लखनऊ जिला प्रशासन ने जनता के साथ धोखाधड़ी करने वाले बड़े बिल्डर्स के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।

अंसल और पार्थ समेत पांच डेवलपर्स के खाते सीज कर दिए गए हैं, तथा 88 अन्य प्रमोटर पर शिकंजा कसने की तैयारी है। इनसे 273 करोड़ रुपये वसूले जाने हैं। रेरा ने सूची जिला प्रशासन को सौंपी।
 
ग्लोबल भारत न्यूज

लखनऊ जिला प्रशासन ने जनता के साथ धोखाधड़ी करने वाले बड़े बिल्डर्स के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।

डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज

लखनऊ, 23 नवम्बर।

अंसल और पार्थ समेत पांच डेवलपर्स के खाते सीज कर दिए गए हैं, तथा 88 अन्य प्रमोटर पर शिकंजा कसने की तैयारी है। इनसे 273 करोड़ रुपये वसूले जाने हैं। रेरा ने सूची जिला प्रशासन को सौंपी।

लखनऊ विकास प्राधिकरण और एमार एमजीएफ लैंड लिमिटेड से भी वसूली की गई है।

आरोप है कि इन बिल्डरों ने खरीदारों को न तो अनुबंध के अनुसार मकान-फ्लैट दिया और न ही उनका पैसा वापस कर रहे हैं। लिहाजा इनसे वसूली के लिए सख्ती शुरू हो गई है। 

जिला प्रशासन ने अंसल, पार्थ इंफ्रा, श्री कोलोनाईजर्स, केजी कंस्ट्रक्शन और भव्या क्रिएटर्स के खाते सीज कर दिए हैं। श्री कोलोनाईजर्स और केजी कंस्ट्रक्शन की नीलामी की तैयारी की जा रही है। 

ग्राहकों ने बताया कि भव्या क्रिएटर्स की ओर से जो चेक दिया गया था, वह बाउंस हो गया। प्रशासन ने भव्या क्रिएटर्स के खिलाफ चेक बाउंस का केस भी दर्ज कराया है। साथ ही उसकी नीलामी के लिए कार्यवाही की जा रही है। 

अलावा पोलार्स इंफ्रा डेवलपर्स की नीलामी बृहस्पतिवार को की जाएगी। लखनऊ विकास प्राधिकरण से 5 करोड़ 98 लाख 65 हजार 859 रुपये और एमार एमजीएफ से 11 लाख 88 हजार 636 रुपये वसूले गए हैं।

आरोप यह भी है कि निवेशकों को रकम मिलने में देरी का कारण अफसर हैं। कई अफसरों ने बड़े प्रमोटर के यहां प्लाॅट खरीद लिए हैं। वसूली के लिए जब भी टीम किसी प्रमोटर के यहां जाती है, अफसरों के फोन कॉल शुरू हो जाते हैं। कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के कारण बड़े प्रमोटर से वसूली नहीं हो पा रही है। अंसल का बैंक खाता सीज होने के बाद भी वसूली नहीं हो पा रही है। 

सूत्रों का कहना है कि बकायेदार की सूची में पहले नंबर पर होने के बावजूद अंसल से वसूली नहीं होने के पीछे भी कुछ अफसरों का हाथ है।

रेरा की ओर से 2081 आरसी (रिकवरी सर्टिफिकेट) प्रशासन को भेजी गई है। इनमें कुछ प्रमोटर ने भुगतान कर दिया। लेकिन अब भी करीब 2000 पीड़ित अपने मेहनत की कमाई वापस लेने के लिए चक्कर काट रहे हैं। कलेक्ट्रेट परिसर में भी अक्सर ऐसे फरियादी नजर आते हैं। 

सूची के मुताबिक करीब 418 करोड़ रुपये वसूली होनी थी। कुछ प्रमोटर्स ने नीलामी से बचने के लिए करीब 144 करोड़ रुपये जमा कर दिए। फिर भी 273 करोड़ रुपये की वसूली होनी है।