ श्याम शंकर शुक्ल श्याम, डॉक्टर संगम लाल त्रिपाठी ‘भंवर’, राज मूर्ति सिंह सौरभ, सुनील प्रभाकर, अनूप अनुपम, राज नारायण शुक्ला राजन, डॉक्टर सौरभ पांडेय, राजेश कुमार मिश्र, अनिल प्रताप त्रिपाठी, सुरेश नारायण द्विवेदी व्योम, प्रेम कुमार त्रिपाठी प्रेम, शेष नारायण दुबे राही, अवध नारायण शुक्ल वियोगी, आचार्य अनीश देहाती, राजेश कुमार पांडे निर्झर, विजय बहादुर सिंह अक्खड़, परवाना प्रतापगढ़ी, ऐश्वर्य पांडे मानस, दिनेश उपाध्याय, प्रेम शंकर शुक्ला एवं स्वतंत्र कवि मंडल सांगीपुर अध्यक्ष अर्जुन सिंह, यज्ञ नारायण सिंह अज्ञेय, डॉक्टर केसरी नंदन शुक्ल केसरी, ओमप्रकाश पांडे गुड्डू, डॉ अजित शुक्ल, गुरु बचन सिंह बाघ, बाबूलाल सरल,डा एसपी सिंह शैल, यज्ञ कुमार पांडेय यज्ञ, महादेव प्रसाद मिश्र बमबम, योगेंद्र पांडे, अब्दुल मजीद रहबर, सुरेश अकेला, चंद्रशेखर मित्र, विजय बहादुर यादव विजय, अनूप त्रिपाठी, संजय शुक्ला, हरिवंश सिंह, चंद्रभान त्रिपाठी शास्त्री, जयराम शर्मा दिव्य, डॉ शैलेश, हरिवंश शुक्ल शौर्य, जनार्दन प्रसाद उपाध्याय, महावीर सिंह, अशोक विमल, अरविंद सत्यार्थी, रामजी मौर्य, रघुनाथ प्रसाद यादव, बाबा राज प्रतापगढ़ी, कृष्ण नारायण लाल श्रीवास्तव, गीतेश कुमार यादव, दीपेंद्र श्रीवास्तव तन्हा आदि रचनाकार हैं।

तमाम साहित्यकारों और अधिवक्ताओं ने संवेदना प्रकट करते हुए श्रद्धेय मराल जी की आत्मा की शांति के लिए परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित किया है।