‘सत्ता से सहमे’ नौकरशाहों की चाल!

उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में किसानों की सबसे बड़ी समस्या कुछ वर्षों से छुट्टा जानवर बने हुए हैं। राज्य में दिन-रात घूमने वाले इन मवेशियों ने फसलों को भारी नुकसान पहुँचाया है।
 
‘सत्ता से सहमे’ नौकरशाहों की चाल!

‘सत्ता से सहमे’ नौकरशाहों की चाल!

डॉ० मत्स्येन्द्र प्रभाकर

उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में किसानों की सबसे बड़ी समस्या कुछ वर्षों से छुट्टा जानवर बने हुए हैं। राज्य में दिन-रात घूमने वाले इन मवेशियों ने फसलों को भारी नुकसान पहुँचाया है।

किसान हितों का मुद्दा इस समय लगभग पूरे देश में शबाब पर है। देश के विभिन्न भागों में किसानों की समस्याएँ अलग-अलग हैं।

यों, इस तरह की क्षति को अन्दाज़ने या कूतने की कहीं कभी कोई गरज़ या, तकनीक ईज़ाद नहीं हो पायी। इससे क़रीब-क़रीब सभी क्षेत्रों और गाँवों में बीघा-दो बीघा तक की जोत वाले बहुतायत किसानों ने खेती करनी छोड़ दी है।

छुट्टा जानवरों का अभी तक कोई उचित प्रबन्धन नहीं हो पाया है। हालाँकि इसके लिए गोशालाओं एवं आवारा मवेशियों के आश्रय स्थलों को बनाये जाने से लेकर ख़ासकर छोटे पशुपालकों को आर्थिक प्रोत्साहन देने जैसी अनेक योजनाएँ बनीं लेकिन तमाम ख़र्चों के बावज़ूद वे कागज़ों पर और फ़ाइलों में सिमट कर रह गयीं! हालाँकि कँटीली बाड़ भी अनेक क्षेत्रों में नीलगायों से खेती-बारी को कोई सुरक्षा दे पाने में बौनी साबित हुई है। नीलगायों के झुण्ड के झुण्ड लम्बी छलाँग लगाते हुए खेतों में पहुँच जाते हैं और पूरी फसल बर्बाद कर देते हैं। इनका अभी तक कोई कारगर इलाज़ सरकारें खोज़ पाने में अस्मर्थ रही हैं।

राज्य के ज़ियादातर पशुपालक दूध न देने वाली गायों और उनके बछड़े/बछियों को खूँटे से बाँधकर पालने में अस्मर्थ हैं। चारा-भूसे की लगातार होती कमी तथा चोकर-दाने की बढ़ती क़ीमतों ने उनकी कमर तोड़ दी है। इससे पशुपालक मवेशियों को खुला छोड़ने को मज़बूर हैं। यह किसानों के साथ समूचे प्रदेश का बड़ा दुर्भाग्य रहा है! इनमें केवल अपनी नियमित ज़ुरूरतों के लिए गाय/भैंस रखने तथा इनके दूध की बिक्री के लिए मवेशी पालने वाले- दोनों श्रेणी के लोग शामिल हैं। परिणामत: सभी तरह के अधिकतर मवेशीपालक दूध देने वाली गायों के अलावा बैलों, भैंस और उनके पंड़े/पंड़ियों को पालने में प्राय: अक्षम हो चुके हैं। इसके विपरीत इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर पूरे प्रदेश में गोधन संरक्षण सम्बन्धी कानून सख्ती से लागू है। इससे गायों और उनके बछड़े-बछियों की ख़रीद-बिक्री तक़रीबन बन्द है। कहीं, कभी कोई गाय-बछिया बिकने की बात आती है तो वह (आदमी) गोदान के लिए ख़रीदने वाला होता है।

उत्तर प्रदेश में मुख्यतया 2017 के बाद आवारा जानवर बढ़ गये। पशुपालन विभाग के आँकड़ों के अनुसार निराश्रित पशुओं की सङ्ख्या 7 लाख, 33 हज़ार, 666 है। विभाग का दावा है कि 30 अप्रैल, 2019 तक 3 लाख, 21 हज़ार, 546 पशुओं को आश्रय दिया गया। इसकी सचाई गाँवों से लेकर शहरों तक घूमते जानवरों के झुण्ड देखकर समझी जा सकती है। इनसे तंग किन्तु किसी प्रकार से समर्थ किसानों और खेती करने वाले दूसरे छोटे लोगों ने भी फसलों की सुरक्षा के लिए यहाँ-वहाँ, जैसे-तैसे उपाय किये। समर्थ लोगों ने कँटीले तारों की बाड़ लगवायी। इसने छुट्टा जानवरों को किसी प्रकार रोकने में मदद की। फ़सलों की किसी पैमाने पर बचत हुई। कँटीले तारों, उनको लगाने के लिए पत्थर के पायों या, लकड़ी के थामों के साथ महँगी मज़दूरी पर सम्बन्धित किसानों को भारी खर्च करना पड़ा।

अब इन्हें हटाने के लिए शासन/प्रशासन की ओर से एक ‘तुगलकी फरमान’ आया है कि “किसान फसल की सुरक्षा के लिए लगाये गये कँटीले तारों की बाड़ हटा लें।”

देखा यह गया है कि सभी सरकारों के विभिन्न फ़ैसलों/आदेशों के पीछे कुछ न कुछ तर्क हुआ करते हैं। कँटीले तारों की बाड़ हटाने के सम्बन्ध में भी उसका अपना तर्क होगा या, हो सकता है। यद्यपि यह निर्णय फ़सलों के साथ किसानों के दूरगामी हितों के न सिर्फ़ विरुद्ध, बल्कि घोर अदूरदर्शितापूर्ण है!

