व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - अनिल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, पूर्वी उ0प्र0 क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक श्रीमान अनिल जी बाबू संत बख्श सिंह महाविद्यालय में काशी प्रान्त के 15 दिवसीय संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।
 
ग्लोबल भारत न्यूज

व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - अनिल

डा० शक्ति कुमार पाण्डेय 
राज्य संवाददाता 
ग्लोबल भारत न्यूज 

साहबगंज, प्रतापगढ़; 20 जून।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, पूर्वी उ0प्र0 क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक श्रीमान अनिल जी बाबू संत बख्श सिंह महाविद्यालय में काशी प्रान्त के 15 दिवसीय संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 98 वर्ष की यात्रा व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर निरन्तर अग्रसर है। संघ का स्वयंसेवक एवं कार्यकर्ता समाज जीवन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में न केवल भाव जागरण कर रहा है अपितु विभिन्न क्षेत्रों में समाज को नेतृत्व भी प्रदान कर रहा है। 

उन्होंने स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए आगे कहा कि आज भारत के लिए अत्यन्त गर्व का विषय है कि हम छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिन्दवी साम्राज्य दिनोत्सव का 350 वां वर्ष मना रहे हैं। 

भारत ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध पद्धति लोगों के कौतुहल का विषय बनी हुई है। इस बात का प्रमाण वियतनाम के राष्ट्रपति के संदेशवाहक के रुप में आये विदेश मंत्री द्वारा भारत आगमन पर सबसे पहले शिवाजी महाराज के समाधि पर जाने से मिलता है। 

मुख्य वक्ता ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 98 वर्ष की यात्रा व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर निरन्तर अग्रसर है। इस यात्रा को जीवन्त बनाने के लिए स्वयंसेवकों तथा कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम देश के विभिन्न स्थानों पर चलता है, जिसमें प्रतिवर्ष लगभग एक लाख तीस हजार स्वयंसेवक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं।

उन्होंने कहा कि इन प्रशिक्षण वर्गों में स्वयंसेवकों में कठोर साधना, अनुशासन, ईमानदारी, पारदर्शिता, समरसता, समाज और राष्ट्र को समय देने की प्रवृत्ति आदि अनेक अनिवार्य गुणों का प्रशिक्षण प्राप्त होता है। जिससे कार्यकर्ता अपने दैनिक संस्कारों में इन गुणों का प्रयोग करके समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने को उद्दत रहता है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम संघ कार्य को सर्वस्पर्शी, सर्वव्यापी और सर्वग्राही बनाने में भी सहयोगी होता है।

अनिल जी ने कहा कि वास्तव में संघ गत 98 वर्षों से कुछ नया नहीं कर रहा है बल्कि हमारे सनातन मूल्य, विश्व कल्याण से जुड़े हमारे धर्म और संस्कृति के तत्वों को समाज में पुनः स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। 

एक तरह से कहा जाए तो संघ स्वामी विवेकानन्द जी के सपने को पूरा कर रहा है। जब उन्होंने कहा था कि समाज एवं राष्ट्र के लिए समर्पित निःस्वार्थ बुद्धि से ओत-प्रोत ऐसे कुछ सौ युवा हमारे पास हों तो हम भारत को पुनः विश्व गुरु बना सकते हैं तथा भारत माता को परम वैभव पर आसीन कर सकते हैं। 

संघ स्वामी जी के इस अधूरे सपने को पूरा करने के लिए निरन्तर क्रियाशील है तथा लाखों स्वयंसेवकों को तैयार कर रहा है। वर्तमान पर दृष्टि डाली जाए तो यह स्पष्ट हो रहा है कि संघ का स्वयंसेवक एवं कार्यकर्ता समाज जीवन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में न सिर्फ भाव जागरण कर रहा है अपितु विभिन्न क्षेत्रों में समाज को नेतृत्व भी प्रदान कर रहा है। 

उन्होंने बताया कि संघ का यह स्पष्ट और सुदृढ़ विचार है कि समाज परिवर्तन तथा राष्ट्रनिर्माण हेतु स्व प्रेरणा से युक्त व्यक्तियों द्वारा ही परिवर्तन किया जा सकता है। 

उन्होंने कहा कि स्वदेशी, स्वभाषा, समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, ग्राम विकास, गौसंरक्षण जैसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य विषयों पर जागृत समाज द्वारा ही कार्य किये जा सकते हैं। सरकार पर हमारी निर्भरता न्यूनतम होनी चाहिए क्योंकि वर्तमान लोकतंत्र में प्रत्येक सरकारों के कार्य निष्पादन की अपनी सीमितता होती है। अतः उपरोक्त विषयों पर जागरुक समाज अपने नागरिक कर्तव्यों का पालन करते हुए समाज की सज्जन शक्ति को साथ लेकर एक बड़ा परिवर्तन कर सकता है। संघ के इस प्रयास का प्रतिफल भी अब स्थान-स्थान पर प्रकट होने लगा है। धर्म, संस्कृति, समाजिक न्याय, सनातन मूल्यों को लेकर बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। आज का युवा, प्रौढ़ और वृद्ध अपने सनातन मूल्यों के प्रति जागरुक हो रहा है जिसका प्रमाण आज का धार्मिक पर्यटन भी है, जिसमें स्थानीय लोगों को प्रचुर मात्रा में रोजगार प्राप्त हो रहा है तथा सनातन मूल्यों की पुर्नस्थापना भी हो रही है। 

कार्यक्रम के पश्चात जब पत्रकारों ने उनसे इस विषय में प्रश्न किया तो उन्होंने स्पष्ट किया कि वियतनाम जैसा छोटा देश अमेरिका जैसी बड़ी ताकत से शिवाजी महाराज की युद्ध पद्धति के प्रयोग द्वारा विजय प्राप्त कर सका। 

उन्होंने राष्ट्रपति का संदेश दिया कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी कब्र पर लिखा जाए कि मैं वीर शिवाजी का सैनिक हूं। इसी प्रकार विश्व में भारत की प्रभुता के विस्तार में भारतीय योग, आयुर्वेद तथा हमारी पर्यावरणीय दृष्टि विश्व के लिए प्रेरणा का श्रोत बन रही है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सरदार मंजीत सिंह जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा राष्ट्र निर्माण में इसके किये जा रहे कार्यां पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि व्यक्ति का अस्तित्व राष्ट्र से ही सुरक्षित रहता है। 

उन्होंने कहा कि संघ जिस प्रकार से राष्ट्र निर्माण के लिए व्यक्ति निर्माण के ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों को चला रहा है जिससे निश्चित रूप से समाज और राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा। 

कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा छत्रपति शिवाजी के चित्र पर पुष्पार्चन कर किया गया। शिक्षार्थियों द्वारा पूर्ण गणवेश में भगवा ध्वज की परिक्रमा करके मान वन्दना किया गया। 

तत्पश्चात दण्ड, नियुद्ध, पदविन्यास, सामूहिक समता, व्यायाम योग, आसन इत्यादि शारीरिक प्रधान कार्यक्रम हुए। पूर्ण गणवेश में घोष वादन कर रहे स्वयंसेवक आकर्षण का केन्द्र रहे। मंचस्थ अधिकारियों का परिचय वर्ग के सर्वाधिकारी डॉ.अविनाश पाथर्डीकर ने कराया। 

संघ शिक्षा वर्ग के वर्ग कार्यवाह संजीव जी द्वारा वर्ग प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। उन्होंने बताया कि काशी प्रांत के 27 जिलों से 313 शिक्षार्थी आए। सभी ने अपना शुल्क, मार्ग व्यय एवं गणवेश स्वयं अपने खर्च से पूरा किया। सामाजिक सहभाग एवं समरसता की दृष्टि से प्रतिदिन 2 गांवों के अलग अलग 220 परिवारों से रोटी का सहयोग प्राप्त किया गया। 

परिसर में स्वच्छता, चिकित्सालय, आकस्मिक एंबुलेंस आदि की भी उत्तम व्यवस्था की गई। 

आभार ज्ञापन वर्ग के सर्वव्यवस्था प्रमुख एवं प्रतापग़ढ़ विभाग कार्यवाह हरीश जी द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संयोजन मुख्य शिक्षक नितेश जी द्वारा किया गया। 

इस अवसर पर क्षेत्र प्रचारक प्रमुख राजेन्द्र जी, प्रान्त प्रचारक रमेश जी, प्रान्त प्रचारक प्रमुख रामचन्द्र जी, प्रान्त कार्यवाह मुरली पाल जी, बाबू सन्त बख्श सिंह एजुकेशनल ट्रस्ट के निदेशक डॉ.राकेश सिंह, ब्लाक प्रमुख प्रेम लता सिंह आदि उपस्थित रहे।