जानिए घरों और दुकानों में एक ही तेल का लगातार इस्तेमाल कितना है खतरनाक, देता है इन बीमारियों को जन्म।।

 
जानिए घरों और दुकानों में एक ही तेल का लगातार इस्तेमाल कितना है खतरनाक, देता है इन बीमारियों को जन्म।।

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

सेहत, 10 अक्टूबर:- अक्सर जब कभी घर में पकोड़े या पूरियां तले जाते हैं तो उसके बाद कढ़ाई में तेल बच जाता है जिसे ज्यादातर लोग दोबारा इस्तेमाल कर लेते हैं। कुछ लोग उसमें सब्जी बना लेते है तो कुछ दोबारा तलने में इस्तेमाल करने के लिए डब्बे में भरकर रख लेते हैं। मगर वो लोग शायद इस बात से अंजान रहते हैं कि ये आपकी सेहत के लिए कितना अधिक खतरनाक है? एक नई रिसर्च के मुताबिक, एक बार इस्तेमाल किए हुए तेल को बार-बार यूज करने से कैंसर जैसी घातक बीमारियां होने की संभावना बहुत बढ़ जाती हैं।

छोटी दुकानों में भी एक ही तेल बार-बार होता है इस्तेमाल:- मिठाई की दुकानों या चाट-समोसे बेचने वाले भी एक ही तेल का लगातार इस्तेमाल करते हैं। आप बड़े चाव से वहां इन सभी चीजों को खाते हैं। इससे आप कई खतरनाक बीमारियों से ग्रस्त हो सकते हैं। यदि आप बचे हुए तेल का इस्तेमाल दोबारा करते हैं, तो उसके रंग और गाढ़ेपन पर जरूर नजर डालें। तेल यदि बहुत डार्क और गाढ़ा हो चुका है, तो उसका इस्तेमाल बिल्कुल न करें। फिर चाहे तेल को फेंकना ही क्यों न पड़े। तेल आपकी सेहत से बढ़कर नहीं है।

शोध में पता चला कि इसकी वजह से कैंसर, स्ट्रोक और अलजाइमर जैसी घातक बीमारियों हो सकती है:- एक शोध में यह बताया गया कि तलने के लिए एक ही तेल का इस्तेमाल करने से उसमें फ्री रेडिकल्स भी बनने लगते हैं जो आगे चलकर गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। इसकी वजह से कैंसर, स्ट्रोक और अलजाइमर जैसी घातक बीमारियों के होने की संभावना अत्यधिक बनी रहती है, इसके अलावा एक ही तेल को कई बार उच्च तापमान पर गर्म करने से उसमें एल्डीहाइड बनने लगते हैं जिस वजह से लोगों में डायबिटीज, हाइपरटेंशन, लिवर आदि की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अगर बचा हुआ तेल इस्तेमाल कर भी रहे हैं तो सबसे पहले उसे छान जरूर लें और ये भी देखें कि वो गाढ़ा, काला या चिप-चिपा ना दिखाई दे।

सावधानी बरतने में ही भलाई

01- तेल का वास्तविक रंग बदल जाने पर उसे दोबारा इस्तेमाल करने से बचें, खासकर बच्चों को तो इस तेल में पकाया हुआ कुछ भी खाने को न दें।

02- कभी भी क्वालिटी से कम्प्रोमाइज मत करें। अच्छी गुणवत्ता वाले तेल में ही खाना पकाएं। बेकार क्वालिटी वाले तेल को गर्म करने पर झाग बनता है। ये एडल्ट्रेटेड ऑयल होते हैं। ये शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं।

03- एक बार तेल इस्तेमाल किया है, तो उसे दोबारा छानकर प्रयोग करें। इससे तेल साफ हो जाएगा। इसका गाढ़ा, चिपचिपा और कालापन भी निकल जाएगा।

कितनी तरह के होते हैं खाने के तेल और खाने के तेलों को दो कैटिगरी में बांटा जा सकता है।

01- एनिमल सोर्स (सैचरेटेड फैट):- इसमें घी, मक्खन, क्रीम व नारियल तेल प्रमुख हैं। इन्हें सैचरेटेड फैट भी कहा जाता है। ये भारी होते हैं और आसानी से पचते नहीं हैं। लेकिन जमकर वर्कआउट या शारीरिक मेहनत की जाए तो बॉडी में अब्जॉर्ब हो जाते हैं। ये बैड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं लेकिन गुड कॉलेस्ट्रॉल को कुछ नहीं करते। वैसे, सैचरेटेड होने के बावजूद कोकोनट ऑइल कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ाता। भारी होने की वजह से इन्हें कम खाना चाहिए। दिनभर में हमारे द्वारा ली गईं कैलरीज का 10 फीसदी से भी कम सैचरेटेड फैट्स से आना चाहिए।

02- प्लांट सोर्स:- प्लांट सोर्स से दो तरह के फैट मिलते हैं, रिफाइंड और वनस्पति घी।

रिफाइंड ऑइल:- किसी भी तेल को जब इस तरह प्रोसेस किया जाए कि उसका मूल स्वरूप खत्म हो जाए और देखने-सूंघने से मालूम नहीं चले कि कौन-सा तेल है तो उसे रिफाइंड ऑइल कहते हैं। रिफाइंड ऑइल भी दो तरह के होते हैं। मोनो-अनसैचरेटेड (मूफा) और पॉली-अनसैचरेटेड (पूफा)।
मूफा:- ऑलिव, राइस ब्रैन, सरसों, मूंगफली आदि।
पूफा:- सफोला या सैफ्लार, कनोला, सनफ्लार आदि।