विभिन्न इलाक़ों में खेती-बारी की सुरक्षा के लिए किसानों ने किस तरह इन्तिज़ाम किये हैं, इसका नौकरशाहों को अन्दाज़ा नहीं हो सकता! अनेक सुविधाओं से लैस ‘ब्यूरोक्रेसी’ वातानुकूलित कमरों में बैठकर कोई उल्टा-सीधा फ़ैसला करते हुए फ़रमान ज़ारी करवा देती है। कालान्तर में ऐसे आदेशों का दुष्परिणाम सरकारों को झेलना होता है।

आख़िर कोई अपनी फ़सल की सुरक्षा करना चाहे तो इसमें सरकार की कोई दख़ल क्यों? वज़ह ‘गोरक्षा कानून’ है जिसकी आड़ सरकार विरोधी नौकरशाहों ने मौक़े की नज़ाकत परखते हुए बड़ी सावधानी से ली है। कहावत है- “साँप मर जाए और लाठी न टूटे!” इस और ऐसे फ़ैसलों में वे नौकरशाह भी हो सकते हैं जो वर्तमान सरकार के आने के बाद से ही सहमे हुए हैं।

हमारा प्रदेश और देश आज भी मुख्यत: कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला है। ऐसे में यह ‘फ़रमान’ आने वाले दिनों में प्रदेश में मौज़ूदा सरकार के लिए घातक साबित हो सकता है। सूत्रों के अनुसार यही इसके ज़िम्मेदारों/योजनाकारों की ‘रणनीति’ (या कहें कि साज़िश/षड्यंत्र) है। गौरतलब है कि कोई पाँच साल में यह आदेश ‘गोरक्षा कानून’ के परिपालन की गरज़ से ऐसे वक़्त ज़ारी हुआ है जब सरकार आगामी विधानसभा चुनावों की रणनीति बनाने में जुटी है, और छटपटाते विपक्षी दल किसी दमदार मुद्दे की तलाश में हैं। निश्चित तौर पर इसके पीछे कोई चाल हो सकती है!

लखनऊ में एक अनुभवी पत्रकार को लगता है कि “कुछ आईएएस अधिकारी चुनावी वर्ष में योगी सरकार को जड़ समेत उखाड़ फेंकने की साजिश कर रहे हैं।” उनके मुताबिक़ “हम जानते हैं कि चुनावी वर्ष में विपक्षीदलों के प्रति वफ़ादारी रखने वाले अधिकारी ऐसे खेल करते हैं। और यह खेल गोरक्षा के नाम पर हो रहा है, ताकि ‘योगी बाबा’ पकड़ न पाएँ। फ़सलों की सुरक्षा के लिए लगायी गयी बाड़ हटाने से किसान का धान तथा दूसरी फ़सलें बर्बाद हो जाएँगी, नतीज़तन वह चालू फ़सली सीज़न के फ़ौरन बाद पड़ने वाले चुनाव में सरकार से बदला लेगा!

हम देखते आये हैं कि हर शासनकाल में नौकरशाही में प्रमुखतया दो धड़े होते रहे हैं। एक वह तबका जो महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठकर मलाई मारता है, और दूसरा वह जो अपेक्षाकृत कम महत्त्वपूर्ण पद पर रहकर मन मसोसता है। इसी दूसरी श्रेणी के अधिकारीगण कोई न कोई ऐसी युक्ति टपासते रहते हैं जिससे सरकार की आये दिन किरकिरी होती रहे, उसकी भद पिटे, छवि धूमिल हो और सरकार के प्रति जनता में असन्तोष फैले।

फ़सलों की सुरक्षा के लिए कँटीले तारों आदि से बनायी गयी बाड़ को हटाने का इन दिनों विभिन्न जिलों में घूम रहा आदेश ऐसा ही है जो प्रदेश की जनता में अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रिय योगी सरकार की जड़ों में मट्ठा डालने जैसा हो सकता है। भले यह शासन की नज़र में एक सामान्य श्रेणी की कार्यवाही भर हो!

राज्य सरकार के प्रति शुभेच्छा रखने वाले एक पूर्व प्रोफेसर और पत्रकार कहते हैं कि “सरकार गाय, बैलों की रक्षा करना चाहती है- करे, उसे किसी ने नहीं रोका है। परन्तु उसे खेती-बारी के साथ किसानों को बर्बाद करने वाला कोई निर्णय करने अथवा, कदम उठाने से बाज़ आना चाहिए।”

वे यह भी माँग करते हैं कि “सरकार एक अभियान चलाकर तत्काल प्रभाव से आवारा जानवरों को रोकने के लिए हर गाँव में एक-दो बाड़े बनवाये, इससे पशु और फसल तो सुरक्षित रहेगी ही, गाँव के दो-चार लोगों को समुचित रोज़गार भी मिलेगा।”

इसी तरह से प्रतापगढ़ के एक सम्भ्रान्त किसान एवं अधिवक्ता पण्डित परशुराम उपाध्याय कहते हैं कि “राज्य सरकार का खेतों की कँटीली बाड़ हटाने सम्बन्धी आदेश अदूरदर्शितापूर्ण है। छुट्टा मवेशियों के उचित प्रबन्ध करने के लिए उसे कारगर कदम फ़ौरन उठने चाहिए, अन्यथा किसानों के हितों और मुख्यतया फ़सलों की सुरक्षा के प्रति की जा रही भारी लापरवाही सरकार पर भारी पड़ सकती है।”

(पूर्णत: मौलिक आलेख – डॉ० मत्स्येन्द्र प्रभाकर)