श्री गुरुजी की पुण्यतिथि पर संघ के प्रांत प्रचारक रमेश जी ने प्रतापगढ़ के फेसबुक पेज “केशव सेवा संस्थान” से सम्बोधन किया।

कहा कि श्री गुरुजी एक युग दृष्टा और अलौकिक प्रतिभा के धनी थे।

ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क

प्रतापगढ़, 6 जून।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर श्री गुरुजी की पुण्यतिथि पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रांत के प्रांत प्रचारक रमेश जी ने प्रतापगढ़ के फेसबुक पेज “केशव सेवा संस्थान” के माध्यम से कार्यकर्ताओं और समाज के बंधुओं को संबोधित करते हुए कहा कि श्री गुरुजी एक युग दृष्टा और अलौकिक प्रतिभा के धनी थे।

रमेश जी ने कहा कि राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति श्री गुरु जी का जीवन दर्शन था। श्री गुरु जी कहते थे कि भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति चाहे उसकी जो भी पूजा पद्धति हो वह हिंदू है और हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व है। उनके अंदर गहरी आध्यात्मिक अभिरुचि थी तथा उनके अंदर आध्यात्मिकता और राष्ट्रीयता में अद्भुत समन्वय था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्ययन और अध्यापन किया और वहीं संघ के स्वयंसेवक बने वहीं उनका नाम गुरुजी पड़ा। स्वाध्याय में उनकी विशेष रुचि थी। विषम परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होते थे और उनके कार्य में सदैव निरंतरता और गतिशीलता बनी रहती थी।

आध्यात्मिक अभिरुचि के कारण गुरु जी सारगाछी आश्रम में स्वामी अखंडानंद जी के सानिध्य में आए। स्वामी अखंडानंद जी ने अपने दिव्य चिंतन के आधार पर अनुभव किया कि माधवराव गोलवलकर की आवश्यकता राष्ट्र को ज्यादा है‌ इस प्रकार स्वामी अखंडानंद जी के निर्देश पर संघ के संस्थापक परम पूज्य डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी के संपर्क में आकर राष्ट्र सेवा के कार्य में स्वयं को समर्पित कर दिया। समय के साथ परिस्थिति और आवश्यकता को ध्यान में रखकर उन्होंने कार्य किया। 1939 में वे संघ के सरकार्यवाह हुए और आगे चलकर डॉक्टर साहब के महानिर्वाण के पश्चात 34 वर्ष की आयु में अर्थात 1940 में ही संघ के सरसंघचालक बने।

श्री गुरुजी निरंतर प्रवास करते थे और कहते थे मेरा दूसरा आवास रेलगाड़ी का डिब्बा है। उन्होंने 65 से 70 बार संपूर्ण देश का भ्रमण व प्रवास किया।1947 भारत विभाजन की घटना ने उन्हें उन्हें झकझोर कर रख दिया था। संघ के स्वयंसेवको के माध्यम से लगभग 5 लाख हिन्दुओं को सुरक्षित पाकिस्तान से हिंदुस्तान लाने का काम किया। जम्मू-कश्मीर को भारत मे विलय के लिए सर्वाधिक भूमिका निभाई।1962 के भारत-चीन युद्ध के पूर्व उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री को आगाह किया था कि भारत को हिंदी-चीनी, भाई-भाई का नारा लगाने वाले चीन से सावधान रहने की आवश्यकता है।

उन्होंने सम्पूर्ण समाज को जोड़ने व संघटित करने के लिए ही समाज व राष्ट्र की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनसंघ, विश्व हिंदू परिषद, वनबासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ जैसे अनेक संगठनों की स्थापना स्वयंसेवकों के माध्यम से की।

संघ के व्यापक प्रभाव और राष्ट्र के प्रति समर्पण के परिणाम स्वरूप एवं 1962 के चीन द्वारा भारत पर किये गए आक्रमण के समय देश के लिये संघ के स्वयंसेवको की भूमिका से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नेहरू जी ने 1963 में गणतंत्र दिवस परेड दिल्ली में संघ के 3000 गणवेशधारी स्वयंसेवकों को बुलाकर प्रदर्शन व आकर्षक के हिस्सा बनाया गया।

श्री गुरु जी का चिंतन सर्व-समावेशी था, “मैं नही- तू ही” के सिद्धान्त पर जीवन पर्यन्त कार्य करते रहे।आज भगवान श्री राम के भव्य मंदिर का निर्माण आरंभ हो रहा है। यह परम पूज्य श्री गुरुजी की दूरदृष्टि का ही परिणाम है। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन की स्थापना की थी जिसके द्वारा श्री राम जन्मभूमि को लेकर जन-जागरण किया गया था, जिसका परिणाम आज हम सबके समक्ष है।

श्री गुरुजी में कार्यकर्ता के प्रति आत्मीयता और समरसता प्रबलरूप से देखने को मिलती थी। गुरुजी सूचना पालन व व्यवस्था पालन को सदैव महत्व देते थे। वे कहते थे जो सूचना का पालन नहीं कर सकता वह कैसे राष्ट्रभक्त हो सकता है। संगठन और भारत से श्री गुरुजी एकाकार हो गए थे। मार्च 1973 के प्रतिनिधि सभा को सम्बोधित करते हुये उन्होंने कहा था- “आगे बढें, विजय हमारी है”।

अंतिम समय में वे कर्क रोग से पीड़ित हो गए थे। फिर भी चलते रहे , प्रवास करते रहे। जीवन के अंतिम क्षण तक उन्होंने राष्ट्र साधना की और भारत माता की जय बोलकर महाप्रयाण की ओर प्रस्थान किए। श्री गुरु जी का व्यक्तित्व अद्भुत, अद्वितीय और अत्यंत प्रेरणादायी व राष्ट्र के लिये समर्पित था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रतापगढ़ के जिला कार्यवाह डॉक्टर सौरभ पांडे ने बताया कि जिले की प्रत्येक कुटुंब शाखा, विशाखा मिलन, और मंडली के साथ-साथ विचार परिवार के सभी संगठनों के कार्यकर्ताओं सहित समाज के बंधुओं ने उद्बोधन को सुना और श्री गुरु जी के जीवन की प्रेरणा प्राप्त की। प्रमुख रूप से रमेश चंद्र त्रिपाठी, चिंतामणि दुबे, विभाग प्रचारक नितिन, हरीश, कार्तिकेय द्विवेदी, कैबिनेट मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह मोती सिंह, हरिओम मिश्र, डॉक्टर अखिलेश पांडेय, मनीष सिंह, डॉक्टर पीयूष कांत शर्मा, नितेश खंडेलवाल, दिनेश अग्रहरि, प्रभाशंकर पाण्डेय, गिरजा शंकर मिश्र, डॉ रंगनाथ शुक्ला, डॉ बृजभानु सिंह, अभिषेक वैश्य, मित्र प्रकाश त्रिवेदी आदि ने उद्बोधन को सुना और आत्मसात किया।