प्रतापगढ़ जनपद के इस गांव में लगाया गया पेरियार कॉलोनी का बोर्ड, आखिर क्यो लोगो मे पनप रहा आक्रोश

लोगों का कहना है की पेरियार नास्तिक था और वह ईश्वर को नही मानता था। ईश्वर में आस्था रखने वालों और पूजा पाठ करने वालो को पेरियर बर्बर बताता था और जगह-जगह हिन्दू धर्म का माखौल उड़ाता था। वह ब्राह्मणवाद से जुड़ी हर व्यवस्था, तंत्र का विरोधी था।
 
प्रतापगढ़ न्यूज

ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क

प्रतापगढ, 18 सितंबर:- प्रतापगढ़ जनपद के पूरे ईश्वर नाथ में लगाया गया पेरियार कॉलोनी का बोर्ड विवाद का विषय बन गया है। बोर्ड लगाए जाने से ईश्वर में आस्था रखने वाले लोगों में खासी नाराजगी है और इस मामले की शिकायत भी उच्च अधिकारियों से किया गया है। स्थानीय लोगों का कहना है की पेरियार नास्तिक था और वह ईश्वर को नही मानता था। ईश्वर में आस्था रखने वालों और पूजा पाठ करने वालो को पेरियार बर्बर बताता था और जगह-जगह हिन्दू धर्म का माखौल उड़ाता था। वह ब्राह्मणवाद से जुड़ी हर व्यवस्था, तंत्र का विरोधी था। अब पूरे ईश्वरनाथ कॉलोनी जहाँ सभी जाति धर्म समुदाय के लोग आपसी भाईचारे के साथ रहते है उसे पेरियार कॉलोनी बनाए जाने से नया विवाद उत्पन्न हो गया है जिसे समय रहते यदि नही हटाया गया तो आपसी मनमुटाव और वैमनष्यता बढ़ सकती है।

कौन थे पेरियार- ईवी रामास्वामी यानि पेरियार दक्षिण भारत के दिग्गज नेता थे, ऐसे नेता जिन्होंने काफी हद तक दक्षिण भारतीय राज्यों की राजनीति तय कर दी। उत्तर भारत में नई पीढियां शायद ही पेरियार के बारे में जानती हों, वो जीवनभर रूढिवादी हिंदुत्व का विरोध तो करते ही रहे, साथ ही हिन्दी के अनिवार्य पढाई के भी घनघोर विरोधी रहे। उन्होंने अलग द्रविड़ नाडु की भी मांग कर डाली थी। उनकी राजनीति शोषित और दलितों के इर्दगिर्द घूमती रही।

इनका असली नाम ई वी रामास्वामी था- पेरियार का असल नाम ई वी रामास्वामी था, वो तमिल राष्ट्रवादी, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उनके प्रशंसक उन्हें सम्मान देते हुए ‘पेरियार’ कहते थे। पेरियार का मतलब है पवित्र आत्मा या सम्मानित व्यक्ति। उन्होंने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ या ‘द्रविड़ आन्दोलन’ शुरू किया। जस्टिस पार्टी बनाई, जो बाद में जाकर ‘द्रविड़ कड़गम’ हो गई, उन्हें एशिया का सुकरात भी कहा जाता था। विचारों से उन्हें क्रांतिकारी और तर्कवादी माना जाता था, वह एक धार्मिक हिंदू परिवार में पैदा हुए, लेकिन ब्राह्मणवाद के घनघोर विरोधी रहे। उन्होंने न केवल ब्राह्मण ग्रंथों की होली जलाई बल्कि रावण को अपना नायक भी माना। इरोड वेंकट रामास्वामी नायकर का जन्म 17 सितम्बर 1879 में तमिलनाडु में ईरोड में हुआ। पिता वेंकतप्पा नायडु धनी व्यापारी थे, घर पर भजन तथा उपदेशों का सिलसिला चलता रहता था। हालांकि वो बचपन से ही उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते थे। हिंदू महाकाव्यों तथा पुराणों की परस्पर विरोधी तथा बेतुकी बातों का माखौल उड़ाते थे। वो बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के खिलाफ होने के साथ स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के पूरी तरह खिलाफ थे। उन्होंने हिंदू वर्ण व्यवस्था का बहिष्कार भी किया, उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों को जलाया भी।

काशी आकर बने नास्तिक- 15 साल की उम्र में पिता से अनबन होने के कारण उन्होंने घर छोड़ दिया, वह काशी चले गए। वहां उन्होंने धर्म के नाम पर जो कुछ होता देखा, उसने उन्हें नास्तिक बना दिया। वो वापस लौटे, जल्दी ही अपने शहर की नगरपालिका के प्रमुख बन गए। केरल में कांग्रेस के उस वाईकॉम आंदोलन की अगुवाई करने लगे, जो मंदिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने पर पाबंदी का विरोध करता था। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के पहल पर वह 1919 में कांग्रेस के सदस्य बने थे। असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और गिरफ्तार हुए। 1922 में वो मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने। जब उन्होंने सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण का प्रस्ताव रखा और इसे कांग्रेस में मंजूरी नहीं मिली तो 1925 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। उन्हें महसूस हुआ कि ये पार्टी मन से दलितों के साथ नहीं है।

हिंदी भाषा का किया विरोध- कांग्रेस छोड़ने के बाद वो दलितों के समर्थन में आंदोलन चलाने लगे। पेरियार ने 1944 में अपनी जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ कड़गम कर दिया, इसी से डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) पार्टी का उदय हुआ। उन्होंने खुद को सत्ता की राजनीति से अलग रखा। जिंदगी भर दलितों और स्त्रियों की दशा सुधारने में लगे रहे। 1937 में जब सी. राजगोपालाचारी मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने स्कूलों में हिंदी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी। तब पेरियार हिंदी विरोधी आंदोलन के अगुवा बनकर उभरे। उग्र आंदोलनों को हवा दी, 1938 में वो गिरफ्तार हुए। उसी साल पेरियार ने हिंदी के विरोध में ‘तमिलनाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया। उनका मानना था कि हिंदी लागू होने के बाद तमिल संस्कृति नष्ट हो जाएगी। तमिल समुदाय उत्तर भारतीयों के अधीन हो जाएगा।