कैसे बना आतंकी संगठन तालिबान, कहाँ से मिलता है इनको हथियार।।

103 दिन की जंग, जानें कैसे प्रांत दर प्रांत अफगानिस्तान पर कब्जा जमाता गया तालिबान, और कौन है तालिबान के वर्तमान पांच खूंखार कमांडर।। अफगानिस्तान में महिलाएं यौन दासता की आशंका से खौफ में जीने को मजबूर, क्रिकेटर राशिद खान ने दुनिया के नेताओं से मांगी थी मदद।।
 
कैसे बना आतंकी संगठन तालिबान, कहाँ से मिलता है इनको हथियार।।

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

वर्ल्ड, 18 अगस्त:- तालिबान, आज हर कोई इस नाम से परिचित है। क्योंकि हाल में ही इसने फिर से अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया। एक कट्टरपंथी आतंकवादी संगठन है जो अब राजनीतिक भी होते जा रहा है। अब इसने अफगानिस्तान में सरकार बनाने का दावा किया है। अपना पड़ोसी देश अफगानिस्तान, सदियों से भारत के साथ सांस्कृतिक विरासत साझा करने वाला अफगानिस्तान। वही अफगानिस्तान जिसे अनारों का देश कहा जाता है, जो होठों को छू लें तो लगता है कि मुंह में खून लग गया हो। लेकिन आज हकीकत देखें तो सच में यही खून इस देश की किस्मत बन गया है। इस खूनी मंजर की कहानी का इतिहास और भी ज्यादा भयानक है, सवाल है कि आखिर कैसे अफगानिस्तान की खुशी गम में बदल गई, इस पूरे किस्से को समझने के लिए हमें करीब तीन दशक पीछे चलना होगा। यानी कि 90 के उस दौर में जब दो बड़े देश दुनिया में अपनी ताकत आजमाने के नशे में चूर थे। एक ओर था अमेरिका तो दूसरी तरफ था सोवियत संघ यानी कि रूस, दुनिया में सबसे शक्तिशाली बनने में मदमस्त इन दोनों देशों ने दुनिया के कई खूबसूरत नक्शों की तस्वीर हमेशा के लिए बदल दी थी। इसी की गिरफ्त में अफगानिस्तान भी आया।

यह भी पढ़े- सात माह की मासूम बच्ची काबुल एयरपोर्ट पर अपने माता-पिता से बिछड़ी, सामने आई दर्दनाक तस्वीरे।।

अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद:- 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद दुनिया भर का ध्यान तालिबान पर गया, अमेरिका ने सात अक्टूबर, 2001 को अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया, हमले के मुख्य संदिग्ध ओसामा बिन लादेन और अल क़ायदा के लड़ाकों को शरण देने का आरोप तालिबान पर लगा। अमेरिका ने सात अक्टूबर, 2001 को अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया और दिसंबर के पहले सप्ताह में तालिबान का शासन खत्म हो गया। फिर नाम आता है उस देश का जिसके बिना कट्टरता और आतंकवाद का हर किस्सा अधूरा है, वो नाम है पाकिस्तान, जिसने तमाम तालिबानी नेताओं को अपने यहां पनाह दी। करीब 20 साल बाद फिर अफगानिस्तान में इन तालिबानियों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। तालिबानी अपनी इस हिंसा को जायज ठहरा रहे हैं और उनका कहना है कि सत्ता पाने के लिए ये हिंसा जायज है, वो खुली जुबान में बोल रहे हैं कि महिलाओं को बुर्के में ही रहना होगा, घरों से निकलने पर सौ बार सोचना होगा। जो भी पश्चिमी सभ्यता को मानेगा उसकी मौत तय है। ये हिंसा देखकर दुनिया सकते में है और अफसोस कि अफगानी ये सब कुछ झेल रहे हैं।

जब रूस ने अफगानिस्तान में अपने जवानों को उतार दिया:- दरअसल, हुआ यूं कि रूस ने अफगानिस्तान में अपने जवानों को उतार दिया था और राज कर रहा था। ये बात जब अमेरिका को नागवार गुजरी तो अमेरिका ने मुजाहिदों की एक फौज खड़ी करवा दी, भारी हथियार, पैसा सबकुछ झोंक दिया। नतीजा यह निकला कि रूस ने अपने कदम तो अफगानिस्तान से खींच लिए लेकिन यहां की वादियों में जुल्म की आग सुलगती रही, मुजाहिद के धड़े से नींव पड़ी तालिबान की, जिसका नेता बना मुल्ला उमर। सवाल है कि तालिबान का मकसद क्या है? पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है। माना जाता है कि पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा और इसके लिए सऊदी अरब ने फंडिंग की, इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था।

यह भी पढ़े- मुल्ला बरादर की अफगानिस्तान में एंट्री, काबुल में कब्जे के बाद तालिबान ने बताए इरादे।।

तालिबान ने जब 1996 में अफगानिस्तान पर पहली बार कब्जा जमाया तो आम लोगों ने उसका खुलकर समर्थन किया था:- तालिबान का जो चेहरा आज हमारे सामने है, जिस क्रूरता, कट्टरता और हिंसा के उदाहरण आज हम देख रहे हैं तालिबान शुरू में ऐसा नहीं था। तालिबान ने जब 1996 में अफगानिस्तान पर पहली बार कब्जा जमाया तो आम लोगों ने उसका खुलकर समर्थन किया, तालिबानियों का स्वागत किया, क्योंकि तालिबान तब सुधारों के नाम पर आया था, उसका कहना था कि अफगानिस्तान भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है, जिसके लिए जरूरी है कि हम सत्ता में आएं, ऐसा हुआ भी। सत्ता हथियाने के बाद तालिबानियों ने भ्रष्टाचार पर अंकुश, अराजकता की स्थिति में सुधार, सड़कों का निर्माण और नियंत्रण वाले इलाके में कारोबारी ढांचा और सुविधाएं मुहैया कराईं, इन कामों के चलते शुरुआत में तालिबानी लोकप्रिय भी हुए, लेकिन फिर तालिबानियों ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया। कट्टरता की ऐसी मिसाल गढ़ी की इंसानियत कांप उठी, पाबंदियों का ऐसा फरमान जारी किया कि हर ओर बस एक चुप्पी नजर आने लगी। बीच चौराहे पर फांसी, कोड़ों की सजा, लड़कियों के लिए स्कूल और टीवी देखने तक पर बैन। पुरुषों के लिए दाढ़ी और महिलाओं के लिए पूरे शरीर को ढकने वाली बुर्क़े का इस्तेमाल जरूरी कर दिया गया, तालिबान के इस खौफ का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि आज भी जब हैवानियत की मिसाल देनी हो तो वहां तालिबान कह दिया जाता है।

यह भी पढ़े- पीएचडी छात्रा से उसके प्रोफेसर ने किया दुष्कर्म, प्रोफेसर की दहशत से चुप थी छात्रा।।

