सात द्वीपों से बना एक शहर बोम बहिया, कैसे बना मुंबई

1911 में राजा जार्ज और रानी मैरी के भारत आगमन पर गेट-वे ऑफ़ इंडिया का निर्माण हुआ। आज़ादी के बाद बॉम्बे को महाराष्ट्र की राजधानी बनाया गया, और बॉम्बे का नाम बदलकर मुम्बा देवी के नाम पर मुंबई कर दिया गया।
 
Mumbai kaise bana

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

हटके, 02 मई:- भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है मुंबई शहर, जिसे पहले बम्बई या बॉम्बे नाम से जाना जाता है। मुंबई को भारत का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है और सपनों का शहर भी। क्या आपको पता है कि इस शहर का गठन लावा निर्मित सात छोटे-छोटे द्वीपों से हुआ है और ये पुलों द्वारा प्रमुख भूखंड के साथ जुड़े हुए हैं? वैसे तो मुंबई का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन 17वीं शताब्दी में इस शहर के साथ एक दिलचस्प घटना घटी थी, जिसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे। तो आइए आज जानते है बोम बहिया से बने मुंबई की दिलचस्प कहानी।

सपनो का शहर- मुंबई वो शहर जहां कई युवा अपने सपनों की उड़ान भरने आते हैं, इसकी रफ़्तार के साथ चलना आसान नहीं। एक ऐसा शहर जहां हर कोई अपनी पहचान बनाने की भाग-दौड़ में सरपट दौड़ता रहता है, ये शहर कई नाम से जाना गया- कभी बोमबहिया तो कभी बॉम्बे, कभी बम्बई तो कभी मुंबई। यहां कई राजाओं ने अपना शासन चलाया, इसका इतिहास कई संघर्षों और कहानियों से भरा पड़ा है, मुंबई के बारे में यहां तक कहा जाता है कि इसे कभी दहेज में दे दिया गया था।

सात द्वीपों से बना एक शहर- मुंबई सात द्वीपों से बना एक शहर है, इन द्वीपों पर छोटे-छोटे गांव हुआ करते थे। जहां मछुवारे रहा करते थे, जो इसके मूल निवासी माने जाते हैं। मुंबई में मिले प्राचीन अवशेषों से यह साबित होता है कि मुंबई द्वीप समूह पाषाण युग से बसा हुआ है, यहां 250 ई.पू. में भी एक छोटी आबादी रहती थी। तीसरी शताब्दी ई.पू. में मुंबई पर मौर्य साम्राज्य के महान शासक सम्राट अशोक का कब्ज़ा हो गया, उन्होंने यहां शासन किया। इतिहासकारों के अनुसार यहाँ मौजूद बालकेश्वर मंदिर और एलिफेंटा की गुफाएं भी अति प्राचीन हैं, वहीं लगभग 1200 ई. के आस-पास इस द्वीप पर माहिम बस्ती की स्थापना हुई। जिसे अतीत में महिकावती के नाम से जाना जाता था। 1343 ई. के करीब मुंबई पर गुजरात के राजाओं ने शासन करना शुरू कर दिया।

डच के साथ पुर्तगालियों का आगमन- फिर भारत में डच के साथ-साथ पुर्तगालियों का आगमन हुआ, व्यापार की दृष्टि से बम्बई एक बेहतरीन स्थान था। 1507 में पुर्तगालियों ने यहां आक्रमण किया मगर हथियाने में असफल रहे, पुर्तगालियों के अलावा मुग़ल बादशाह हुमायूं की भी नज़र बम्बई पर पड़ चुकी थी। यह बात तब की है जब यहां गुजरात के शासक बहादुर शाह का शासन हुआ करता था, इस बात से वे बहुत ही चिंतित थे। इसीलिए उन्होंने 1534 में पुर्तगालियों के साथ संधि कर ली, अब बम्बई पर पुर्तगालियों ने व्यापार को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यहां की निर्भरता पुर्तगालियों के नियंत्रण में आ चुकी थी, बम्बई अब पुर्तगालियों के अधीन हो चुकी थी। पुर्तगालियों ने यहां व्यापार की दृष्टि से एक कारखाना खोला। यहां रेशम, कपास, तम्बाकू, चावल, और मलमल का व्यापार बड़े पैमाने पर होने लगा। उन्होंने इसे बोम बहिया कहा, जिसका अर्थ था एक अच्छी खाड़ी। बाद में अंग्रेजों द्वारा इसे बॉम्बे कहा गया, और इसी नाम से मशहूर भी हुआ।

