जब तीस वर्ष पूर्व श्री राम नाईक की पहल पर संसद में पहली बार गूंजा था ‘वंदे मातरम्’

आजादी के 45 वर्ष बाद 23 दिसंबर 1992 को पहली बार संसद में ‘वंदे मातरम्’ गूंज उठा था। इस ऐतिहासिक पल को तीस वर्ष पूर्ण होने पर उत्तरप्रदेश के पूर्व राज्यपाल श्री राम नाईक ने अपनी यादें ताजा की।
 
ग्लोबल भारत न्यूज

जब तीस वर्ष पूर्व श्री राम नाईक की पहल पर संसद में पहली बार गूंजा था ‘वंदे मातरम्’

डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली, 23 दिसम्बर।

आजादी के 45 वर्ष बाद 23 दिसंबर 1992 को पहली बार संसद में ‘वंदे मातरम्’ गूंज उठा था। इस ऐतिहासिक पल को तीस वर्ष पूर्ण होने पर उत्तरप्रदेश के पूर्व राज्यपाल श्री राम नाईक ने अपनी यादें ताजा की।

उक्त अवसर का स्मरण करते हुए श्री नाईक ने कहा, “1992 में लोकसभा में एक तारांकित प्रश्न के उत्तर में मानव संसाधन मंत्री के जबाब से मैं चकित हो गया था। जबाब यह था कि हालाकि देश में राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ और राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ को एक जैसा सम्मान है और उसे स्कूलों में गाना चाहिए। लेकिन यह देखा गया है कि उदासीनता के कारण कई स्कूलों में नहीं गाये जाते।  जिस देश में ‘वंदे मातरम्’ गाते हुए लोग शहीद हो गये, जहां ‘वंदे मातरम्’ देश प्रेम का एक नारा है वहां अगर यह स्थिति है तो वह बदलने के लिए देश के सर्वोच्च नेताओं का – सांसदों का ध्यान आकर्षित करने के लिए मैंने आधे घंटे की चर्चा उपस्थित की थी।”

श्री नाईक ने कहां कि चर्चा के दौरान श्री लालकृष्ण आडवाणी और अन्य सांसदों ने वंदे मातरम् गाकर सभी देश की अस्मिता से जुड़ी इस बात को समर्थन दिया। वह वो समय था जब कुछ ही दिन पूर्व दूरदर्शन पर लोकसभा का कामकाज का प्रसारण किया जाने लगा था। इसलिए मैंने सुझाव दिया था कि सभी सांसद ‘जन-गण-मन’ और ‘वंदे मातरम्’ का अगर संसद में सामूहिक गान करेंगे तो उसे पूरा देश देखेगा और प्रेरणा पाएगा। 

इस पर तत्कालीन मंत्री श्री अर्जुन सिंह जी ने कहा था की ऐसे करने का निर्णय तो लोकसभा अध्यक्ष ही ले सकते हैं। सदन का रुख तो था लेकिन इस पर ठोस करवाई कैसे होगी यह भी सवाल था।

मैंने इस पर सोच विचार कर यह विषय संसद की General Purposes Committee – "सर्वसाधारण कामकाज समिति" में प्रस्तुत किया जिसके अध्यक्ष लोकसभा के अध्यक्ष ही होते हैं और यह समिति सदन के काम के संदर्भ में निर्णय लेती है। समिति में सभी पार्टियों के नेता सदस्य होते है, और उन्होंने मेरी माँग का समर्थन किया। अंतिमतः यह निर्णय हुआ कि संसद के हर सत्र का आरंभ ‘जन-गण-मन’ से और समापन ‘वंदे मातरम्’ से होगा। 

लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय जारी करने के बाद पहली बार 23 दिसंबर 1992 को याने आजादी के 45 वर्षों के बाद संसद ‘वंदे मातरम्’ से गूंज उठा। तब से आज तक यह संसद के हर सत्र का समापन ‘वंदे मातरम्’ से हो रहा है।

इस प्रकार संसद में वंदे मातरम् गाने की देश प्रेम की एक सशक्त परंपरा का प्रारंभ होने में श्री राम नाईक का प्रमुख सहयोग रहा। 

श्री राम नाईक ने कहा कि "यह मेरे लिए गर्व की बात है। संसद में पहली बार वंदे मातरम् को गाए तीस वर्ष पूर्ण हो रहे है। इस परंपरा के पालन को जब शीतकालीन सत्र संपन्न होगा तब 30 वर्ष पूर्ण होंगे, इसलिए ‘वंदे मातरम्’ गानेवाले सभी सांसदों को मैं अग्रीम बधाई देता हूं।"