आखिर कहां से उसके पास इतना पैसा आता है:- हम बात करने जा रहे हैं तालिबान के इतिहास के बारे में और उसके फाइनेंस के बारे में, कि आखिर कहां से उसके पास इतना पैसा आता है। तालिबान एक पोस्तो का शब्द है जिसका अर्थ होता है स्टूडेंट अथवा छात्र। क्योंकि शुरू में यह एक छात्रों का ही संगठन था जो ऐसे कट्टरपंथी इस्लामिक मदरसों से पढ़ कर के निकले थे। 1992 में अफगानिस्तान के कंधार में रहने वाले मुल्ला मोहम्मद ओमर ने 50 हथियारबंद लड़ाकों के साथ मिलकर तालिबान बनाया था। उस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान में सिविल वार यानी गृह युद्ध चल रहा था। सोवियत यूनियन के अफ़ग़ानिस्तान से चले जाने के बाद कबायिली वारलॉड्स आपस में अपना वर्चस्व कायम करने की लड़ाई लड़ रहे थे। उसी वक़्त मुल्ला ओमर ने लोगों को धार्मिक कट्टरपंथ से जोड़ना शुरु किया। उसने कहा कि अफगानिस्तान में इस्लाम खतरे में है यहां पर इस्लामिक अमीरात शरिया कानून लागू करने की जरूरत है। उसकी ये सोच अफगानिस्तान में आग की तरह फैल गई। एक महीने के अंदर ही करीब 15,000 लड़ाके तालिबान के साथ जुड़ गए। हथियार और पैसे के दम पर मुल्ला ओमर ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने की कवायद शुरू कर दी थी। 3 नवंबर 1994 को तालिबान ने कांधार शहर पर हमला किया। दो महीने के अंदर ही तालिबान ने अफगानिस्तान के 12 राज्यों में अपना कब्जा जमा लिया। आखिर 1996 में तालिबान का पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा हो गया और उसने 5 सालों तक अफगानिस्तान पर शासन किया। फिर 9/11 के अमेरिकी हमलों के बाद अमेरिकी दखलंदाजी के बाद तालिबान को सत्ता से हटा दिया गया और अमेरिकी समर्थित हामिद करजई की सरकार बनी। उसके बाद तालिबान दहशतगर्दी पर उतर आया। और आखिर 20 सालों की लड़ाई के बाद आज फिर से अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। तालिबान की आय का सबसे बड़ा स्रोत अफीम की खेती है। ये नसे का कारोबार करते हैं। दुनिया के कुल अफीम का लगभग 70% अफगानिस्तान से जाता है। अफगानिस्तान की पूरी अफीम की खेती का लगभग 96% क्षेत्र पर तालिबान का कब्जा है। फोर्ब्स की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार तालिबान के पास 400 मिलियन डॉलर की संपत्ति बताई गई है। इसके अलावा इसे पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई की तरफ से भी धन और हथियार मुहैया कराया जाता है। और कई अरब के इस्लामिक देश भी इसे आर्थिक रूप से मदद पहुंचाते हैं।

तालिबान के वर्तमान कमांडर

01- हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा:- 2016 में अमेरिका के ड्रोन हमले में मुल्ला मंसूर अख्तर मारा गया था। मुल्ला मंसूर अख्तर के हाथ में तब तालिबान की कमान थी, लेकिन उसके बाद हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा को तालिबान का नेता नियुक्त किया गया था। अब संगठन के सभी अहम फैसले हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा के द्वारा ही लिए जाते हैं।

02- मुल्ला याकूब:- तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला याकूब संगठन के विदेशों में चल रहे ऑपरेशन की कमान संभालता है। ‘अलजज़ीरा’ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुल्ला याकूब अभी अफगानिस्तान में ही है। तालिबान के शीर्ष कमांडर के लिए याकूब ने ही हैबतुल्लाह का नाम आगे किया था क्योंकि उसे जमीन पर लड़ाई का बहुत कम अनुभव था।

03- सिराजुद्दीन हक्कानी:- मुजाहिदीन कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा सिराजुद्दीन ‘हक्कानी नेटवर्क’ की कमान संभालता है। इसका काम तालिबान के लिए पैसे और हथियार मुहैया करवाना है। अफगानिस्तान में कई आत्मघाती हमलों की जिम्मेदारी भी ये ले चुका है।

04- मुल्ला अब्दुल घनी बरादार:- अब्दुल घनी बरादार तालिबान का सह-संस्थापक है। अभी अब्दुल घनी के पास तालिबान के राजनीतिक संगठनों की जिम्मेदारी है। अब्दुल घनी ने सोवियत के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी थी। इस दौरान वह मुल्ला उमर के साथ हर मौके पर नज़र आता था। संगठन के अहम फैसले उसके इजाज़त के बिना नहीं लिए जाते।

