नही रहे द टाइगर ऑफ सियाचिन कर्नल अशोक प्रताप सिंह, क्यो उन्हें द टाइगर ऑफ सियाचिन कहा जाता था

भारत-पाक नियंत्रण रेखा से सटे सियाचिन पर 1980 के दशक में सैन्य चौकियों को कब्जा करने का ऑपरेशन चला तो कर्नल अशोक प्रताप सिंह ने गजब का साहस दिखाया। बर्फीली सियाचिन पोस्ट पर वे मुट्ठी भर जवानों के साथ दुश्मन से लोहा लेते रहे। 13 दिन तक ऊंचाई पर डटे रहे और जब तक भारतीय सेना की टुकड़ी पोस्ट पर नहीं पहुंच गई, कब्जा बनाए रखा।
 
नही रहे द टाइगर ऑफ सियाचिन कर्नल अशोक प्रताप सिंह, क्यो उन्हें द टाइगर ऑफ सियाचिन कहा जाता था

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

शख्सियत, 05 जनवरी:- सियाचिन की बर्फीली पहाड़ियों में सैन्य ऑपरेशन के दौरान अदम्य साहस का परिचय देने वाले कर्नल अशोक प्रताप सिंह नहीं रहे। बीते 31 दिसंबर को 73 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। सोमवार को उन्हें अंतिम विदाई दी गई। गोमतीनगर स्थित सृजन विहार में परिवार संग रहने वाले कर्नल सिंह 31 दिसंबर 2005 में सेवानिवृत्त हुए थे। कर्नल के बचपन के मित्र व सहपाठी कर्नल समर विजय सिंह ने बताया कि भारत-पाक नियंत्रण रेखा से सटे सियाचिन पर 1980 के दशक में सैन्य चौकियों को कब्जा करने का ऑपरेशन चला तो कर्नल अशोक प्रताप सिंह ने गजब का साहस दिखाया था।

बर्फीली सियाचिन पोस्ट पर वे मुट्ठी भर जवानों के साथ दुश्मन से लोहा लेते रहे। 13 दिन तक ऊंचाई पर डटे रहे और जब तक भारतीय सेना की टुकड़ी पोस्ट पर नहीं पहुंच गई, कब्जा बनाए रखा। इस ऑपरेशन के बाद उनके एक पैर की तीन अंगुलियां काटनी पड़ी थीं। राष्ट्रपति ने उन्हें विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया। इसके बाद सैन्य अधिकारी और साथी उन्हें एपी- द टाइगर ऑफ सियाचिन के नाम से बुलाने लगे। इस बहादुरी के लिए सियाचिन में उनके नाम पर एक पोस्ट भी स्थापित की गई है।