नर्क से जो रक्षा करता है वही पुत्र है -धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास

 
नर्क से जो रक्षा करता है वही पुत्र है -धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास
ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क
 पितृपक्ष विशेष-आचार्य ओम प्रकाश पांडेय(रामनुजदास)

प्रतापगढ। पृतिपक्ष की बहुत-बहुत बधाई आज 2 अक्टूबर भाद्रपद मास महालय की पूर्णिमा है। आज से ही पृतिपक्ष की प्रतिपदा का शुभारंभ भी हो रहा है। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पृतिपक्ष में पितर गण 15 दिनों तक पृथ्वी पर आकरके फिर अपने लोक को वापस लौट जाते हैं ।इस दौरान पृतिगण अपने परिजनों के आसपास होते हैं, इसलिए ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिसके कारण पृतिगण नाराज हो। पृतिपक्ष में दरवाजे पर आए हुए किसी भी जीव जंतु को मारना नहीं चाहिए ।

इस दौरान ब्राम्हण जमाता भांजा मामा गुरु और नाती को भोजन कराना चाहिए। प्रत्येक दिवस एक हिस्सा निकालकर गाय कुत्ता कौवा अथवा बिल्ली को देना चाहिए। ऐसा करने से वह सीधे पितरों को प्राप्त होता है।
सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा के उर्धव कक्षा में पितरलोक है। जहां पितर गण निवास करते हैं। पितर लोक को आंखों से नहीं देखा जा सकता है। जीवात्मा जब से स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थित को मृत्यु कहते हैं। यह भौतिक शरीर 27 तत्वों से बना है।” स्थूल पंचमहाभूते” स्थूल कर्मेन्दियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है। इसलिए हमें श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के लिए पितृपक्ष में दान इत्यादि करना चाहिए।

श्रद्धा शब्द से श्राद्ध शब्द की निष्पत्ति होती है।” पुन्नामनरकात॒ त्रायते इति पुत्र:” पुन्नामक नामक नरक से त्राण अर्थात जो रक्षा करता है वही पुत्र है। श्रद्धा शब्द के संबंध में मनुस्मृति वायु पद्म पुराण श्राद्ध तत्व श्राद्ध कल्पतरु आदि में विस्तृत वर्णन है। महर्षि पाराशर कहते हैं देश काल पात्र में हविष्यादि विधि द्वारा जो कर्म दर्भ अर्थात कुशा यव तथा मंत्रों से युक्त होकर श्रद्धा पूर्वक किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार पितरों के उद्देश्य जो ब्राह्मणों को दान दिया जाता है यानी द्रव्य भोजन वस्त्र शैय्या इत्यादिवही श्राद्ध है।

श्राद्ध पुनर्जन्म के सिद्धांतों पर आधारित है हम पहले भी कुछ थे और बाद में भी कुछ होंगे। भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं जो जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मरा है उसका जन्म भी निश्चित है। अपने कर्मों के अनुसार मनुष्य 8400000 योनियों में भटकता है। श्राद्ध कर्म में नाम गोत्र संबंध स्थान वस्तु आदि का खास महत्व है। जो हम दान में देते हैं। यदि जीव पशु रुप में है तो उसे बात तृण के रूप में मिलता है, देव योनि में है तो अमृत के रूप में प्राप्त होता है, यक्ष गंधर्व में है वह पान अर्थात अनेक भागों में प्राप्त होता है। प्रेत योनि में है तो सुंदर वायु के रूप में और भोग प्रसाद के रूप में प्राप्त होता है। पद्मपुराण में आया है जैसे भूला हुआ बछड़ा अपनी मां को हजारों गायों के बीच में पहचान लेता है। उसी प्रकार मंत्रों एवं क्रिया द्वारा शोधित वस्तु समुचित प्राणी के पास तक पहुंच जाती है वह चाहे जहां पर हो।
विज्ञान कहता है पदार्थ और ऊर्जा दो ही चीजें हैं। हम जैसे बैंक में या पोस्ट ऑफिस में पैसा या वस्तु जमा करते हैं यदि पता सही हो तो उस व्यक्ति को मिल जाता है, उसी प्रकार ब्राह्मणों को दिया गया दान उस जीव को किसी न किसी रूप में मिल जाता है चाहे वह कितनी योनियां बदल चुका है, किंतु हमें नाम गोत्र स्थान का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।

पिता की मृत्यु की तिथि पर पितृपक्ष में ब्राह्मणों को दान देना चाहिए और भोजन कराना चाहिए। यदि तिथि ना मालूम हो तो अंतिम दिवस अमावस्या के दिन पिंडदान और भोजन इत्यादि करा कर ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देनी चाहिए।