05- शेर मोहम्मद अब्बास स्टैनिकजई:- अफगानिस्तान से तालिबान सरकार के हटने से पहले स्टैनिकजई डिप्टी मिनिस्टर था। लंबे समय तक शेर मोहम्मद दोहा में रहा था। साल 2015 में वह संगठन के पॉलिटिकल ऑफिस का हेड बन गया था। शेर मोहम्मद ने अफगानिस्तान सरकार को सत्ता से हटने की चुनौती भी दी थी।

यह भी पढ़े- क्या है सुप्रीम कोर्ट के बाहर आत्मदाह का मामला- राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान, पीड़िता ने यूपी के सांसद पर लगाया था दुष्कर्म का आरोप।।

103 दिन की जंग, जानें कैसे प्रांत दर प्रांत अफगानिस्तान पर कब्जा जमाता गया तालिबान:- अमेरिका सेना की वापसी के बाद 4 मई को तालिबान की तरफ से पहली बार हमले की खबर आई थी। उसके बाद अब 15 अगस्त को यानी 103 दिनों में तालिबान ने अफगान सरकार को घुटनों पर ला दिया है। अबतक क्या-क्या हुआ और कैसे तालिबान ने अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमाया आइये जानते है विस्तार से।

14 अप्रैल:- यही वह दिन था तब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने ऐलान किया कि वह अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला लेगा, बताया गया था कि 1 मई से 11 सितंबर के बीच सैनिकों की पूरी तरह से वापसी हो जाएगी। बता दें इससे पहले तालिबान और अमेरिका के बीच हुई शांति वार्ता में 1 मई की तारीख तय हुई थी, जिसे बाइडन ने आगे बढ़ाया था।

04 मई:- एक मई से अमेरिका के सैनिकों की वापसी शुरू होते ही तालिबान हरकत में आ गया, उसने हेलमैंड के साथ 6 दूसरे प्रांतों पर अफगान फोर्स पर हमले करके अपने नापाक इरादे जता दिए।

11 मई:- तालिबान ने राजधानी काबुल के पास ही नेरख जिले को कब्जे में लिया, इसके बाद पूरे देश से हिंसक घटनाओं की खबरें आने लगीं।

07 जून:- जून में अफगान की सेना तालिबान को टक्कर तो दे रही थी लेकिन वह मजबूती नहीं दिख रही है। हिंसा अब जंग का रूप ले चुकी थी, 7 तारीख को अफगान सरकार ने कहा था कि पिछले 24 घंटे में 150 अफगान सैनिक मारे गए हैं। तब तक अफगान के 34 में से 26 प्रांत जंग की आग में झुलस रहे थे।

22 जून:- अबतक तालिबान को दक्षिण अफगान में मजबूत माना जाता था, लेकिन जून के आखिर में तालिबान लड़ाकों ने देश के उत्तरी हिस्से में हमले शुरू किए, तबतक 370 जिलों में से 50 तालिबान के कब्जे में थे।

02 जुलाई:- अबतक अमेरिका के सैनिक कुछ हद तक लड़ाई में थे, लेकिन 2 जुलाई को अमेरिका के सैनिकों ने बगराम एयर बेस को चुपचाप खाली कर दिया। जिससे उसके सैनिकों की जंग में भूमिका ना के बराबर रह गई।

05 जुलाई:- तालिबान ने कहा कि वह अफगान सरकार से बातचीत करना चाहता है और लिखित प्रपोजल अगस्त तक दे दिया जाएगा।

21 जुलाई:- बातचीत का भरोसा देना वाला तालिबान दूसरी तरफ कब्जा जमाए जा रहा था। अब देश के कुल 370 जिलों के आधे जिले तालिबान के कब्जे में थे, इस बीच अमेरिका ने सैनिकों को अफगान से निकालना जारी रखा लेकिन हवाई सपोर्ट अफगान सरकार को देती रही, इसमें तालिबानी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक की जा रही थीं।

26 जुलाई:- इस दिन यूएन की तरफ से चिंता में डालने वाला बयान आया, इसमें कहा गया कि मई और जून में 2400 से ज्यादा लोग अफगानी लोग इस हिंसा की भेंट चढ़ चुके हैं या फिर घायल हैं। 2009 में सब शुरू होने से अबतक का यह सबसे बड़ा आंकड़ा था।

06 अगस्त:- इस दिन तालिबान ने देश की पहली प्रांतीय राजधानी के तौर पर जरांज पर कब्जा किया, फिर अगला नंबर कुंदुज़ का था।

13 अगस्त:- तालिबान ने एक ही दिन में 4 प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा जमाया, इसमें कंधार, हेरात भी शामिल थे। हेरात में कब्जे के बाद तालिबान ने मोहम्मद इस्माइल खान को बंदी भी बना लिया था। वह पूर्व कमांडर थे और तालिबान के खिलाफ लड़ाई में आगे रहते थे।

14 अगस्त:- तालिबान ने उत्तर के शहर मजार ए शरीफ, लोगार प्रांत की राजधानी पुल-ए-आलाम पर कब्जा कर लिया। फिर आतंकी संगठन ने पूर्व का जलालाबाद शहर कब्जा लिया और काबुल को घेर लिया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा था कि वह स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय पार्टनर्स से बात कर रहे हैं कि आगे क्या कदम उठाए जाएं।

15 अगस्त:- तालिबान के आतंकी काबुल में घुस गए और सरकार से सीधे तौर पर सत्ता सौंपने की बात करने लगे। इतना ही नहीं लोगों को धमकाया गया कि वे ना तो घर से निकलें और ना ही देश छोड़कर जाने की कोशिश करें।

बेटे के शव को 17 दिन से फ्रीजर में रखकर बैठा है पिता जानिए क्या है पूरा मामला।।

अफगानिस्तान में महिलाएं यौन दासता की आशंका से खौफ में जीने को मजबूर, क्रिकेटर राशिद खान ने दुनिया के नेताओं से मांगी थी मदद:- तालिबान की वापसी से महिलाएं सबसे ज्यादा खौफजदा हैं, क्योंकि बीते दिनों कुछ प्रांतों पर कब्जे के बाद से ही उसके नेताओं ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। उन्होंने जुलाई की शुरुआत में बदख्शां और तखर स्थानीय धार्मिक नेताओं को तालिबान लड़ाकों के साथ निकाह के लिए 15 साल से बड़ी लड़कियां और 45 साल से कम उम्र की विधवाओं की फेहरिस्त देने का हुक्म दिया था। अगर यह निकाह हुए तो इन महिलाओं को पाकिस्तान के वजीरिस्तान ले जाकर फिर से इस्लामी तालीम दी जाएगी, मानवाधिकार वादियों का कहना है कि अफगानिस्तान में महिलाओं को यौन दासता में धकेलने की इस तालिबानी कवायद से दुनिया को पहले की तरह नजरें नहीं फेरनी चाहिए।

राशिद खान ने दुनिया से लगाई थी मदद की गुहार:- अफगानिस्तान के क्रिकेटर राशिद खान ने भी अपने देश की बुरी होती स्थिति पर दुनिया से मदद की अपील की थी। राशिद खान ने ट्विटर पर लिखा कि प्रिय, वर्ल्ड लीडर्स, मेरा देश इस वक्त मुश्किल में है, हज़ारों निर्दोष बच्चे, महिलाएं, लोग शहीद हो रहे हैं, घर बर्बाद हो रहे हैं। राशिद खान ने दुनिया से अपील की है कि हमें ऐसे संकट में छोड़कर ना जाएं, हम शांति चाहते हैं, अफगानियों की मौत होने से बचाइए। बता दें कि राशिद खान अफगानिस्तान के क्रिकेटर हैं, जो भारत समेत दुनिया के सभी क्रिकेटिंग नेशन में काफी मशहूर हैं।।