पाटीदारों की दबाव की रणनीति से दूसरे समुदाय भी हो रहे एकजुट

 
गांधीनगर, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)। आर्थिक रूप से मजबूत और एकजुट समुदाय होने के कारण पाटीदार राजनीतिक दलों पर आगामी विधानसभा चुनाव में समुदाय को ज्यादा से ज्यादा सीटें देने का दबाव बना रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे प्रभावित होकर दूसरी जातियां भी एकजुट होकर ज्यादा से ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं।

गुरुवार को जूनागढ़ और गिर सोमनाथ कदवा पाटीदार की बैठक जूनागढ़ में हुई। बैठक के बाद मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कदवा पाटीदार नेता जयराम पटेल ने मांग की कि प्रत्येक राजनीतिक दल को कम से कम 12 कड़वा पाटीदार उम्मीदवारों को टिकट देना चाहिए।

उन्होंने राजनीतिक दलों को धमकाते हुए कहा, जैसा हम कहते हैं वैसा करोगे तो कुछ भी गलत नहीं होगा, नहीं तो हम अपनी ताकत दिखाएंगे।

गुजरात की जनगणना के अनुसार, राज्य में पाटीदारों की आबादी 12 से 14 प्रतिशत है और उनका दबदबा 39 सीटों पर है। 2012 में भाजपा के चुनाव चिह्न् पर 29 पाटीदार विधायक चुने गए। 2017 में 23 निर्वाचित हुए थे जबकि 2012 में कांग्रेस के चुनाव चिह्न् पर 8 पाटीदार विधायक चुने गए थे, दो जीपीपी चिह्न् पर। 2017 में कांग्रेस के 16 पाटीदार चुनाव जीते।

राजनीतिक विश्लेषक कृष्णकांत झा का अवलोकन है, पिछले कुछ सालों से पाटीदारों ने दबाव के ये हथकंडे सीखे हैं। यह विधानसभा में प्रतिनिधित्व के बारे में नहीं है बल्कि सामुदायिक नेतृत्व के बारे में है। लेकिन राजनीतिक दल और राजनेता स्ट्रीट स्मार्ट हैं, सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर वे इस तरह के दबाव में आत्मसमर्पण नहीं करने वाले।

उनका मानना है कि, उत्तरी गुजरात की कुछ सीटों पर पाटीदारों की एकजुटता अन्य समुदायों को भी एकजुट होने पर मजबूर कर रही है, लेकिन राजनीतिक विभाजन के कारण ऐसी एकता पूरे राज्य में दिखाई नहीं दे रही है।

पाटीदारों और उनके नेताओं के शब्दों को मीडिया द्वारा गंभीरता से लिया जाता है और एक प्रचार बनाया जाता है क्योंकि समुदाय आर्थिक रूप से शक्तिशाली है और अपने नेताओं की मार्केटिंग के लिए पैसे का उपयोग करता है।

वरिष्ठ पत्रकार जगदीश मेहता का कहना है कि राजनेताओं से ज्यादा समुदाय के नेता अपने समुदाय पर वर्चस्व के लिए इस तरह की बात करते हैं।

उन्होंने कहा है, अधिक सीटों की उनकी मांग अन्य समुदायों को एकजुट करती है लेकिन यह उतना प्रभावी नहीं है। अन्य एकजुट होते हैं लेकिन यह केवल सीमित सीटों पर ही दिखाई देता है, जबकि राज्य भर में ध्रुवीकरण न तो व्यवहार्य है और न ही सोचने योग्य है।

--आईएएनएस

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