प्रोफेसर ओपी मालवीय एवं भारती मालवीय स्मृति समारोह का आयोजन हिन्दुस्तानी एकेडमी सभागार में हुआ।
प्रोफेसर ओपी मालवीय एवं भारती मालवीय स्मृति समारोह का आयोजन हिन्दुस्तानी एकेडमी सभागार में।
ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क
प्रयागराज, 18 अगस्त।
साहित्य, कला, संस्कृति और संगीत को समर्पित संस्था 'सरोकार' ने हिंदुस्तानी अकादमी सभागार में सुपरिचित समाजसेवी प्रोफेसर ओपी मालवीय और उनकी धर्मपत्नी भारती मालवीय की स्मृति में भव्य आयोजन किया।
कार्यक्रम में इस वर्ष जाने माने कथाकार पंकज मित्र को कहानियों के क्षेत्र में दिए गए उनके योगदान के लिए सम्मानित और पुरस्कृत किया गया । इस अवसर पर पंकज मित्र को ₹25000 की धनराशि अंगवस्त्रम और स्मृति चिन्ह दिया गया।
इस आयोजन के मुख्य अतिथि डॉ शक्ति कुमार पाण्डेय ने प्रोफेसर ओपी मालवीय के संपूर्ण व्यक्तित्व और उनके योगदान पर चर्चा किया। उन्होंने कहा कि किसी को हतोत्साहित करना उनका स्वभाव नहीं था। उनके पढ़ाए सैंकड़ों छात्र प्रशासनिक अधिकारी बने। और देश चलाने में उन्होंने अपना योगदान दिया।
इस अवसर पर परितोष मालवीय ने तमाम व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर बताया कि प्रोफेसर ओपी मालवीय के सानिध्य में बहुत से लोगों का जीवन बदल गया ।
इस आयोजन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और उपन्यासकार विभूति नारायण राय ने कहा कि ओपी मालवीय के व्यक्तित्व और विचारों का प्रभाव समाज पर ही नहीं पड़ा बल्कि उनके परिवार पर भी बहुत गहरा पड़ा।
उनकी श्रीमती भारती मालवीय सामाजिक सद्भावना को लेकर प्रोफेसर मालवीय के साथ जीवन भर आगे बढ़ती रही।
इस अवसर पर कहानीकार मनोज पांडेय ने पुरस्कृत कहानीकार पंकज मित्र की कहानियों की विशेषताओं पर प्रकाश डाला और बताया कि उनकी कहानियों में समाज में तेजी से हो रहे बदलाव को देखा जा सकता है ।
उन्होंने कहा कि पंकज मित्र हमारे कथासमय के एक महत्वपूर्ण कहानीकार हैं । बात को कहने का उनका अपना तरीका है और वह जनभाषा से जुड़े हुए हैं।
इस आयोजन के दूसरे सत्र में लेखकों के सामने चुनौतियां और उनका दायित्व विषय पर चर्चा की गई।
इस मौके पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रणय कृष्ण ने कहा कि संचार क्रांति ने साहित्य के लिए आज कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। इस अतिक्रमण के चलते कभी-कभी लगता है कि जैसे समाज को साहित्य की जरूरत नहीं रह गई।
इस अवसर पर कवि और आलोचक राजेंद्र कुमार ने कहा कि हालत बहुत बिगड़ गए हैं युवा साहित्य की तरफ जाएं, इसकी कोई कोशिश दिखाई नही दे रही है।
उन्होंने कहा कि साहित्य में एक दूसरे से असहमति इतनी ज्यादा हो गई है कि कोई किसी को सुनना ही नहीं चाहता।
इस विषय पर प्रोफेसर कुमार वीरेंद्र और कहानीकार योगेंद्र आहूजा ने भी अपनी बात रखी। साहित्य की एक सीमा है। कहानियां और कविताएं ऐसे औजार हैं जिनके जरिए समाज को बदलने की भूमिका लिखी जा सकती है। साहित्य अपने आधारों पर अपनी सेवाओं का अतिक्रमण नहीं कर सकता और अगर करता है तो साहित्य की असफलता भी सुनिश्चित है।
कार्यक्रम के इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक रवि भूषण ने की और कार्यक्रम का योजनाबद्ध तथा जानकारी से भरा संचालन प्रेम शंकर जी ने किया। आयोजन में शान्तनु मालवीय और उत्कर्ष मालवीय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस कार्यक्रम में कहानीकार प्रियदर्शन ने आए हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया ।
आखिरी सत्र में शास्त्रीय संगीत के कलाकारों ने बहुत अच्छी प्रस्तुतियां दी जिसकी गूंज देर तक सुनाई पढ़ती रहेगी.
मौसम अनुकूल न होने के बावजूद भी समारोह में पूरा हाल खचाखच भरा रहा।