आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती सोल्लास सम्पन्न हुई।

आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग उ.प्र. एवं श्रीरघुनाथ-मन्दिर देवगढ़ तीर्थक्षेत्र न्यास के संयुक्त तत्वावधान में देवगढ़ स्थित वेणीविलास अतिथि गृह में समारोहपूर्वक मनायी गयी।
 
ग्लोबल भारत न्यूज

आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती सोल्लास सम्पन्न हुई।

डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज नेटवर्क

सोनभद्र, 29 अक्टूबर।

आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग उ.प्र. एवं श्रीरघुनाथ-मन्दिर देवगढ़ तीर्थक्षेत्र न्यास के संयुक्त तत्वावधान में देवगढ़ स्थित वेणीविलास अतिथि गृह में समारोहपूर्वक मनायी गयी। 

इस अवसर पर सर्वप्रथम श्रीरघुनाथ-मन्दिर में स्थापित प्रभु श्रीराम, माता जानकी, लक्ष्मण समेत राम दरबार में विधि-विधानपूर्वक पूजन किया गया। 

तत्पश्चात् समाजसेवी स्वामी अरविन्द सिंह द्वारा माँ सरस्वती, आदिकवि महर्षि वाल्मीकि एवं माता महीयसी प्रभा सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण के पश्चात् अमरप्रताप सिंह गहरवार के निर्देशन में संगीतमय सुन्दरकाण्ड-पारायण से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया।

सुन्दरकाण्ड-पारायण की पूर्णाहुति के पश्चात् प्रसाद-वितरण कर श्रीवृद्धेश्वरनाथपीठाधीश्वर महन्त डॉ. योगानन्द गिरि महाराज की अध्यक्षता, डॉ. गोपाल सिंह प्राचार्य सन्त कीनाराम स्नातकोत्तर महाविद्यालय रॉबर्ट्सगंज के मुख्यातिथ्य एवं मिर्ज़ापुर के वरिष्ठ साहित्यकार गणेश 'गम्भीर' के विशिष्टातिथ्य में प्रभु श्रीराम की कीर्तिकथा को लिपिबद्ध करनेवाले आदिकवि महर्षि वाल्मीकि के जीवनादर्श पर केन्द्रित विचार-विमर्श एवं काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ साहित्यकार, लेखक, इतिहासविद् एवं समारोह-संयोजक डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह 'संजय' ने बताया कि योगी आदित्यनाथ जी महाराज के धर्मसम्मत शासन में उत्तरप्रदेश सरकार प्रदेश के 13 जनपदों के 24 स्थानों पर आदिकवि महर्षि वाल्मीकि के जयन्ती-समारोह का आयोजन कर रही है। 

उन्होंने कहा कि उसी शृंखला में सोनभद्र के श्रीरघुनाथ-मन्दिर देवगढ़ का यह कार्यक्रम सोल्लास सम्पन्न हो रहा है। 

कार्यक्रम का संचालन मिर्ज़ापुर से पधारे नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर शुभम् श्रीवास्तव ओम ने किया।

शिवद्वार के कवि ब्रह्मानन्द शुक्ल 'कमल' ने अपने काव्यपाठ में आदिकवि का स्मरण किया -

देववाणी सरित-सी बही नर्झरा।
लेखनी मुस्कराई पड़ी जब करा।
वाल्मीकि ने रचा दिव्य सद्ग्रन्थ तो,
राममय हो गयी पावनी धरा।।

इसी क्रम में भारतीय इण्टर कॉलेज घोरावल के प्रधानाचार्य गणेशदेव पाण्डेय 'ग्रामीण' ने समसामयिक दोहों से कार्यक्रम को आगे बढ़ाया-

कहाँ गयी सज्जनता, कहाँ गया वह त्याग।
गाँवों में भी बढ़ रहा, शहरों-सा अवसाद।।

जेपी इण्टर कॉलेज चुनार के प्रधानाचार्य कविवर अमरनाथ तिवारी 'मणि' ने जहाँ एक तरफ़ अपनी चर्चित पुस्तक 'गीतागीत' के छन्दों का सस्वर पाठ किया, वहीं शृंगार-गीतों की रागमय प्रस्तुति से वातावरण को सरस कर दिया-

कहूँ तो झूम उठेगा ये जमाना सारा
तेरी नज़रों का नज़ारा है नज़ारा प्यारा।

रॉबर्ट्सगंज से पधारे युवा कवि प्रभात सिंह चन्देल ने अपने कविताओं से सस्वर पाठ से जहाँ कार्यक्रम को नूतन ऊँचाई प्रदान की, वहीं संचालन कर रहे शुभम् श्रीवास्तव 'ओम' ने नवगीत की प्रस्तुति से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया-
ढूँढ़ रहा है ताल-तलैया और पीपल की छाँव।
एक परदेशी कई बरस पर लौटा अपने गाँव।।

कवि डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह 'संजय' ने क्रौंचवध की घटना का स्मरण करते हुए आदिकवि की शब्दार्चना की-
तम-सा मन स्वच्छ हुआ तमसा
          तट कारी निशा भी भगी हुई थी।
रति-राग महोत्सव मोहित हो
             परिरम्भ की बात सगी हुई थी।
नर क्रौंच को तीर लगा क्षण में 
             ऋषि के उर हूक लगी हुई थी।
बिलखाती चकोरी बनी करुणा 
             तब रामकहानी जगी हुई थी।।

मिर्ज़ापुर से पधारे भोजपुरी-महाकाव्य 'शकुन्तला' के प्रणेता राजेन्द्र त्रिपाठी उपाख्य लल्लू तिवारी ने अपने मुक्तकों, गीत-ग़ज़लों और छन्दों से काव्यगोष्ठी को सफलता को विस्तृत आकाश प्रदान किया-
साथ मौसम का काश मिल जाता।
हिमानी को पलाश मिल जाता।
वीतरागी न मन हुआ होता,
तन को यदि बाहुपाश मिल जाता।।
जैसे मुक्तक-मौक्तिकों के पाठ से लल्लू तिवारी ने शकुन्तला के लिए शृंगार की पृष्ठभूमि का निर्माण किया।

ज्ञानपुर-भदोही से पधारे हास्य-व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. कृष्णावतार त्रिपाठी 'राही' ने सुनाया-
प्यार की राह से कट गया आदमी।
धर्म के नाम पर बँट गया आदमी।
राम का राज आयेगा कैसे भला,
आदमीयत से जब हट गया आदमी।
जैसे गम्भीर मुक्तकों के प्रधान से चिन्तन के एक नया आयाम प्रदान किया।

कविराज पण्डित रमाशंकर पाण्डेय 'विकल' ने हिन्दी, भोजपुरी, संस्कृत एवं उर्दू भाषा में निबद्ध अपनी रचनाओं का पाठ करके काव्य-परिषद् को बहुभाषीय कवियित्री में परिवर्तित कर दिया। कविराज विकल ने अपना बहुचर्चित भोजपुरी-गीत सुनाया-
लोगन के जिनगी बा जहँवाँ पथरा। 
परान उहे सोनभदरा।।
का गायन करके सोनभद्र की आटविक संस्कृति को जीवन्त कर दिया।

मिर्ज़ापुर से पधारे गीत-नवगीत एवं ग़ज़ल के हीरक हस्ताक्षर गणेश गम्भीर ने अपनी ग़ज़लों के पाठ से कविगोष्ठी को ऊँचाई प्रदान की-
इच्छा होती है बनने की नायक दन्तकथाओं का।
प्रायः सुखद सुखद होता था पहले अन्त कथाओं का।
इतने लोग नहीं मर पाते इतना ख़ून नहीं बहता,
हिंसक स्वर में पाठ न होता यदि कुछ सन्त कथाओं का।।

समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. गोपाल सिंह ने अपने उद्गीथवचन में कहा कि सुबह दस से प्रारम्भ हुआ यह जयन्ती-समारोह रात्रि आठ बजे तक निर्विघ्न चलता रहा। श्रोताओं की दत्तचित्तता और कवियों की ऐसी सहज प्रस्तुति कम देखने को मिलती है। श्रीरघुनाथ-मन्दिर के कारण देवगढ़ का यह वनांचल सचमुच तीर्थ हो गया है। यहाँ समय समय पर धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक आयोजन होते रहते हैं। महर्षि वाल्मीकि जयन्ती शोक से श्लोक तक की यात्रा का भावबोध कराती है।

समारोह की अध्यक्षता कर रहे बूढ़ेनाथ-मन्दिर मिर्ज़ापुर के महन्त डॉ. योगानन्द गिरि जी महाराज ने आदिकवि महर्षि वाल्मीकि एवं उनके आदिकाव्य रामायण पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला। 

समारोह में चुर्क से बाबू इन्द्रसेन सिंह, अरौली से राहुल सिंह, पकरी से बाबू शीतलाप्रसाद सिंह, बैधा से राजेश सिंह, कोटा शिवप्रताप से बबलू सिंह, पड़रिया से देवेश सिंह, रॉबर्ट्सगंज से स्वामी अरविन्द सिंह, मिर्ज़ापुर से अवधेश दुबे, मिर्ज़ापुर से वरिष्ठ पत्रकार सन्दर्भ पाण्डेय, वाराणसी से मयंक मिश्र के साथ साथ राजर्षि बाबू रामप्रसाद सिंह, बाबू महेन्द्रबहादुर सिंह, वीरेन्द्रप्रताप सिंह, राजेन्द्रबहादुर सिंह, आदित्यनारायण सिंह, धर्मेन्द्रकुमार सिंह 'राजेश', ज्ञानेन्द्रकुमार सिंह 'बृजेश', मनोज सिंह, मिश्रीलाल, रामधनी, अमृतलाल, अरविन्द कुमार उर्फ गोपाल, छोटेलाल शर्मा प्रभृति की गरिमामयी उपस्थिति रही। 

समारोह के अन्त में संयोजक डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह 'संजय' ने आगत अतिथियों के प्रति हार्दिक धन्यावाद ज्ञापित किया।