हाई कोर्ट ने कुकरैल नदी में कब्जाकर बसाए गए अकबरनगर में ध्वस्तीकरण पर अंतरिम रोक लगाई।

यह आदेश उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में जस्टिस पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सैयद हमीदुल बारी सहित 46 व्यक्तियों की कुल 26 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया।
 
ग्लोबल भारत न्यूज

हाई कोर्ट  ने कुकरैल नदी में कब्जाकर बसाए गए अकबरनगर प्रथम एवं द्वितीय में ध्वस्तीकरण से सरकार को रोका।

डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज

लखनऊ, 23 दिसम्बर।

यह आदेश उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में जस्टिस पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सैयद हमीदुल बारी सहित 46 व्यक्तियों की कुल 26 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि याची अपना स्वामित्व साबित करने में सफल नहीं हुए हैं।

कोर्ट ने राज्य सरकार व एलडीए से कहा कि पहले वहां के लोगों के पुनर्वास का आवेदन करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाए। इसके पश्चात पुनर्वास योजना को अपनाने वाले लोगों द्वारा कब्जा छोड़ देने पर एलडीए उनके परिसरों को कब्जे में ले सकता है। 

अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि वहां अपेक्षाकृत गरीब लोग रह रहे हैं और यह समझ नहीं आ रहा कि इनके खिलाफ ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की इतनी जल्दी क्यों है? वह भी ठंड के इस मौसम में पुनर्वास योजना को वास्तविक तौर पर लागू किए बिना। 

सुबह कोर्ट के बैठते ही याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर ने अनुरोध किया कि अकबरनगर में एलडीए और प्रशासन द्वारा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। लिहाजा उनकी याचिकाएं जो गुरुवार को सूचीबद्ध न हो पाने के कारण रजिस्ट्री में ही हैं, उन्हें मंगाकर सुनवाई कर ली जाए।

राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि पहले से दो रिट याचिकाएं जस्टिस प्रकाश सिंह की पीठ में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं, लिहाजा सभी याचिकाएं भेज दी जाएं। 

लेकिन राज्य सरकार व एलडीए की दलील को दरकिनार करके जस्टिस भाटिया ने सभी याचिकाओं को कोर्ट की रजिस्ट्री से मंगाकर स्वयं सुनने का निर्णय लिया। 

याचियों की ओर से मुख्य रूप से दलील दी गई कि याची 40-50 सालों से उस स्थान पर कब्जे में हैं और तब यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1973 लागू भी नहीं हुआ था लिहाजा कानून के तहत याचियों को बेदखल करने की कार्रवाई नहीं की जा सकती।

राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह और एलडीए की ओर अधिवक्ता रत्नेश चंद्रा ने दलील दी कि याची विवादित संपत्तियों पर अपना स्वामित्व नहीं सिद्ध कर सके हैं। 

यह भी कहा गया कि वहां के लोगों के पुनर्वास की भी व्यवस्था की गई है, जिसके लिए 70-80 लोगों ने पंजीकरण भी कराया है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 22 जनवरी की तिथि नियत की है। सरकार व एलडीए याचिका पर अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं।