उमेश पाल हत्याकांड- पुलिस को मुख्तार अंसारी गैंग की भूमिका के मिल रहे प्रमाण

इस दुस्साहिक वारदात ने पुलिस के दावों और इंतजामों की पोल खोल दी। बदमाशों से मोर्चा लेने में सुस्ती का नतीजा कई बड़ी वारदातों के रूप में उभर कर आया है। आपको जानकर हैरत होगी कि प्रदेश के सभी आठ जोन में बीते छह वर्ष के दौरान प्रयागराज में सबसे कम मुठभेड़ हुई। इतना ही नहीं, कमिश्नरेट बनने के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा।
 
उमेश पाल हत्याकांड

ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

प्रयागराज, 27 फरवरी:- राजूपाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की हत्या के मामले की जांच कर रही पुलिस को मुख्तार अंसारी गैंग की भूमिका के प्रमाण मिल रहे हैं। मुख्तार के चचेरे भाई मंसूर की अतीक के भाई अशरफ और बेटे अली से बीते कुछ दिनों के दौरान जेल में हुई मुलाकात की गहनता से जांच की जा रही है। पुलिसअधिकारी अशरफ और अली से पूछताछ कर रहे हैं। वहीं तीन राज्यों में शूटरों की तलाश में छापामारी की जा रही है। एसटीएफ की प्रारंभिक जांच में पता चला कि उमेश पाल की हत्या की साजिश गुजरात की साबरमती जेल में बंद पूर्व सांसद अतीक अहमद ने रची थी। एसटीएफ की शुरुआती पड़ताल में इसकी पुष्टि हुई है। सुराग मिले हैं कि मुख्तार के कुछ गुर्गे गुजरात जेल में बंद अतीक के संपर्क में थे। आशंका है कि अतीक ने इन गुर्गों के जरिए अपने भरोसेमंद गुड्डू मुस्लिम और गुलाम से उमेश पाल को ठिकाने लगाने को कहा था। इसके बाद दोनों ने स्थानीय युवकों की मदद से इस घटना को अंजाम दिया। हत्याकांड में शामिल एक शूटर को अभी तक चिह्नित नहीं किया जा सका है।

पुलिस एसटीएफ की टीमों ने लखनऊ में भी अतीक और गुड्डू मुस्लिम के करीबियों से पूछताछ की है। वहीं जौनपुर, वाराणसी के साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में दो दर्जन से ज्यादा ठिकानों पर एसटीएफ शूटरों की तलाश कर रही है। मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी के खिलाफ चल रही प्रवर्तन निदेशालय की जांच के दौरान भी मंसूर प्रयागराज में खासा सक्रिय था। इस दौरान उसने नैनी जेल में अतीक के बेटे से मुलाकात की थी। इसकी जानकारी हासिल करने के लिए एसटीएफ नैनी जेल के सीसीटीवी खंगालने की तैयारी में है। वही प्रयागराज कमिश्नरेट में शुक्रवार को हुई दुस्साहिक वारदात ने पुलिस के दावों और इंतजामों की पोल खोल दी। बदमाशों से मोर्चा लेने में सुस्ती का नतीजा कई बड़ी वारदातों के रूप में उभर कर आया है। आपको जानकर हैरत होगी कि प्रदेश के सभी आठ जोन में बीते छह वर्ष के दौरान प्रयागराज में सबसे कम मुठभेड़ हुई। इतना ही नहीं, कमिश्नरेट बनने के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा।