सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय चंद्रमणि पांडेय 'चंद्र' की श्री राम जन्मभूमि आंदोलन पर लिखी गई कविताएं आज प्रासंगिक हुईं।
सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय चंद्रमणि पांडेय 'चंद्र' की श्री राम जन्मभूमि आंदोलन पर लिखी गई कविताएं आज प्रासंगिक हैं।
डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज
18 जनवरी, 2024
श्री राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का समय जैसे-जैसे निकट आ रहा है,अनेक प्रकार की स्मृतियां और ऐतिहासिक तथ्य जीवंत हो रहे हैं|
प्रतापगढ़ के साहित्यिक आध्यात्मिक और सामाजिक क्षेत्र में सतत सक्रिय रहने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय चंद्रमणि पांडेय 'चंद्र' की श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के समय लिखी गई प्रतिनिधि कविताएं आज सहज ही प्रासंगिक होती हैं|
नब्बे के दशक में लिखी उनकी पंक्तियां अविस्मरणीय हैं- "चलो चलें जन्मभूमि, राम की अनन्य भूमि, मातृ पितृ भक्ति भाव से रही जो धन्य भूमि। हुए भरत सदृश जहां, शेष की जो कर्म भूमि।"
यह कविता श्री राम जन्मभूमि के आंदोलन के समय लिखी गई थी| उन्हें पूर्ण विश्वास था कि एक दिन श्री राम मंदिर बनेगा, भव्य रूप में बनेगा और आज वह दिन जीवंत हो उठा है|
तभी तो उन्होंने लिखा... 'विश्व देखता रहे लक्ष्य पर बढ़े चलो,राम जन्मभूमि के नाम पर बढ़ चलो,. यह एक श्री राम भक्त का विश्वास ही है जो इस रूप में प्रकट होता है।
एक अन्य अवधी भाषा की कविता में भगवान श्री राम के वनवास से वापस लौटने पर वह लिखते हैं- 'आए आए अवध रघुराई, नगर में बाजै बधाई। राजा भी नाचैं रानी भी नाचै, नाचैं हो सगरौ लुगाई, अवध में बाजै बधाई।"
इन पंक्तियों में श्री राम के आगमन का उल्लास स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित होता है| उन्होंने लिखा 'परजा को अपना राजा मिला है, भाई को मिलि गयो भाई, अवध में बाजै बधाई'।
स्वर्गीय चंद्रमणि पांडेय 'चंद्र' के पुत्र जो वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रतापगढ़ विभाग के विभाग बौद्धिक शिक्षण प्रमुख हैं, ने बताया कि पिताजी बड़े ही भाव से श्री राम भगवान पर लिखे गए गीत को हम सभी को सुनाते थे|
स्वामी परमात्मानंद जी के सानिध्य में अनेक श्रीराम कथाओं के आयोजन का भी सौभाग्य उनको प्राप्त हुआ वे जीवन पर्यंत साहित्य और धर्म के प्रति अनुरागी बने रहे।
श्रीराम मंदिर आंदोलन के समय शासकीय सेवा में रहते हुए भी कारसेवकों की सेवा में सदैव तत्पर रहते थे| आज श्री राम मंदिर के निर्माण की पूर्णता के समय उनकी भगवान श्री राम पर लिखी प्रतिनिधि कविताएं सार्थक और जीवंत हो उठी है।