स्वास्थ्य विभाग में गहरे तक है झोल अगर ईमानदारी से हो जांच तो मिलेंगे चौंकाने वाले रहस्य
कल जो पकड़े गए वो सिर्फ बानगी अंदर तक तालाब में फैल चुकी है गंदगी, वर्षों से जमे कर्मचारी व्यवस्था को कर रहे तार तार

स्वास्थ्य विभाग में गहरे तक है झोल अगर ईमानदारी से हो जांच तो मिलेंगे चौंकाने वाले रहस्य
कल जो पकड़े गए वो सिर्फ बानगी अंदर तक तालाब में फैल चुकी है गंदगी, वर्षों से जमे कर्मचारी व्यवस्था को कर रहे तार तार
ग्लोबल भारत डेस्क : प्रतापगढ़ के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय से भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते द्वारा पकड़े गए स्टेनो राहुल और एक अन्य की गिरफ्तारी के बाद तस्वीर एकदम साफ हो गई की मामला क्या है। जिले में वर्षों से जमे कर्मचारी और चिकित्सकों की क्रिया कलाप के चलते सीएमओ कार्यालय वसूली का अड्डा बना चुका है। ये तो सिर्फ बानगी मात्र है अगर सरकार ईमानदारी से जांच कराए तो परिणाम चौंकाने वाले मिलेंगे कि कैसे एक ही जिले में कुछ लोग कुंडली जमाए बैठे है। एक अदना सा कर्मचारी देखते देखते इलाज छोड़कर स्थानीय राजनीति करने लगता है, उसके कार्यालय मरीज कम और बैठकबाज ज्यादा नजर आते है। इन सब के पीछे वही तंत्र काम करता है जिसके चपेट में कल सीएमओ ऑफिस का कर्मचारी गिरफ्तार हुआ है।
कटियामार जुगाड के आगे बेअसर सरकार आखिर बाबा जी इधर क्यों नहीं देखते
पीएचसी से लेकर सीएचसी तक सेटिंग प्रथा हॉबी होती जा रही है। सूत्र बताते है कि कई सीएचसी ऐसी है जहां अधीक्षक सेवा शुल्क के बदले डॉक्टरों को न आने की सुविधा मुहैया कराता है। दो दिन आइए फिर शिफ्ट के नाम पर बाकी दिन गायब वो भी विशेष कर महिला चिकित्सक शायद ही अपना शेड्यूल पूरा करती हों। सेवानिवृत्त हो चुके डॉक्टर इस विषय में बताते है कि चंद वो कर्मी और चिकित्सक जो वर्षों से जमे उनका संपर्क नेताओं और क्षेत्रीय बाहुबलियों से हो जाता है जिसके चलते चाह कर भी ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर पाता। जिसके चलते एक सरकार के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो पाती और ग्रामीण मरीजों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। एक ही तहसील के विभिन्न सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात होकर जिस अधीक्षक का संपर्क ऐसे तत्वों से हो जाता है उसके ऊपर मानक और सेवा आचरण नियमावली का असर नहीं हो पाता। इससे बचने के लिए सरकार को ठोस स्थानांतरण नीति बनानी होगी तभी जाकर स्वास्थ्य सेवाएं उस रूप में मुहैया हो पाएंगी जैसे सरकार की मनो इच्छा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में हावी है निजी अस्पताल केंद्र प्रभारियों के पास नहीं है विवरण
जिस विभाग के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के प्रभारी के पास उनके क्षेत्र में चलने वाले अवैध और वैध निजी अस्पताल का डेटा न हो उसे भेद करना मुश्किल हो जाएगा कि उनके क्षेत्र में किनका पंजीकरण है और कौन अवैध ढंग से संचालित किए जा रहे है। उनसे क्या अपेक्षा की जा सकती है और उस पर भी तुक्का ये की साहब 7 साल से क्षेत्र में जमे है और उनके निजी संबंध इतने प्रगाढ़ हो चुके है कि इस विषय में क्या ही कार्रवाई की उम्मीद की जा सकती है। राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के सामाजिक अपराध डिवीजन के जिला निदेशक ने सरकार को पत्र लिखकर ये शिकायत दर्ज कराई है और मांग किया है कि इस गंभीर विषय को शासन स्तर से जांच कराई जाए और इसे कर्मचारी या डॉक्टर जो वर्षों से एक ही जिले में जमे है उनका स्थानांतरण करके स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और बेहतर किया जाए। अब देखना है कि विभाग इस विषय पर क्या रवैया अपनाता है।