जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष की इलाज में लापरवाही से मौत। राज्य उपभोक्ता आयोग ने सहारा हास्पिटल पर डेढ़ करोड़ का हर्जाना ठोंका।

लखनऊ उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष रहे पूर्व न्यायाधीश अशरफ जमाल सिद्दीकी की मृत्यु के 13 साल बाद इलाज में लापरवाही सामने आई है। आयोग की ओर से किसी संस्थान पर लगाए गए हर्जाने की ये सबसे बड़ी रकम है।
 
ग्लोबल भारत न्यूज

जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष की इलाज में लापरवाही मौत। राज्य उपभोक्ता आयोग ने सहारा हास्पिटल पर डेढ़ करोड़ का हर्जाना ठोंका।

डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क

लखनऊ, 5 मई।

लखनऊ उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष रहे पूर्व न्यायाधीश अशरफ जमाल सिद्दीकी की मृत्यु के 13 साल बाद इलाज में लापरवाही सामने आई है। आयोग की ओर से किसी संस्थान पर लगाए गए हर्जाने की ये सबसे बड़ी रकम है।

राज्य उपभोक्ता आयोग ने उनकी पत्नी को एक करोड़ 50 हजार रुपये भुगतान करने का आदेश दिया है। 

न्यू हैदराबाद लखनऊ निवासी अशरफ जमाल सिद्दीकी जिला फोरम के अध्यक्ष रहते अप्रैल 2010 में अस्वस्थ हुए। पत्नी का कहना है कि शरीर का तापमान अत्यधिक होने पर 27 अप्रैल को सहारा हास्पिटल लखनऊ में भर्ती कराया गया। उस समय सभी अंग भली प्रकार कार्य कर रहे थे अचानक पांच मई 2010 को उनको वेंटीलेटर पर रख दिया गया। 

अनावश्यक रूप से उन्हें खून चढ़ाया गया, होश में आने के बाद भी परिवार वालों से मिलने नहीं दिया गया। 17 मई को डा. सुनील वर्मा ने डायलिसिस करने को कहा। सहारा हास्पिटल वाले एक के बाद एक टेस्ट करते रहे लेकिन रोग को पहचान नहीं पाए। 

पूर्व न्यायाधीश को जब एसजीपीजीआई भेजा गया, उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई। पत्नी ने सहारा हास्पिटल को विधिक नोटिस 13 नवंबर 2010 को भेजा लेकिन, कोई उत्तर नहीं दिया गया, तब राज्य उपभोक्ता आयोग में वाद दाखिल किया।

राज्य आयोग के पीठासीन सदस्य राजेंद्र सिंह व सदस्य विकास सक्सेना ने इस मामले की सुनवाई की। सहारा हास्पिटल की ओर से बताया गया कि सिद्दीकी को 'पर्किंसोनिस्म, फिस्टुला इन एनो यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन सेप्टिसीमिया' होने से उनकी हालत अत्यंत खराब थी। 

कई डाक्टरों ने परीक्षण किया, सहारा हास्पिटल से इलाज से संबंधित सारे प्रपत्र और हिस्ट्रीशीट मंगाकर आयोग ने अवलोकन किया। 

आयोग सदस्य सिंह ने विभिन्न चिकित्सीय लेखों, सर्वोच्च न्यायालय व राष्ट्रीय आयोग के निर्णयों का संदर्भ देते हुए पाया कि सहारा हास्पिटल ने इस मामले में गलत दवाएं देकर मरीज की घोर उपेक्षा की है। 

हास्पिटल ने यह जानते हुए कि वे मरीज का इलाज भली प्रकार नहीं कर पा रहे, उन्हें समय रहते एसजीपीजीआई नहीं भेजा और जब संदर्भित किया तो उसी दिन पूर्व न्यायाधीश की मृत्यु हो गयी। अनावश्यक उन्हें हास्पिटल में क्यों रखा गया इसका अस्पताल प्रशासन जवाब नहीं दे सका।

आयोग ने अस्पताल को आदेश दिया कि पूर्व न्यायमूर्ति की पत्नी को 70 लाख रुपये, चिकित्सीय लापरवाही व अवसाद के मद में 30 लाख रुपये और वाद व्यय के रूप में 50 हजार रुपये देने होंगे। इन धनराशि पर 27 अप्रैल 2010 से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित 60 दिन में अदा करें, अन्यथा ब्याज की दर 15 प्रतिशत होगी।