प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उप्र पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के पूर्व प्रबंध निदेशक के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।
ईडी ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी पाए गए और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे यूपीपीसीएस के पूर्व एमडी एपी मिश्रा की 2.85 करोड़ रुपये की तीन संपत्तियां जब्त की हैं।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उप्र पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के पूर्व प्रबंध निदेशक के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।
डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज
लखनऊ, 12 जनवरी।
ईडी ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी पाए गए और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे यूपीपीसीएस के पूर्व एमडी एपी मिश्रा की 2.85 करोड़ रुपये की तीन संपत्तियां जब्त की हैं।
जब्त की गई सम्पत्तियों में लखनऊ स्थित फ्लैट व दुकान के अलावा गोंडा स्थित कृषि भूमि शामिल है।
ईडी द्वारा मिश्रा के विरुद्ध बिजली कर्मियों के करोड़ों रुपये के भविष्य निधि घोटाले की भी जांच की भी जांच की जा रही है। उनके विरुद्ध विजिलेंस जांच भी हुई थी।
ईडी ने एपी मिश्रा के विरुद्ध विजिलेंस में दर्ज मुकदमे को आधार बनाकर मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जांच शुरू की थी।
जांच के लिए निर्धारित अवधि में एपी मिश्रा की आय 1.92 करोड़ रुपये थी, जबकि इस अवधि में उन्होंने भरण-पोषण व संपत्तियां जुटाने में 5.08 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
आय से 3.15 करोड़ रुपये अधिक खर्च किए गए। वह आय से 163.23 प्रतिशत अधिक रकम खर्च करने को लेकर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके थे।
ईडी की जांच में सामने आया कि मिश्रा ने काली कमाई को परिवार के सदस्यों के बैंक खातों के माध्यम से संपत्तियों में खपाया था। अपने व परिवार के सदस्यों के नाम से संपत्तियां खरीदी थीं। ईडी उनकी अन्य संपत्तियों के बारे में भी जानकारी जुटा रहा है।
दिल्ली स्थित ईडी मुख्यालय ने बिजली कर्मियों के पीएफ घोटाले में भी मनी लॉन्ड्रिंग के तहत केस दर्ज कर जांच शुरू की थी।
पीएफ घोटाले में आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) की जांच में काले धन को सफेद किए जाने व फर्जी ब्रोकर फर्मों के जरिए करोड़ों रुपये के कमीशन को अलग-अलग खातों में ट्रांसफर किए जाने के तथ्य सामने आए थे।
इस पर ईओडब्ल्यू ने ईडी से मामले में मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जांच किए जाने की सिफारिश की थी।
पीएफ घोटाले में ईओडब्ल्यू ने मिश्रा समेत अन्य आरोपितों को गिरफ्तार किया था। बिजली कर्मियों के पीएफ की रकम को निजी कंपनी दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) में निवेश कराकर करोड़ों रुपये की कमीशनखोरी की गई थी।
वर्ष 2019 में भाजपा सरकार के दौरान यह मामला सामने आने पर लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में घोटाले की एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इसी के बाद शासन ने मामले की जांच ईओडब्ल्यू की सौंप दी थी।