कानून दो शादियों की इजाजत नहीं देता, लेकिन कोर्ट ने तो दे दिया ............
कानून दो शादियों की इजाजत नहीं देता, लेकिन कोर्ट ने तो दे दिया ............
डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क
लखनऊ, 7 अप्रैल।
लखनऊ के पारिवारिक न्यायालय में चल रहे तलाक के मामले में दो पत्नियों के बीच हुए सुलहनामे पर अदालत ने लगाई मुहर। पति तीन दिन एक पत्नी के साथ और चार दिन दूसरी के साथ रहेगा।
दो पत्नियों और एक पति के बीच का विवाद तलाक के मुकदमे के साथ पारिवारिक न्यायालय लखनऊ तक पहुंचा था।
शहर के एक पॉश इलाके में रहने वाले युवक की शादी 2009 में माता-पिता की मर्जी की लड़की से हुई, जिससे दो बच्चे भी हैं।
2016 से दोनों अलग हुए। फिर युवक ने प्रेम विवाह रचाया। उससे भी एक संतान हुई। और दोनों ने मिलकर अदालत में पहली पत्नी से तलाक का मुकदमा दायर कर दिया। सन् 2018 में यह वाद दाखिल हुआ।
बीच में कोरोना के कारण सुनवाई टलती चली गई। कोरोना के बाद दोनों पक्ष आए और एक समझौता पत्र व हलफनामा दाखिल कर दिया गया, जिस पर अदालत ने 28 मार्च को वाद निरस्त करने का फैसला सुना दिया।
समझौता पत्र के मुताबिक, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को पहली पत्नी के साथ पति के रहने पर सहमति बनी। जबकि शेष 4 दिन दूसरी पत्नी के साथ रहने पर सहमति बनी है।
साथ ही ये भी तय हुआ है कि तीज-त्योहार या किसी अन्य अवसर पर वो किसी एक पत्नी के साथ मौजूद रह सकता है, जिस पर किसी को आपत्ति नहीं होगी।
साथ ही चल-अचल संपत्ति पर दोनों का समान हक होगा। इसके अलावा 15 हजार रुपये भरण पोषण के लिए पहली पत्नी को पति देगा।
इन सब शर्तों को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा-वादी नहीं चाहता तो लंबित रखना न्यायसंगत नहीं।
पारिवारिक न्यायालय ने वादी की वाद निरस्त करने की अर्जी को स्वीकार कर लिया और 28 मार्च 2003 को फैसला सुनाया कि वादी अपना वाद वापस लेना चाहते है, जिस कारण वाद निरस्त किया जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 494 और हिंदु विवाह अधिनियम के तहत अगर कोई भी अपने पति या पत्नी के जीवित होते हुए विवाह करेगा तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा मिलेगी जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा।