क्यो पंजशीर से खौफ खाता है तालिबान- तालिबान के खिलाफ अफगान जनता की जंग शुरू, कैसे बाघलान प्रांत के 3 जिले करवा लिए आजाद।।

 
क्यो पंजशीर से खौफ खाता है तालिबान- तालिबान के खिलाफ अफगान जनता की जंग शुरू, कैसे बाघलान प्रांत के 3 जिले करवा लिए आजाद।।

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

वर्ल्ड, 21 अगस्त:- एक समय था जब अफ़ग़ान नागरिक दुनिया के बाक़ी मॉडर्न देशों के बाशिंदों की तरह अपनी मर्ज़ी से जी सकते थे, फैशनेबल कपड़े पहन सकते थे, अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ खा-पी सकते थे, गाने, फ़िल्में देख-सुन सकते थे, देश में मॉडर्न क़ानून और न्याय प्रणाली थी, महिलाएं काम पर जा सकती थी, पढ़ सकती थी, आदि। दुनियाभर से लोग अफ़ग़ानिस्तान घूमने भी जाते थे, फिर उदय हुआ कटटरपंथी संगठनों का, ख़ासकर मुजाहिद्दीन और तालिबान का, जिन्होंने क़ुरान और शरिया के नाम पर अफ़ग़ानिस्तान को नर्क में तब्दील कर दिया। कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के हाथ में जाने से पहले ये देश ख़ूबसूरत और मॉडर्न था। 20वीं सदी के 1960-70s में अफ़ग़ानिस्तान में जीवन 21वीं सदी के पहले 2 दशकों से कहीं बेहतर था। उनका आगे आने भविष्य भी अंधकारमय लग रहा है। ये उन सभी लोगों के लिए एक अलार्म है जो धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देते हैं या बर्दाश्त करते हैं। याद रखिये समय भले ही आगे चले, धर्मान्धता और कट्टरता आपको पीछे ही ले जायेगी।

तालिबान को लगा झटका:- अफगानिस्तान फतह कर उसपर राज करने के लिए बेकरार तालिबान को करारा झटका लगा है। बाघलान प्रांत में स्थानीय विरोधी गुटों ने तालिबान से तीन जिले छीन लिये हैं। बाघलान प्रांत में स्थानीय विरोधी गुटों ने बानू और पोल-ए-हेसर जिलों पर फिर से कब्जा कर लिया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में आई खबरों के मुताबिक तालिबान और विरोधियों के बीच यहां भारी गोलीबारी हुई है। इस गोलीबारी में तालिबान को भारी नुकसान होने की खबर है। तालिबान के विरोधियों ने कुछ तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर डाली हैं। जानकारी के मुताबिक जेहादी ग्रुप और एक मिलिट्री कमांडर अहमद मसूद के बीच बैठक भी चल रही है।

अफगानिस्तान की लोकल न्यूज एजेंसी अशवाका ने बताया:- लोकल विद्रोही गुटों ने पोल-ए-हेसर, डेह सलाह और बानो जिलों को तालिबान के कब्जे से छुड़ा लिया है। बाघलान के स्थानीय पत्रकार ने बताया कि इस लड़ाई में कई तालिबान लड़ाके मारे गए हैं। उधर, स्थानीय लोगों की बढ़ती ताकत से तालिबान के लड़ाके घबराए हुए हैं। इससे पहले अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने खुद को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया। उन्होंने लोगों से अपील की है कि वो तालिबान के खिलाफ लड़ाई में उनके साथ आ जाए। इससे पहले यह भी खबर आई थी कि सालेह की सेना ने परवान प्रक्षेत्र के चारीकार इलाके पर कब्जा कर लिया। यह प्रक्षेत्र नॉर्थ काबुल में आता है।

पंजशीर पर तालिबान के नियंत्रण नही:- आपको बता दें कि पंजशीर ही एक ऐसा प्रक्षेत्र है जिसपर तालिबान का अब तक नियंत्रण नहीं हो पाया है। अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह, अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और बल्ख प्रांत के पूर्व गवर्नर अता मुहम्मद नूर विद्रोहियों का नेतृत्व कर रहे हैं। तालिबान ने 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर पूरी तरह कब्जा कर लिया था। तालिबान के कब्जे के बाद काबुल एयरपोर्ट से हैरान कर देने वाली तस्वीरें सामने आई थीं। इसके अलावा मानवाधिकार उल्लंघन की खबरें भी सामने आई थीं। पत्रकारों पर भी ढूंढ-ढूंढ कर हमले किये गये।

पंजशीर से खौफ खाता है तालिबान:- पंजशीर घाटी को जीतना तालिबान के मुश्किल रहा है। अबकी भी पंजशीर घाटी तालिबान के खिलाफ मजबूती से खड़ा नज़र आ रहा है। ताजिकिस्तान में अफगान राजदूत ज़हीर अघबर ने कहा है कि पंजशीर घाटी प्रांत अफगानिस्तान सरकार के पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह द्वारा तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध के लिए एक गढ़ के रूप में काम करेगा। बता दें कि सालेह ने खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति बताया है। ऐसे वक्त में जब पंजशीर घाटी, तालिबान को चुनौती देता दिख रहा है तो हमें उस घाटी के बारे में जानना चाहिए। पंजशीर घाटी का अर्थ है पांच सिंहों की घाटी। इसका नाम एक किंवदंती से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि 10वीं शताब्दी में, पांच भाई बाढ़ के पानी को नियंत्रित करने में कामयाब रहे थे। उन्होंने गजनी के सुल्तान महमूद के लिए एक बांध बनाया, ऐसा कहा जाता है। इसी के बाद से इसे पंजशीर घाटी कहा जाता है। पंजशीर घाटी काबुल के उत्तर में हिंदू कुश में स्थित है। यह क्षेत्र 1980 के दशक में सोवियत संघ और फिर 1990 के दशक में तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध का गढ़ था। इस घाटी में डेढ़ लाख से अधिक लोग रहते हैं। इस घाटी में सबसे अधिक ताजिक मूल के लोग रहते हैं।।