घातक असर दिखाने लगे जी.एम. (जेनेटिकली मोडिफाईड) बीज !!!

विश्व-व्यापार और अधिक उपज की सनक से बाज़ार में लाए गए इन तथाकथित उन्नतशील बीजों को हम 'जहर मिश्रित' कह सकते हैं। इनके बेधड़क इस्तेमाल से जन-जीवन पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ रहा
 है।           
 
ग्लोबल भारत न्यूज

घातक असर दिखाने लगे जी.एम. बीज !!!

    सतर्क निगाह-

(डॉ० मत्स्येन्द्र प्रभाकर, वरिष्ठ पत्रकार)

विश्व-व्यापार और अधिक उपज की सनक से बाज़ार में लाए गए इन तथाकथित उन्नतशील बीजों को हम 'जहर मिश्रित' कह सकते हैं। इनके बेधड़क इस्तेमाल से जन-जीवन पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ रहा
 है।           

अनाज के रिकॉर्ड उत्पादन से भारत सन्तुष्ट है। देश में अनाज का पर्याप्त भण्डार है। स्वास्थ्य तथा बेहतर पोषणीयता को ध्यान में रखकर सरकार मोटे अन्न का उत्पादन बढ़ाने पर लगातार जोर दे रही है। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो इसे नारा जैसा बना चुके हैं। जहाँ और जिस मंच पर अवसर मिलता है, वे मोटे अनाजों की चर्चा अवश्य करते हैं। इसके मद्देनजर मीडिया के एक वर्ग में भी जागरूकता दिखी है। 

बावजूद इसके, पीढ़ियों से भारतीय जलवायु के अनुसार ढले और यहाँ (स्वदेश में) विकसित हुए शुद्ध देसी अनाज-बीजों को बढ़ाने की बात हर किसी के दिलो-दिमाग से गायब है। 

इसका भयंकर असर धरती, इस पर जनस्वास्थ्य और पर्यावरण समेत सभी जगह दिखा है। कृषि, किसान व उपज की लागत बढ़ी है। खेतों को रासायनिक उर्वरक पहले ही नशेड़ी बना चुके हैं।
  
31 जनवरी, 2023 को संसद में केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने ‘आर्थिक समीक्षा 2022-23’ प्रस्तुत की थी। उसके अनुसार जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी चुनौतियों के बावजूद 2021-22 में भारत में कुल अनाज उत्पादन रिकॉर्ड 315.7 मिलियन टन तक हुआ। 

इसके अलावा 2022-23 के (केवल खरीद आधारित) प्रथम अग्रिम अनुमान अनुसार देश में कुल अनाज उत्पादन 149.9 मिलियन टन रहा है। यह गत पाँच वर्षों (2016-17 से 2020-21) के औसत खरीद अनाज उत्पादन से “बहुत अधिक" है। 

दालों का उत्पादन भी पिछले पांच वर्षों के औसत 23.8 मिलियन टन से “बहुत अधिक” रहा है। 2021-22 में बागवानी फसलों का हुआ उत्पादन रिकॉर्ड 342.3 मिलियन टन रहा। गौरतलब है कि अनाजों में सर्वाधिक मात्रा गेहूँ, चावल की है।  
   
दूसरी ओर विश्वसनीय सूत्रों का “ऑफ़ द रिकॉर्ड” कहना है कि “जैविक ढंग से विकसित जीएम बीजों और उससे उत्पादित गेहूँ से काफी गम्भीर एवं बड़ा नुकसान हो रहा है। अन्य अनाज-सब्ज़ियों, फलों-फ़सलों के भी ऐसे बीज हर तरह से क्षतिकारक हैं। 

गेहूँ, धान (अर्थात् चावल), ज्वार, बाजरा और मक्का के मामले में ये सर्वाधिक नुकसानदेह हैं। इसका कारण भारत में गेहूँ व चावल समेत इन अनाजों का मुख्य खाद्यान्न होना है। जीएम (जेनेटिकली मोडीफाइड) उत्पाद यानी, संशोधित या परिवर्तित जीन वाले ‘हाइब्रिड’ अनाज-बीज बड़े पैमाने पर भारतीय किसानों को नुकसान दे रहे हैं, साथ-साथ जन-स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डाल रहे हैं।”  

खेती-बारी से जुड़े लोगों का कहना है कि “पहली बात इनके बीजों की दोबारा बोआई कर उपज नहीं ली जा पाती जिससे किसानों को इनके बीज पर हर साल भारी राशि लगानी होती है; नतीजतन लागत बढ़ती जाती है। बाजार में उपलब्ध कथित “प्रमाणित बीज” कई गुना महँगे हैं। 

एक और अहम बात यह कि इन (जैविक मिश्रण से विकसित) बीजों से उपज लेने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीट-पतङ्गों से सुरक्षात्मक रसायनों का इस्तेमाल अनिवार्य हो जाता है। 

इन सब से लागत बढ़ती है तो लाभ घटता है। इससे कई बार लागत तक मिलना मुश्किल हो रहा है। इसकी वजह असामयिक जलवायु और अधुनातन प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल सम्बन्धी अनिवार्यता होते जाना भी है। 

