उत्तर प्रदेश पुलिस अधिकारियों को सत्यनिष्ठा रोके जाने का दण्ड देना गैरकानूनी-हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उ०प्र० अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों, सिपाहियों, मुख्य आरक्षियों, दरोगाओं एवं पुलिस इंस्पेक्टरों की सत्यनिष्ठा रोके जाने का दण्ड देना गैरकानूनी करार करते हुये दण्डादेश निरस्त कर दिया है एवं याचीगणों को समस्त सेवा लाभ देने के आदेश पारित किये है। यह आदेश माननीय न्यायमूर्ति अजित कुमार ने नोएडा, मेरठ एवं बरेली में तैनात गिरिश चन्द्र जोशी, बृजेन्द्र पाल सिंह राना पुलिस इंस्पेक्टर, विकास सिंह, वीरेन्द्र सिंह, रविशंकर, पुष्पेन्द्र कुमार, जितेन्द्र सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों की अलग अलग याचिकाओं पर पारित किया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि पुलिस अधिकारियों की सत्यनिष्ठा रोके जाने का दण्ड नियम एंव कानून के विरूद्ध है, अतः सत्यनिष्ठा रोके जाने का दण्ड उ०प्र० अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों को नहीं दिया जा सकता।
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मामले के तथ्य यह है कि याचीगणों को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों द्वारा दण्डादेश पारित करते हुये वर्ष 2020 की सत्यनिष्ठा रोके जाने के आदेश पारित किये गये थे। याचीगणों पर आरोप था कि जब यह लोग एस०ओ०जी० जनपद बरेली में नियुक्त थे तो अन्य एस०ओ०जी० में नियुक्त सहकर्मियों के साथ अवैध स्त्रोतों से प्राप्त धनराशि के सम्बन्ध में बटवारे को लेकर आपस में विवाद कर रहे थे, जिसका वीडियों सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, तत्पश्चात इन पुलिस कर्मियों के विरूद्ध थाना कोतवाली जनपद बरेली में दिनांक 14.10.2020 को अपराध संख्या 535/2020 धारा 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम पंजीकृत किया गया। याचीगणों पर यह आरोप था कि अपने कर्तव्यों के प्रति राजकीय दायित्वों का निर्वहन नहीं किया गया एवं उपरोक्त कृत्य से जनता में पुलिस की छवि धूमिल हुई।
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याची के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं सहायक अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम एवं अनुरा सिंह की बहस थी कि उ०प्र० अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम 4 में जो दण्ड प्रतिपादित किये गये है उसमें सत्य निष्ठा रोकने (Integrity withold) करने का दण्ड का प्रावधान नहीं है अतः उक्त दण्ड पुलिस अधिकारियों को प्रदान नहीं किया जा सकता। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया बनाम टी०जे० पॉल एवं विजय सिंह बनाम उ०प्र० सरकार व अन्य में यह व्यवस्था प्रतिपादित की गयी है जो दण्ड नियम में नहीं प्रावधानित है, उक्त दण्ड नहीं दिया जा सकता। माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भी सुरेन्द्र कुमार सिंह बनाम उ०प्र० सरकार व अन्य, राजीव कुमार तोमर बनाम उ०प्र० सरकार व अन्य एवं सत्य देव शर्मा बनाम उ०प्र० सरकार व अन्य में भी विधि की व्यवस्था प्रतिपादित करते हुये यह स्पष्ट किया है कि उ०प्र० पुलिस के अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों को सत्य निष्ठा रोके जाने का दण्ड नहीं प्रदान किया जा सकता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समस्त तथ्यों एवं विधि के सिद्धान्तों पर विचार करने के पश्चात कानून में यह व्यवस्था प्रतिपादित कर दी है कि उ०प्र० पुलिस अफसरों को सत्य निष्ठा रोके जाने का दण्ड नहीं दिया जा सकता एवं न्यायालय ने यह भी निर्देशित किया है कि याचीगणों को सेवा सम्बन्धी समस्त लाभ प्रदान किये जाये।