दहेज में मिला शहर- बहरहाल, ब्रिटिश साम्राज्य की भी नज़र इस पर थी, व्यापार की दृष्टि से बेहतर जगह थी। वे यहां बड़े पैमाने पर व्यापार करना चाहते थे, अंग्रेजों और पुर्तगालियों के बीच कई बार छिटपुट घटनाएं भी हुई। ऐसे में पुर्तगालियों ने सुरक्षा की दृष्टि से यहां एक बड़ा गोदाम व किला बनवाया, लोगों को रोज़गार देने के साथ-साथ रहने के लिए जगह भी दी गई। लेकिन अंग्रेजों ने बम्बई को अपने नियंत्रण में लेने के लिए बहुत ही जद्दोजहद की, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ‘सूरत परिषद’ ने सन 1652 में बम्बई खरीदने का प्रस्ताव भी रखा, जिनमें उन्हें विफलता मिली। बाद में इस विवाद को ख़त्म करने के लिए पुर्तगाल के राजा ने अपनी बेटी कैथरीन का विवाह इंग्लैंड के राजा से करने का फैसला लिया। उनके इस प्रस्ताव को ब्रिटिश राजा ने स्वीकार किया। 1661 में पुर्तगाल के राजा ने अपनी बेटी कैथरीन की शादी इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय से कर दी, यह निर्णय दोनों के मध्य मजबूत गठजोड़ कायम करने के लिए किया गया था। दिलचस्प यह है कि इस शादी के एवज में पुर्तगाल ने बहुत कुछ ब्रिटेन को दिया, इसके साथ ही इंग्लैड के राजा को बंबई भी दहेज के रूप में दे दिया गया। 1668 में राजा चार्ल्स द्वितीय ने बम्बई को ईस्ट इंडिया कंपनी को 10 पाउंड में पट्टे पर दे दिया, इस तरह मुंबई अंग्रेजों के अधीन हो गया। अंग्रेजों ने यहां अपना व्यापार फैलाया।

बोम बहिया से मुंबई की नींव- आगे गवर्नर गेराल्ड औंगियर ने कई गोदामों और बंदरगाहों को बनवाने के लिए एक रिपोर्ट लंदन भेजी। कंपनी ने उनके इस प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगाई, इसके बाद यहां पर लोगों के लिए जमीन खरीदने की अनुमति दी गई। उनके रहने के लिए हर सुविधाओं का प्रबंध किया गया। गेराल्ड ने कई इमारतें, अस्पताल, चर्च और एक टकसाल का भी निर्माण कराया। इतिहासकारों के मुताबिक साल 1670 में कंपनी के पास रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए 1,500 सैनिक तैनात किए गए थे। इस सैनिक जत्थे में ब्रिटिश और स्थानीय दोनों प्रकार के लोग शामिल थे, 1670 में ही यहां प्रिंटिंग प्रेस स्थापित की गई। कई कारखाने लगाए गए, इस बीच दिलचस्प यह है कि सन 1661 में बंबई की आबादी लगभग 10 हजार थी। लेकिन यहां लोगों के जीवन यापन के लिए मिलने वाली सुविधाओं के चलते लोग काम की तलाश में आते रहे, जिसके फलस्वरूप साल 1675 में यहां की आबादी बढ़कर 10 हज़ार से 60 हज़ार से अधिक हो गई, मेहनतकश मजदूरों ने इस शहर को चमका दिया था।

बम्बई के लिए अंग्रेजों और मुगलों के बीच संघर्ष- यह वही दौर था जब बम्बई को लेकर अंग्रेजों व मुगलों के मध्य संघर्ष शुरू हो चुका था। सन 1687 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना मुख्यालय सूरत से स्थानांतरित करके मुंबई कर  लिया। आगे मुंबई पर मुगलों ने आक्रमण कर दिया, तब ब्रिटिश, डच और पुर्तगाली समुद्र पर राज किया करते थे। ऐसे में इनके जहाजों के कप्तान दूसरे के जहाजों को भी अपने कब्जे में लेने के लिए हमला करते रहते थे। एक बार अंग्रेजों ने भी मुगलों के 14 जहाजों पर कब्ज़ा कर लिया। ऐसे में मुगलों ने बदला लेने के लिए 1689 ई. में सेना की एक टुकड़ी को बॉम्बे भेजा, मुगलों की सेना ने बंदरगाह में प्रवेश कर शहर के किले को चारों तरफ से घेर लिया। हालांकि, बाद में दोनों के मध्य समझौता हो गया था, लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी को इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। इसके बावजूद बंबई के विकास की रफ्तार धीमी नहीं पड़ी। बॉम्बे के गवर्नर सर रोबर्ट ग्रांट ने कई सड़कों का निर्माण कराया, 1853 में विक्टोरिया और थाणे को जोड़ने वाली पहली भारतीय रेलवे लाइन का निर्माण हुआ। इसके बाद विक्टोरिया टर्मिनस, बॉम्बे विश्वविद्यालय, जनरल पोस्ट ऑफिस, प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय, राजबाई टावर, नगर निगम, ओल्ड सचिवालय जैसी कई इमारतों का निर्माण हुआ, 1911 में राजा जार्ज और रानी मैरी के भारत आगमन पर गेट-वे ऑफ़ इंडिया का निर्माण हुआ। आज़ादी के बाद बॉम्बे को महाराष्ट्र की राजधानी बनाया गया, और बॉम्बे का नाम बदलकर मुम्बा देवी के नाम पर मुंबई कर दिया गया।।