खेती के लिए मजदूरों की बढ़ती कमी तथा मजदूरी का बढ़ते जाना एक जटिल समस्या बनती जा रही है। कुशल मजदूरों का बड़ा अभाव पहले से है, रहे-सहे मजदूरों की अलग-अलग कारणों से खेती में रुचि प्राय: ख़त्म सी हो चुकी है। वे शहर भागकर वहाँ दूसरे कामों में लगना अच्छा समझने लगे हैं। 

रासायनिक उर्वरकों और कीट-पतङ्गों से सुरक्षात्मक रसायनों का बढ़ा प्रयोग पर्यावरण पर बुरा असर डालता है। इसके विभिन्न तत्त्व जलवायु और पारिस्थितिकी बिगाड़ते हैं। यही नहीं, इन सबका भारत में पर्यावरण पर अलग-तरह से असर पड़ रहा है क्योंकि ये बीज भारतीय जलवायु और पारिस्थितिकी के अनुसार विकसित नहीं किये गये हैं अपितु सर्वथा विपरीत परिस्थिति में तैयार किये जाते हैं।  
   
दूसरी बात यह कि ये ‘मीठे ज़हर’ (स्लो पाइजन) का काम कर रहे हैं। विशेष सतर्कता बरतते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि “विभिन्न रसायनों की मदद से उपजे अनाजों के बढ़ते इस्तेमाल से निष्क्रिय तथा अस्वस्थ रहने वालों की निरन्तर बढ़ती तादाद अनियंत्रित हो रही है,  इन और इन पर आधारित उत्पादों से लोग पहले से अधिक आलसी होने लगे हैं। 

मजदूर ज्यादा मेहनत न कर पाने के कारण कम उत्पादक सिद्ध हो रहे हैं।” फिर भी अपनी सेवाओं तथा व्यावसायिक विवशताओं के कारण हर कोई इस बात को खुले तथा अधिकृत तौर पर कहने से बारहाँ बचता है।   
   
अधिक उत्पादन की मंशा जन-स्वास्थ्य की क़ीमत पर नहीं होनी चाहिए। यह प्रवृत्ति बाज़ार को भरपूर बढ़ावा देती एवं दे रही है। यह बीमार लोगों की संख्या बढ़ा रही है। कह सकते हैं कि किसी षड्यंत्र के तहत अनाजों ही नहीं, सब्ज़ियों, फलों आदि से भी भारत में लोक-स्वास्थ्य को प्रभावित करने के लिए लक्षित किया जा रहा है। 

समझने की आवश्यकता है कि जिस बीज में कोई नकारात्मक रसायन मिला हो वह किस तरह फ़ायदेमन्द हो सकता है?   
   
जी.एम. (जेनेटिकली मोडीफाइड) उत्पाद अर्थात् संशोधित या, परिवर्तित जीन वाला उत्पाद वह नया जीव-बीज है, जिसमें सामान्यतया विजातीय (जैविक) जीन डाले जाते हैं। 

इसलिए एक बार बड़े पैमाने पर बाज़ार में जारी हो जाने के बाद इन बीजों और इनके पर्यावरण में प्रभाव को नष्ट करना नामुमकिन है। इन्हें "जेनेटिकली मोडीफाइड" नहीं 'ज़हर-मिश्रित' नाम दिया जाना तथा समझना चाहिए। अब लगभग हर ख़ास-ओ-आम यह जान चुका है कि अपेक्षाकृत मुलायम और चिकने आटे वाला गेहूँ तो यों भी स्वास्थ्य के लिए बुरा है क्योंकि यह मूलत: भारत का स्वाभाविक खाद्यान्न नहीं है। 

कदाचित इसी बात को पहचान कर जन-जन के द्वारा नित्य व्यवहार में मोटे अनाजों का इस्तेमाल किये जाने के लिए प्रधानमंत्री बारम्बार जोर डालते हैं। 

इसके लिए इन अनाजों की उपज बढ़ना जरूरी है, साथ-साथ यह ध्यान रखा जाना है कि मोटे अनाज की खेती, उत्पादन तथा विपणन में जीएम अर्थात हाइब्रिड बीजों का प्रयोग रोककर देशी बीजों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए और पत्तियों, कचरे आदि की सहायता से निर्मित कम्पोस्ट खाद तथा बायो-कम्पोस्ट का इस्तेमाल सुनिश्चित हो। पशुओं को आवारा छोड़ने, उनके वध आदि से गोबर की भारी किल्लत हो गयी है। जो है वह उपले-कण्डे बनाने और जलाने में अधिक जा लग रहा। 

इस कारण कुछ सालों से बायो-कम्पोस्ट की चर्चा तेज हो चली है। इन अनाजों के सहारे भारत में अनाज के सबसे बड़े वैश्विक भण्डार बनाने हो कैसे कल्याण होगा जिसकी मंजूरी का ऐलान केन्द्र ने 31 मई 2023 को किया है?