कुछ तेल ऐसे भी हैं, जो फैक्ट्री में नहीं बनते। कच्ची घानी का तेल (सरसों का तेल) इसी कैटिगरी में आता है। जिन ऑइल में मूफा, पूफा के अलावा ओमेगा-3 ज्यादा मात्रा में होता है, वे गुड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं और बैड को कम करते हैं।

वनस्पति घी (ट्रांस सैचरेटेड फैट):- डालडा, रथ, पनघट आदि को इस कैटिगरी में रखा जाता है। इन्हें ट्रांस सैचरेटेड फैट भी कहा जाता है। खाने के तेल में हाइड्रोजन मिलाकर वनस्पति घी तैयार किया जाता है। ऐसा ऑइल की लाइफ और स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। लेकिन हाइड्रोजिनेशन की प्रक्रिया में इनमें भारी मात्रा में ट्रांस फैट आ जाते हैं। ये शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। ट्रांस फैट्स बैड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं और गुड कॉलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। ये शरीर में जलन भी बढ़ाते हैं। सैचरेटेड और ट्रांस सैचरेटेड फैट सर्दियों में जम जाते हैं। वैसे, देसी घी और बटर में भी 5 फीसदी तक ट्रांस-फैट हो सकते हैं। टोटल कैलरीज का एक फीसदी से भी कम ट्रांस-फैट्स से लेना चाहिए।

किसमें ज्यादा होता है इस्तेमाल:- जिन चीजों में कुरकुरापन लाना होता है, उनमें वनस्पति तेलों का इस्तेमाल किया जाता है। पैक्ड फ्राइड फूड और बेकरी प्रॉडक्ट्स में इन्हें यूज किया जाता है। जैसे कि नमकपारे, शक्करपारे, कुकीज, मफिन, फैन आदि। साथ ही, रेडी टु यूज सूप, वेजिटेबल और ग्रेवी आदि में भी ट्रांस फैट्स होते हैं। बेकरी प्रॉडक्ट्स में मक्खन, डालडा, मारग्रीन की जगह पाम ऑइल डाल सकते हैं क्योंकि इसमें सैचरेटेड व अनसैचरेटेड फैट्स का अनुपात सही है।

ज्यादा नुकसान किससे:- ज्यादा मात्रा में खाने पर खाने के सभी तेल नुकसानदेह होते हैं लेकिन सबसे नुकसानदेह हैं ट्रांस फैट्स या वनस्पति घी। इनमें केमिकल होते हैं, जोकि दिल की नलियों को ब्लॉक कर देते हैं और शरीर में जलन बढ़ाते हैं। साथ ही, ये बैड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं और गुड कॉलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। इसलिए जो खाएं, फ्रेश खाएं। तले-भुने से बचें।

कौन-सा तेल सबसे अच्छा:- किसी भी एक तेल को अच्छा या संपूर्ण नहीं माना जा सकता। अच्छा तेल वह है, जिसमें मूफा और पूफा बैलेंस मात्रा में हो। साथ ही, फैटी एसिड्स ओमेगा 3, 6 व 9 भी अच्छी मात्रा में होने चाहिए। जिस तेल में ओमेगा-3 जितना ज्यादा होगा, वह दिल के लिए उतना ही अच्छा होगा। यह सरसों, मूंगफली, ऑलिव (जैतून) ऑइल में ज्यादा होता है। किसी एक चीज के आधार पर किसी तेल को अच्छा नहीं माना जा सकता। मसलन, ऑलिव में मूफा व पूफा कम होते हैं लेकिन ओमेगा 3 व 6 अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। सैफ्लावर और सनफ्लार को दिल के लिए सबसे अच्छा माना जाता रहा है, क्योंकि इनमें पूफा ज्यादा है लेकिन हालिया रिसर्च में पता चला है कि पूफा का हिस्सा ओमेगा-3 ही दिल की सेहत का हाल तय करता है। सरसों के तेल में ज्यादा ओमेगा-3 पाया जाता है। इसी तरह, सैचरेटेड फैट ज्यादा होने की वजह से नारियल तेल को अच्छा नहीं माना जाता, जबकि यह कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ाता। नॉर्थ इलाकों में रहनेवालों को इसे यूज नहीं करना चाहिए लेकिन तटीय इलाकों में रहनेवाले इसे खा सकते हैं क्योंकि वे आमतौर पर घी-मक्खन कम खाते हैं। मोटे तौर पर ऑलिव, कनोला, राइस ब्रैन, सोयाबीन और सरसों के तेल को अच्छा मान सकते हैं। कनोला का तेल सरसों जैसा ही लेकिन उससे बेहतर है क्योंकि इसमें यूरेसिक एसिड नहीं बनता।

बदल-बदल कर खाएं:- लगातार एक ही तेल न खाएं। हर ऑइल में कुछ-न-कुछ जरूरी फैटी एसिड्स होते हैं। कोई तेल पूरा नहीं है, इसीलिए ऑइल का रोटेशन करना चाहिए। एक बोतल खत्म हो जाने पर दूसरा तेल ले लें या दो तेलों को एक साथ इस्तेमाल कर सकते हैं। मसलन, एक सब्जी सरसों के तेल में बनाएं तो दूसरी ऑलिव ऑयल में। फ्राई करने के लिए हाई या मीडियम स्मोकिंग पॉइंट (जिस तापमान पर तेल में धुआं उठता है) वाले तेल सरसों, मूंगफली, सफोला, सनफ्लावर आदि यूज कर सकते हैं। देसी घी में फ्राई करने से बचना चाहिए।।